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Why MGNREGA Employment The Poor In India Become An Epic Center Of Corruption ABPP


महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना पर केंद्र सरकार की सोशल ऑडिट से बड़ा खुलासा हुआ है. सोशल ऑडिट में कहा गया है कि गरीबों के लिए बने इस योजना में जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है. दिलचस्प बात यह है कि यह ऑडिट सिर्फ गिने-चुने राज्यों में ही हुआ है. 

द हिंदू के मुताबिक 5 राज्यों में यह ऑडिट 50 प्रतिशत तो केरल में 100 प्रतिशत पंचायतों में किया गया है. केंद्र के बार-बार कहने के बावजूद मध्य प्रदेश-तेलंगाना समेत कई राज्यों ने इस काम को पूरा नहीं किया. 

जिन राज्यों ने 50 प्रतिशत से ज्यादा पंचायतों में यह ऑडिट का काम किया है, उनमें बिहार (64.4%), गुजरात (58.8%), जम्मू और कश्मीर (64.1%), ओडिशा (60.42%) और उत्तर प्रदेश (54.97%) शामिल हैं. 

जानकारों का मानना है कि जिन राज्यों ने सोशल ऑडिट का काम पूरा नहीं किया है, उन राज्यों ने भ्रष्टाचार के आरोपों को और ज्यादा बल दे दिया है. मनरेगा में भ्रष्टाचार का आरोप लंबे वक्त से लग रहा है.

ऐसे में आज की इस स्टोरी में विस्तार से जानते हैं कि गरीबों को नौकरी देने वाली यह योजना कैसे और क्यों भ्रष्टाचार का एपिक सेंटर बन गया?

मनरेगा यानी गांव में गरीबों को रोजगार की गारंटी
1991 में कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने गांव में लोगों को रोजगार देने के लिए एक गारंटी योजना लाने का प्रस्ताव तैयार किया. हालांकि, सियासी उथल-पुथल की वजह से इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका.

2004 में जब मनमोहन सिंह की सरकार बनी, तो इस पर तेजी से काम शुरू हुआ. 2006 में मनमोहन सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत कुछ जिलों में इसे लागू किया. यह योजना सफल साबित हुआ, जिसके बाद 2008 में इसे पूरे देश में लाया गया.

मनरेगा के तहत गांवों में सभी मजदूरों को साल में 100 दिन काम देने की गारंटी दी गई. मनरेगा के तहत उन जिलों में लोगों को रोजगार दिया जाता है, जहां शहरी आबादी 100 प्रतिशत से कम है.

इस योजना में तलाब की खुदाई, सड़क निर्माण और पेड़ लगाने जैसा काम किया जाता है. इसकी लागत राज्य और केंद्र सरकार मिलकर वहन करती है. वर्तमान में मनरेगा के तहत मजदूरी दर 228 रुपए प्रति दिन है. 

कई राज्यों में यह दर 300 रुपए प्रति दिन से भी ज्यादा है. 2021 के एक आंकड़े के मुताबिक साल 2020 -21 में मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों का आंकड़ा 11 करोड़ पार कर गया था.

इसी साल सितंबर में मनरेगा के तहत करीब 2 करोड़ मजदूरों ने सरकार से रोजगार की मांग की थी. ग्रामीण विकास मंत्रालय की मानें तो यह आंकड़ा रिकॉर्ड है.

विवादों में मनरेगा, मोदी ने यूपीए सरकार का स्मारक बताया था
भ्रष्टाचार की वजह से मनरेगा शुरू से ही विवादों में रहा है. 2013 में ग्रामीण विकास संबंधित स्थाई समिति ने इसकी समीक्षा भी की थी. 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने मनरेगा का मजाक उड़ाया था. 

प्रधानमंत्री ने संसद में कहा था कि मैं मनरेगा को कभी बंद नहीं करूंगा. यह यूपीए खासकर कांग्रेस सरकार की विफलता का जीता-जागता स्मारक है. उन्होंने कहा था कि मै इसकी विफलता का गाजे-बाजे के साथ जोर-शोर से ढोल पीटता रहूंगा.

मनरेगा में इसके बाद बजट कटौती शुरू हो गई. ग्रामीण विकास मंत्रालय के मुताबिक 2023-24 में मनरेगा का बजट 60 हजार करोड़ रुपए रखा गया है, जो 2022-23 के 73 हजार करोड़ से काफी कम है.

मनरेगा का मुद्दा कई बार लोकसभा में भी उठा है. हाल ही में यह तब सुर्खियों में आया, जब पश्चिम बंगाल के सांसद अभिषेक बनर्जी मनरेगा मजदूरों को समय से पैसा न मिलने के कारण राजभवन के बाहर धरने पर बैठ गए.

भ्रष्टाचार का एपिक सेंटर क्यों बन गया मनरेगा?
बंगाल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश समेत देश के कई राज्यों से मनरेगा में भ्रष्टाचार का बड़ा मामला सामने आया है. 2021 में द वायर ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि मनरेगा में 2016-21 तक 935 करोड़ रुपए का हेर-फेर हुआ है.

2016 में एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि पिछले 10 साल में मनरेगा में भ्रष्टाचार को लेकर हजारों शिकायतें मिली. इस दरम्यान केंद्र ने 3.13 लाख करोड़ रुपए इस पर खर्च किए थे. 

जो शिकायत मिली है, उसके विश्लेषण के मुताबिक मनरेगा में 3 तरह से भ्रष्टाचार किए जा रहे हैं.

1. मजदूरों का फर्जी कार्ड बनाकर लोगों का पैसा ठेकेदार उठा रहे हैं.
2. अधूरा काम का पैसा पूरा बताकर सरकार से ले लिया जा रहा है.
3. कम मजदूरों से काम कराकर ज्यादा मजदूरों का पैसा लिया जा रहा है.

मनरेगा में भ्रष्टाचार खत्म करने और इसकी कार्यप्रणाली को सशक्त बनाने के लिए 2022 में संसद की स्टैंडिंग कमेटी ने सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिशें की गई थी. 

मनरेगा में भ्रष्टाचार रोकने के लिए लोकपाल की नियुक्ति पर जोर दें. अभी तक देश में सिर्फ 263 लोकपाल नियुक्त हुए हैं, जबकि 715 लोकपाल को नियुक्त किया जाना था. 

कामों की समीक्षा के लिए समय-समय पर सोशल ऑडिट का काम हो. ऑडिट ग्राम स्तर पर किया जाए. ऑडिट नहीं करने वालों पर सख्त कार्रवाई की व्यवस्था की जाए.

मनरेगा में मजदूरों की भुगतान प्रक्रिया को पारदर्शी करने की जरूरत है. मजदूरों की चिह्नित करने की भी एक व्यवस्था बनाने पर विचार हो.

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