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Rajasthan Assembly Elections 2023 Royal Family In Rajasthan Politics Vasundhara Raje Diya Kumari


Rajasthan Election 2023 Information: आजादी के बाद राजघरानों की शक्तियां खत्म होने के बाद भी राजस्थान के राजघरानों ने अपना अस्तित्व बचाए रखा. भले ही उनकी ताकत खत्म हो गई है, लेकिन उनके रुतबे में कोई कमी नहीं आई. लोकतांत्रिक युग में धीरे-धीरे राजघरानों से राजा और रानियां राजनीति में आने लगीं.

राजपूत संगठन प्रताप फाउंडेशन के सदस्य, महावीर सिंह सरवड़ी के अनुसार, “राज्य के लगभग 18 शाही परिवारों के सदस्यों का प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ जुड़ाव रहा है और ये लोग अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं. इसकी वजह है लोग अभी भी शाही परिवार के सदस्यों को उच्च सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और मानते हैं कि केवल राजा और रानियां ही हैं जो उनकी मांगों को सुनेंगे और उन्हें पूरा करने के लिए सर्वोत्तम प्रयास करेंगे. यही छवि हमेशा शाही परिवारों की सफलता की कुंजी रही है.”

शाही परिवार के 5 उम्मीदवारों को बीजेपी ने दिया मौका

बहादुर, राठौड़ और गायत्री देवी ने आजादी के बाद राजनीतिक दायरे में शाही कुलों के लिए रास्ता बनाया. उनके वंशज जैसे कि वसुंधरा राजे, सिद्धि कुमारी, दीया कुमारी और कई अन्य, विरासत को आगे बढ़ाते रहे हैं. अगर इस चुनाव की बात करें तो शाही परिवारों के करीब छह सदस्य चुनावी मैदान में हैं. इनमें से पांच को भाजपा ने और एक को कांग्रेस ने मौका दिया है. नीचे हम उन शाही परिवार के सदस्यों के बारे में बता रहे हैं.

1. वसुंधरा राजे : धौलपुर राजपरिवार की सदस्य

वसुंधरा राजे राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. वह ग्वालियर के सिंधिया शाही परिवार से हैं और उनका विवाह राजस्थान के धौलपुर शाही परिवार के राजा हेमंत सिंह से हुआ था. राजे की मां विजया राजे सिंधिया भी जनसंघ की संस्थापक सदस्य थीं, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मूल पार्टी थी. राजे ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1985 में धौलपुर से लड़ा, जिसमें उन्होंने कांग्रेस के बनवारी लाल को हराकर 30% वोटों से जीत हासिल की, लेकिन 1993 में जब पार्टी ने उन्हें दोबारा इस सीट से मैदान में उतारा तो वह उनसे हार गईं. 2003 के बाद से, झालावाड़ के झालरापाटन से मैदान में उतरने के बाद राजे भाजपा की अपराजेय प्रतियोगी बन गईं. 2003 से राजे इस सीट से चार बार विधायक रहीं. राजे 1998 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में केंद्रीय मंत्री भी रह चुकी हैं.

2. दीया कुमारी: जयपुर राजघराने की राजकुमारी

गायत्री देवी के दत्तक पुत्र सवाई भवानी सिंह की बेटी दीया कुमारी ने 10 साल पहले राजनीति में कदम रखा और 2013 में सवाई माधोपुर से विधायक रहीं. 2019 में राजसमंद से सांसद चुनी गईं. दीया कुमारी जयपुर की विद्याधर नगर की एक प्रमुख सीट से पहली बार चुनावी लड़ाई का सामना करेंगी. वह भाजपा के उन सात सांसदों में से एक हैं जिन्हें बीजेपी ने राजस्थान में विधायक चुनाव के लिए उतारा है. विद्याधर नगर निर्वाचन क्षेत्र 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया और तब से भाजपा का गढ़ रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी ने तीनों चुनावों में इस सीट पर जीत दर्ज की.

3. सिद्धि कुमारी: बीकानेर राजघराने की राजकुमारी

पूर्व सांसद महाराजा करणी सिंह बहादुर की पोती सिद्धि कुमारी 2008 से बीकानेर पूर्व सीट से तीन बार भाजपा विधायक रह चुकी हैं. 2018 में सिद्धि ने कांग्रेस के कन्हैया झंवर को मात्र 3% वोटों से हराकर सीट जीती थी. इस बार इनके सामने बीजेपी ने अनुभवी नेता यशपाल गहलोत को उतारा है.

4. कल्पना देवी: कोटा राजघराने की रानी

महाराव इज्य राज सिंह की पत्नी कल्पना देवी कोटा की लाडपुरा सीट से मौजूदा भाजपा विधायक हैं. जहां से उन्होंने 2018 में अपना पहला चुनाव लड़ा और लगभग 53% वोटों से जीत हासिल की, उन्होंने कांग्रेस के गुलानाज़ गुड्डु को हराया. उनके पति इज्य राज भी 2009 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीतकर कोटा से सांसद रहे, लेकिन बाद में जब पार्टी ने उन्हें 2018 में राज्य विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया तो वह भाजपा में शामिल हो गए.

5. कुंवर विश्वराज सिंह मेवाड़: उदयपुर राजघराने के राजकुमार

प्रसिद्ध राजपूत योद्धा राजा महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ 17 अक्टूबर को दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष चंद्र प्रकाश जोशी और राजसमंद सांसद दीया कुमारी की उपस्थिति में भाजपा में शामिल हो गए. पूरे मेवाड़ क्षेत्र में उदयपुर के शाही परिवार के लिंक का उपयोग करके राजसमंद के नाथद्वारा में कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाने की उम्मीद के साथ विश्वराज अपना पहला चुनाव लड़ने के तोयार हैं. इनके पिता महेंद्र सिंह मेवाड़ भी 1989 में चित्तौड़गढ़ से भाजपा सांसद रह चुके हैं.

6. विश्वेन्द्र सिंह: भरतपुर राजघराने के राजा

भरतपुर के अंतिम शासक बृजेंद्र सिंह के बेटे विश्वेंद्र 1999 और 2004 में तीन बार भाजपा सांसद और दो बार केंद्रीय मंत्री रहे. भरतपुर के राजा, जिन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1998 में भाजपा के टिकट से कुम्हेर सीट से लड़ा था. वह कांग्रेस के हरि सिंह से केवल 945 वोटों से हार गए, 2008 में अपने भाजपा सहयोगी दिगंबर सिंह के साथ संघर्ष के कारण वह कांग्रेस में शामिल हो गए. 2008 के राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने विश्वेंद्र को फिर से नई डीग-कुम्हेर सीट से मैदान में उतारा, जो 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी. हालांकि वह ये चुनाव हार गए, लेकिन इसके बाद उन्होंने 2013 और 2018 में लगातार जीत दर्ज की. इसके बाद वह गहलोत सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री भी बने.

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