Jammu Kashmir Instrument Of Accession In India: सैकड़ों किलोमीटर के दायरे में फैले फूलों के बाग, लाल सेब-अंगूरों से लदे बगीचे, हरियाली से पसरे खेत और बर्फ की चादर से ढकी वादियां. एक तरफ माता वैष्णो देवी का दरबार है तो दूसरी ओर हरियाली और बर्फीली वादियों के बीच हल्की ठंड की लहरें. यह धरती पर उस स्वर्ग की निराली छटा है, जिस पर आतंक का साया पिछले आठ दशक से मंडरा रहा है.
कश्मीर के गौरवशाली इतिहास पर खींची आतंक की रेखा और आजादी के बाद मिले कई जख्मों की दास्तान एक बार फिर फिजा में तैरने लगी है. वजह है कि 26 अक्टूबर की वह तारीख आ गई है जब आज से 76 साल पहले संगीनों के साए में धरती के इस स्वर्ग का भारत में विलय हुआ था. वह तारीख थी 26 अक्टूबर 1947. इसी तारीख को जम्मू कश्मीर के अंतिम डोगरा सम्राट महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर के भारत में विलय के पत्र पर हस्ताक्षर किया था.
पाकिस्तान के बजाय कश्मीर ने भारत को चुना इसीलिए हुआ हमला
आजादी के समय अंग्रेजों की कुटिल चाल ने जब भारत के दो टुकड़े कर दिए तब कश्मीर ने मजहब के आधार पर बने पाकिस्तान की जगह भारत को चुना था. इससे बौखलाई पाकिस्तानी फौज ने पठानी कबीलों (कबाइली) की मदद से कश्मीर पर धावा बोल दिया था. तब महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी.
तत्कालीन गृह मंत्री और भारत के लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल की रणनीति काम आई और कश्मीर के भारत में विलय के लिए हरि सिंह के हस्ताक्षर के बाद भारतीय सैनिक पाकिस्तानी हमलावरों पर टूट पड़े. चंद दिनों पहले ही आजाद हुए मुल्क के जांबाजों ने ऐसी वीरता दिखाई कि पाकिस्तानी उल्टे पांव भागने को मजबूर हो गए और उसके बाद से आज तक कश्मीर हमारा अटूट हिस्सा है.
हालांकि इसके गौरवशाली इतिहास पर आजादी के तुरंत बाद से खींच दी गई आतंक की लकीर ने पिछले 76 सालों से कश्मीर की खूबसूरत वादियों को जंग का मैदान बना रखा है.
महद दो पेज का तैयार हुआ था विलय पत्र
साल 1947 में जिस विलय संधि के आधार पर जम्मू कश्मीर की रियासत भारत का हिस्सा बनी, उसमें महज दो पेज थे और इसे खास तौर पर तैयार भी नहीं किया गया था. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की आजादी के बाद पांच सौ से ज्यादा रियासतें थीं. भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के मुताबिक़, रियासतों के शासकों पर निर्भर था कि वे भारत या पाकिस्तान, किसमें अपने राज्य का विलय करते हैं. दिल्ली के गृह मंत्रालय ने एक फॉर्म तैयार किया था. इसमें खाली जगह छोड़ी गई थी, जिनमें रियासतों के नाम, उनके शासकों के नाम और तारीख भरे जाने थे.
कश्मीर को आजाद मुल्क रखना चाहते थे महाराजा हरि सिंह
ऐतिहासिक रिकॉर्ड की मानें तो कश्मीर के लाखों लोगों ने आजादी के बाद भारत या पाकिस्तान में से किसी में भी शामिल नहीं होने की मांग अपने अंतिम महाराजा हरि सिंह से की थी. वह भी इसी के पक्ष में थे लेकिन ब्रिटिश इंडिया के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने सभी रजवाड़ों को यह साफ कर दिया था कि स्वतंत्र होने का विकल्प उनके पास नहीं था. वे भौगोलिक सच्चाई की अनदेखी भी नहीं कर सकते थे. वे भारत या पाकिस्तान, चारों ओर से जिससे घिरे थे, उसमें ही शामिल हो सकते थे. इस बीच पाकिस्तान की ओर से जब हमला हो गया तो उस समय की प्रमुख राजनीतिक हस्ती शेख अब्दुल्ला ने भी भारत में विलय का समर्थन किया था.
कबाइली लड़ाकों की मदद से पाकिस्तान ने किया था हमला
24 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान के कबाइली लड़ाकों ने पाकिस्तान सेना की मदद से कश्मीर पर हमला कर दिया था. हालात बिगड़ता देख हरि सिंह ने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मदद मांगी, जिसके बाद नेहरू ने सरदार वल्लभभाई पटेल को कश्मीर के विलय की जिम्मेदारी सौंपी थी.
26 अक्टूबर को जम्मू में हरि सिंह के विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद 27 अक्टूबर 1947 से जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया. इसके बाद भारतीय सैनिक पाकिस्तानी हमलावरों पर टूट पड़े और उन्हें खदेड़ दिया.
अनुच्छेद 370
भारत की आज़ादी के बाद ही वर्ष 1949 के जुलाई में कश्मीर में अधिक मुस्लिम जनसंख्या को आधार बनाकर विशेष अधिकार की मांग शुरू हो गई थी. जवाहर-लाल नेहरू की हरी झंडी के बाद 1952 में इसे मूर्त रूप दे दिया गया और दिल्ली एग्रीमेंट के तहत अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा मिला.
उसके बाद कश्मीर में कई दौर तक आतंकवाद और टकराव चलता रहा. भारत में भी सरकारें बदली और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने दूसरे टर्म में 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू, कश्मीर और लद्दाख को तीन केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया है.
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