अमेरिकी प्रशासन की ओर से H-1B वीजा शुल्क को 1 लाख डॉलर करने और इसके बाद इस फैसले पर सफाई पेश करने को लेकर पूर्व वरिष्ठ राजनयिक महेश सचदेव ने तीखी आलोचना की है. उन्होंने कहा कि यह कदम जल्दबाजी में लिया गया है और इससे भारतीय पेशेवरों के स्वतंत्र आवाजाही पर असर पड़ेगा.
महेश सचदेव ने कहा कि अमेरिकी प्रशासन ने यह फैसला बेहद अचानक लिया और प्रभावित लोगों को तैयार होने का मौका भी नहीं दिया. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि ‘जैसे टूथपेस्ट को वापस ट्यूब में डालना मुश्किल होता है, वैसे ही अब सरकार इस फैसले को सीमित करने की कोशिश कर रही है.’
अमेरिकी कंपनियों का दबाव
सचदेव का मानना है कि अमेरिकी कंपनियां, जो H-1B कर्मचारियों पर निर्भर हैं, उन्होंने इस फैसले पर नाराजगी जताई होगी. इसी कारण सरकार को दायरा सीमित करना पड़ा और यह साफ किया गया कि शुल्क केवल नए आवेदकों पर एक बार लगेगा. उन्होंने कहा कि बावजूद इसके असली समस्या जस की तस है. भारतीय पेशेवर तकनीकी क्षेत्र में अमेरिका की जरूरत हैं, लेकिन मौजूदा प्रशासन ‘अमेरिका फर्स्ट’ और MAGA समर्थकों को ध्यान में रखकर फैसले ले रहा है.
बेरोजगारी की हकीकत
सचदेव ने यह भी बताया कि यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है कि विदेशी पेशेवरों की वजह से अमेरिकी आईटी सेक्टर में बेरोजगारी बढ़ी है. उन्होंने कहा, ‘आईटी क्षेत्र में अमेरिकी नागरिकों की बेरोजगारी दर लगभग 6% है, जबकि देश की कुल बेरोजगारी करीब 3% है. असल वजह तकनीक का तेजी से बदलना है, जिससे पुराने कौशल वाले लोग पीछे छूट जाते हैं.’
कंपनियों के लिए दिक्कत
उनके अनुसार अमेरिकी कंपनियों को इनोवेशन के लिए तुरंत योग्य लोगों की जरूरत होती है. ऐसे में या तो वे अपने नागरिकों को ट्रेनिंग दें और इंतजार करें, या फिर विदेशी विशेषज्ञों को तुरंत नियुक्त करें.
नया नियम और असर
अमेरिका ने 21 सितंबर से नया नियम लागू किया है जिसके तहत नए H-1B वीजा आवेदनों पर 1 लाख डॉलर का शुल्क लगेगा. शुरुआत में इस घोषणा से भारतीय पेशेवरों और उनके परिवारों में हड़कंप मच गया था. कई इमीग्रेशन वकीलों ने यहां तक कहा कि जो वीजा धारक अमेरिका से बाहर हैं, वे 24 घंटे में लौट आएं, वरना फंस सकते हैं. बाद में व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया कि यह शुल्क केवल नए आवेदकों पर लागू होगा, मौजूदा वीजा धारकों पर नहीं. इससे फिलहाल कई भारतीय पेशेवरों को राहत मिली है.

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