BJP के क्षेत्रीय पंचायती राज परिषद सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकर्ताओं को बड़ा टास्क सौंपा. पीएम मोदी ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान समेत 7 राज्यों के बीजेपी कार्यकर्ताओं से शहरों के बजाय गांवों पर फोकस करने को कहा.
पीएम ने सभा में मौजूद बीजेपी जिलाध्यक्षों से कहा कि दीपावली तक समूह बनाकर सभी गांवों में पहुंचने का लक्ष्य रखें. प्रधानमंत्री ने 5-5 गांवों का समूह बनाने का भी सुझाव दिया. उन्होंने आगे कहा कि गांव में जो किसान केंद्र हैं, वहां जाकर कार्यकर्ता रोज बैठें.
उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा- गांव में लोगों से मिलिए और उन्हें केद्रीय योजनाओं के बारे में जानकारी दीजिए. अगर कोई व्यक्ति किसी योजना का लाभ पाने से वंचित रह गया है, तो उसे तुरंत योजना से जोड़ने की दिशा में काम कीजिए.
ग्रामीण वोटरों को साधने की रणनीति बीजेपी की नई नहीं है, लेकिन जिस तरह से इसकी कमान प्रधानमंत्री मोदी ने संभाली है. उससे सियासी गलियारों में चर्चाएं तेज जरूर हो गई है. आखिर क्यों बीजेपी इन वोटरों पर अधिक फोकस कर रही है?
बीजेपी नेताओं को मोदी की 2 सलाह
1. हफ्ते में 2 रात गांवों में बिताएं नेता/पदाधिकारी- बीजेपी नेताओं से अपील करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा- सभी पदाधिकारी और नेता यह सुनिश्चित कर लें कि हफ्ते में 2 रात यानी महीने में कम से कम 8 रात दूर-दराज गांवों में बिताना है. गांव में जाकर वहां की यथास्थिति जानकर वहां की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास भी करें.
2. प्राकृतिक खेती के लिए किसानों से मिले- मोदी ने कहा कि भाजपा जिला अध्यक्ष यह सुनिश्चित करें कि आपके जिले में कम से कम पांच गांव ऐसे हो, जहां एक गांव में भी केमिकल का प्रयोग न हो. इन गांवों में प्राकृतिक खेती का प्रयास कीजिए. किसानों को इसके लिए जो भी मदद चाहिए उन्हें वह उपलब्ध कराएं.
लगातार ग्रामीण वोटरों को साधने में जुटी बीजेपी
बीजेपी लगातार ग्रामीण इलाकों के वोटरों को साधने में जुटी है. अप्रैल 2023 में बीजेपी ओबीसी मोर्चा गांव-गांव चलो अभियान की शुरुआत की थी. इस अभियान के तहत ओबीसी समुदाय के लोगों को सरकार में कितनी तरजीह मिल रही है, यह बताना था.
बीजेपी कल्याणकारी योजनाओं के जरिए भी ग्रामीण मतदाताओं को लगातार साध रही है. मध्य प्रदेश की एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत 2047 तक तभी विकसित होगा जब गांव विकसित होगा.
मोदी सरकार की ई-संजीवनी योजना, पीएम आवास योजना, किसान सम्मान निधि जैसे कई बड़ी योजनाएं ग्रामीण मतदाताओं को ही लक्ष्य करके लागू किया गया है. साथ ही बीजेपी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रणनीतियां अपना रही है.
मसलन, उत्तर प्रदेश में ग्रामीण वोटरों को साधने के लिए बीजेपी जिला पंचायत अध्यक्षों, जिला पंचायत सदस्यों और बीडीसी प्रमुखों का सहारा लेने की रणनीति अपना रही है. यूपी में इन पंचायत जनप्रतिनिधियों की आबादी 7 लाख से अधिक है.
ग्रामीण इलाकों पर फोकस क्यों, 3 वजहें…
1. रूरल इंडिया की 353 सीटें- भारत में लोकसभा चुनाव के दौरान देश की 543 सीटों पर मतदान कराए जाते हैं. 543 में से 353 सीटें रूरल इंडिया यानी भारत के ग्रामीण इलाकों से संबंधित है. 108 सीटें अर्द्ध-शहरी (सेमी अर्बन) और 82 सीटें शहरी इलाकों की है.
शहरी और अर्द्ध-शहरी इलाकों की तुलना में बीजेपी की स्थिति ग्रामीण इलाकों में अभी भी कमजोर है. 2009 में बीजेपी को शहरी इलाकों की 33 सीटों पर जीत मिली थी. 2014 में यह संख्या पहुंचकर 40 हो गई. 2019 में भी शहरी इलाकों की 82 में से 40 सीट जीतने में बीजेपी कामयाब रही.
कांग्रेस की बात करें तो पार्टी को 2009 में 20, 2014 में 8 और 2019 में 14 सीटों पर जीत मिली. अन्य पार्टियों का परफॉर्मेंस कांग्रेस की तुलना में बेहतर रहा. अर्द्ध शहरी सीटों की बात की जाए तो बीजेपी यहां भी हमेशा लीड लेने में कामयाब रही है.
2014 में बीजेपी को अर्द्ध-शहरी इलाकों की 53 सीटों पर जीत मिली थी. 2019 में यह संख्या बढ़कर 58 पर पहुंच गई.
बात ग्रामीण इलाकों से संबंधित सीटों की करें तो 2009 में बीजेपी को 77 सीटों पर जीत मिली थी. 2014 में यह संख्या बढ़कर 190 पर पहुंच गई. 2019 में भी बीजेपी ने ग्रामीण इलाकों की सीटों में बढ़ोतरी दर्ज की. 2019 में पार्टी ने 207 सीटों पर जीत हासिल की.
कांग्रेस की बात करें तो पार्टी को 2009 में 123, 2014 में 28 और 2019 में 26 सीटों पर जीत मिली, अन्य पार्टियों को 2019 में 153, 2014 में 135 और 2019 में 120 सीटें मिली. कांग्रेस-बीजेपी को छोड़कर ग्रामीण इलाकों में अन्य पार्टियों के सीटों में ज्यादा बदलाव नहीं आया.
हाल ही में कई मजबूत क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है. जानकारों का कहना है कि अगर इन पार्टियों के वोट आसानी से एक-दूसरे में ट्रांसफर हो गए तो बीजेपी को ग्रामीण इलाकों में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
इंडिया गठबंधन के पार्टियों का वोट प्रतिशत 50 के आसपास है. कई सीटों पर यह 60 फीसदी से भी ऊपर है.
2. ग्रामीण इलाकों में मतदान- ग्रामीण इलाकों में मतदान का बढ़ता ट्रेंड भी झुकाव का एक कारण माना जा रहा है. सीएसडीएस के मुताबिक 2009 में 59 प्रतिशत ग्रामीण मतदाताओं ने वोट डाले थे. कुल मतदान प्रतिशत 58 था.
2014 में ग्रामीण मतदाताओं ने जमकर मतदान किया. उस साल ग्रामीण इलाकों में 67 फीसदी वोट पड़े. कुल मतदान प्रतिशत 66.4 था. 2019 में भी ग्रामीण इलाकों वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी देखी गई. इस बार 69 प्रतिशत मत पड़े.
2019 के चुनाव में कुल 67.4 प्रतिशत वोट डाले गए. जानकारों का कहना है कि 2024 में भी वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी हो सकती है. चुनाव आयोग इस बार आरवीएम सिस्टम से भी वोट कराने की तैयारी में है. इसके तहत किसी अन्य शहर में रहने वाले वोटर्स भी वोट डाल सकेंगे.
CSDS के मुताबिक 2009 में ग्रामीण इलाकों से बीजेपी 18 प्रतिशत वोट मिला था. 2014 में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. पार्टी को 31 प्रतिशत वोट ग्रामीण इलाकों में मिले. 2019 में यह संख्या 35 पर पहुंच गई.
कांग्रेस की बात की जाए तो ग्रामीण इलाकों में 2009 में पार्टी को 28 प्रतिशत वोट मिले थे. 2014 में 19 और 2019 में 17 पर आकर यह सिमट गया.
3. ग्रामीण इलाकों में सत्ता विरोधी लहर- हाल ही में बीजेपी को हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में हार का सामना करना पड़ा है. हार की वजह सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी को माना गया. कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों में बीजेपी को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा.
कांग्रेस की गारंटी स्कीम यहां काम कर गई, जिसमें आम लोगों से जुड़ी घोषणाएं शामिल थीं. बीजेपी हाईकमान को डर है कि कहीं 2024 से पहले विपक्ष ग्रामीण इलाकों में एंटी इनकंबेंसी का नैरेटिव न सेट कर दे. इसलिए पार्टी पहले ही लोगों से मिलने के लिए कार्यकर्ताओं भेज रही है.

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