लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल रही है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यूपी की फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) का एक वर्ग चाहता है कि उनके नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2024 में फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े. यहां कुर्मी समुदाय की मजबूत उपस्थिति है. बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार जो मुख्यमंत्री के करीबी विश्वासपात्र हैं. वो पहले ही पार्टी में ये कह चुके हैं कि नीतीश यूपी से आगामी लोकसभा चुनाव लड़ें.
नीतीश ने 1989 से 2004 तक लगातार छह लोकसभा चुनाव जीते हैं. नीतीश कुमार 1989 में 368,972 वोट जीते. ये उनका पहला लोकसभा चुनाव था. 2004 में नीतीश ने 471,310 वोट हासिल किया. 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल शुरू हो गया.
फूलपुर सीट क्यों है खास
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लोकसभा में उत्तर प्रदेश के फूलपुर का प्रतिनिधित्व किया था. उन्होंने साल 1952, 1957 और 1962 में वहां से लगातार तीन आम चुनाव जीत दर्ज की थी. ये सीट सिर्फ नेहरू के साथ नहीं जुड़ी हुई है. बल्कि इसके साथ जद(यू) का गणित भी गहरा है. पार्टी नेताओं का मानना है कि उत्तर प्रदेश में नीतीश की चुनावी उपस्थिति विपक्ष को एक ऐसे राज्य में बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन बनाने में मदद कर सकता है जो एक गेम चेंजर साबित हो सकती है.
80 लोकसभा सीटों में से 62 सीटों पर बीजेपी की मजबूत स्थिति है. अगर पटेल समुदाय (कुर्मी) जिसने यूपी में बीजेपी की चुनावी सफलता में एक प्रमुख भूमिका निभाई है, नीतीश की ओर झुकता है, तो यह राज्य में एक नई ताकत बन कर उभर जाएंगे.
यूपी की राजनीति पर पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला ने एबीपी न्यूज को बताया कि नीतीश का ये कदम गेमचेंजर जरूर साबित होगा. क्योंकि फूलपुर में कुर्मी तो है लेकिन दूसरी जातियां भी बहुत ज्यादा हैं. नीतीश कुमार का फूलपुर से चुनाव लड़ना एक बहुत बड़ा दाव है. नीतीश कुमार विपक्ष के एकमात्र प्रत्याशी होंगे जो फूलपुर से चुनाव लड़ेंगे. यहां पर कोई भी उनके खिलाफ चुनाव नहीं लड़ेगा. एकमात्र बसपा यहां से अपना उम्मीदवार उतार सकती है.
शुक्ला ने आगे कहा कि यहां से सभी पार्टियां कुर्मी जाति के उम्मीदवार ही उतारेंगे. बसपा यहां पर लगातार कुर्मी जाति का प्रयोग करती आई है. शुक्ला आगे कहते हैं कि अगर नीतीश कुमार फूलपुर से चुनाव लड़ते हैं और हारते हैं तो भी भारत की राजनीति में एक बहुत बड़ा गेम चेंजर साबित होगा. कई लोग पहले से ही घात लगाए बैठे हैं कि नीतीश को चुनावी लड़ाई में नुकसान हो.
शुक्ला ने कहा कि फूलपुर एक ऐसा क्षेत्र है जहां से चुनाव लड़ना बहुत बड़ा रिस्क माना जा सकता है.हालांकि अभी ये साफ नहीं है कि नीतीश कुमार यहां से चुनाव लड़ेंगे, लेकिन अगर वो ये रिस्क लेते हैं तो उनकी दावेदारी बहुत मजबूत होगी.
क्या कुर्मी-यादव-मुस्लिम-ओबीसी समर्थन आधार मॉडल को दोहराना नीतीश का मकसद
नीतीश चाहे उत्तर प्रदेश से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सहमत हों या वहां सिर्फ प्रचार करें. उनका लक्ष्य बिहार के सफल कुर्मी-यादव-मुस्लिम-ओबीसी समर्थन आधार मॉडल को दोहराना है. जिसने 2015 के विधानसभा चुनावों में नीतीश-लालू प्रसाद यादव गठबंधन के लिए भारी जीत की पटकथा लिखी थी. जद (यू) नेताओं का तर्क है कि अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी) के साथ गठबंधन में यूपी में नीतीश की उपस्थिति कुर्मी (पटेल), यादव और मुस्लिम मतदाताओं को अपने साथ ला सकती है.
सुशासन पर भरोसा करने वाले और खुद को जाति आधारित नेता के रूप में पेश नहीं करने वाले नेता के रूप में जाने जाने वाले नीतीश को बिहार में सबसे हाशिए के वर्गों के लिए काम करने का श्रेय दिया जाता है. लेकिन जाति चुनावी राजनीति की कड़वी सच्चाई होने के नाते नीतीश इस तथ्य से भी फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं कि देश भर में कुर्मी समुदाय उन्हें अपने सबसे बड़े और सबसे विश्वसनीय नेता के रूप में स्वीकार करता है.
शुक्ला ने बताया कि यूपी का राजनीति एक खुला खेल है. साफ है कि अखिलेश-मायावती एक-दूसरे के साथ नहीं जाना चाहेंगे. इस बार चुनाव में दोनों ही एक-दूसरे पर घात लगाए बैठे रहेंगे. अगर नीतीश और अखिलेश एक साथ आते हैं तो भी कोई बहुत बड़ा फायदा हो ये जरूरी नहीं है. क्योंकि बीजेपी यहां पर वोट साधने की पूरी कोशिश करेगी. लेकिन फूलपुर में नीतीश कुमार का आना बड़ी बात जरूर होगी. लेकिन जीतना उतना आसान नहीं है.
शुक्ला ने बताया कि फूलपुर को जेडीयू के नेता जितना आसान समझ रहे हैं ये क्षेत्र उतना ही मुश्किल है. फूलपुर नेहरू की सीट रही है. लेकिन उस समय यहां पर जाति आधारित वोट नहीं होता था. अब स्थिति बिल्कुल अलग है. यहां पर जातियों का ध्रुवीकरण हैं. यहां पर कुर्मी एक बड़ा वोटर है, लेकिन कड़वी सच्चाई ये है कि सिर्फ कुर्मी निर्णायक वोटर की भूमिका नहीं निभाएगा.
फूलपुर में फिलहाल वोटों का ध्रुवीकरण बहुत ज्यादा है. शुक्ला ने सवाल किया कि अगर फूलपुर में बीजेपी अनुप्रिया पटेल को उतार देती है तो क्या होगा? दूसरी तरफ अति पिछड़ा भी पीएम मोदी से जुड़ा हुआ है. जब तक यहां का अति पिछड़ा नीतीश कुमार से नहीं जुड़ता है तब तक नीतीश के लिए ये सीट निर्णायक साबित नहीं होगी. फूलपुर जितना आसान समझा जा रहा है उतना आसान नहीं है.
क्या सिर्फ माहौल बनाने के लिए फूलपुर से चुनाव लड़ने की बात
वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि अगर नीतीश कुमार फूलपुर से चुनाव हार जाते हैं तो ये उनकी राजनीति सफर का काला अध्याय बनेगा. ये बात मान ली जाएगी कि नीतीश हारकर के राजनीति से बाहर हो गए. अगर सिर्फ माहौल बनाने के लिए नीतीश फूलपुर से लड़ने की बात कह रहे हैं तो ऐसा इसलिए है क्योंकि इंडिया की लड़ाई एनडीए के खिलाफ है.
एनडीए में पीएम पद के दावेदार के लिए कोई उम्मीदवार नहीं है. इंडिया में हर बड़ा नेता और क्षेत्रीय नेता उन संभावनाओं को तलाशने की कोशिश कर रहा है जिसकी मदद से वो शिखर पर रहे.
शुक्ला ने कहा कि जब राहुल गांधी की अयोग्यता खत्म हुई तो सिर्फ बीजेपी को ही धक्का नहीं लगा, इंडिया के उन तमाम नेताओं को धक्का लगा है जो खुद को शिर्ष पर देख रहे थे. इंडिया में सभी नेताओं के सामने खुद को स्थापित करने की चुनौती है.
नीतीश के पाले में कैसे जा सकता है फूलपुर सीट
यूपी में पहले से ही अच्छी तरह से स्थापित कुर्मी (पटेल) नेता हैं. लेकिन अगर बिहार में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे नीतीश उत्तर प्रदेश के चुनावी अखाड़े में अपनी दावेदारी पेश करते हैं, तो उनकी अपील और राष्ट्रीय कद कुर्मी समुदाय की सामाजिक और राजनीतिक चेतना के साथ पूरी तरह से जुड़ सकता है.
कुर्मी (पटेल) यूपी के मतदाताओं का लगभग 8-9 प्रतिशत है और पूर्वी और मध्य यूपी के जिलों में उनकी महत्वपूर्ण उपस्थिति है. राज्य में नीतीश की मौजूदगी संख्या के लिहाज से कुर्मी समुदाय को विपक्ष की झोली में ला सकती है. ऐसे में बीजेपी के लिए यहां पर खतरा हो सकता है. फूलपुर से मौजूदा सांसद बीजेपी की केशरी देवी पटेल कुर्मी हैं.
जद (यू) नेताओं का कहना है कि उनके पास फीडबैक है कि यूपी में अगर वे अब एक राष्ट्रीय नेतृत्व की आकांक्षा रखते हैं, तो नीतीश इस भूमिका के लिए पूरी तरह से योग्य हैं.