Sanjay Singh ED Arrest: पूरे देश में सिर्फ एक ही नाम की चर्चा है. सोशल मीडिया से लेकर अखबार और टीवी चैनल तक सिर्फ एक चेहरा सुर्खियों में है और वो नाम है आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह का. संजय सिंह को ईडी ने शराब घोटाले मामले में 10 घंटे की पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया. गिरफ्तारी के वक्त भी संजय सिंह ये कहते हुए घर से निकले कि मरना मंजूर है लेकिन डरना नहीं. आइए आज आपको संजय सिंह की कहानी बताते हैं.
संजय सिंह हमेशा कहते रहे हैं कि मैंने पूरा जीवन ईमानदारी से एक फक्कड़ की तरह बिताया है. उन्होंने गिरफ्तारी से पहले भी कहा कि मैंने पहले भी कहा आज भी कह रहा हूं. मरना मंजूर है, लेकिन डरना मंजूर नहीं है. आप राज्यसभा सांसद ने कहा कि देश को दादागीरी से चलाने की कोशिश हो रही है. देश में तानाशाही हो रही है. गिरफ्तारी के बाद संजय सिंह ने अपनी मां से कहा कि आप घबराइए मत, मैं जल्द ही लौटकर आऊंगा. वह 5 दिनों तक ईडी की हिरासत में रहने वाले हैं.
कई महीनों से चल रही थी ईडी-संजय सिंह की तकरार
हालांकि, इस गिरफ्तारी को हैरानी के रूप में भी बिल्कुल भी नहीं देखा जाना चाहिए. इसकी वजह ये है कि संजय सिंह लगातार ईडी को ललकार रहे थे. वह पोस्टर लगाकर ईडी को चुनौती दे रहे थे. पिछले कई महीनों से ईडी और संजय सिंह के बीच छिड़ी रार की मिसालें बार-बार देखी जा रही थीं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो यहां तक कह दिया था कि संजय सिंह के नाम से ईडी की पैंट गीली हो जाती है. उनके इस बयान ने काफी सुर्खियां बंटोरी थीं.
आप की रीढ़ की हड्डी हैं संजय सिंह
संजय सिंह सिर्फ आम आदमी पार्टी के सांसद नहीं हैं, वो आम आदमी पार्टी की रीढ़ की तरह काम करते हैं और केजरीवाल के सारथी की तरह. एक्सपर्ट्स का कहना है कि संजय सिंह आम आदमी की प्रमुख हस्ती हैं. यूपी और पंजाब में उनकी खास भूमिका है. वह भारतीय राजनीति में एक बड़ा चेहरा बन चुके हैं. ऐसा चेहरा जो विपक्ष की राजनीति का बहुत बड़ा केंद्र है. संजय सिंह की गिनती मोदी सरकार के खिलाफ सबसे आक्रामक हमला करने वालों में होती है.
विपक्ष के बड़े नेता हैं संजय सिंह
सड़क से लेकर संसद तक संजय सिंह जब विरोधियों के खिलाफ हुंकार भरते हैं तो उनके तर्कों की काट किसी के पास नहीं होती. संजय सिंह वो नाम हैं जो तर्क के साथ तथ्यों को भी साथ लेकर चलते हैं. यही वजह है कि उनकी पहचान उनका कद सिर्फ आम आदमी पार्टी तक नहीं है. विपक्ष की तमाम पार्टियां उनकी राय से इत्तेफाक रखती हैं और संजय सिंह की गिरफ्तारी का मतलब है कि विपक्षी गठबंधन के बड़े नेता को गिरफ्तार किया गया है.
कैसा रहा है संसद में संजय सिंह का प्रदर्शन?
संजय सिंह जो ना सिर्फ विपक्ष को एकजुट रखने वाली बैठकों का हिस्सा बनते हैं, बल्कि राज्यसभा के भीतर मोदी सरकार पर सीधी चोट भी करते हैं. संजय सिंह का कद, उनका व्यक्तित्व, उनकी पहचान दूसरों से अलग क्यों हो जाती है उसके लिए हम आपको देश की संसद के भीतर उनकी मौजूदगी से रिश्ता रखने वाला एक आंकड़ा दिखाते हैं. संजय सिंह 8 जनवरी 2018 को राज्यसभा सांसद चुने गए थे.
सदन में सांसदों की हाजिरी का राष्ट्रीय औसत 79 फीसदी है, लेकिन राज्यसभा में संजय सिंह की हाजिरी 86 फीसदी है. सदन में होने वाली बहस में हिस्सा लेने का राष्ट्रीय औसत 98 है, लेकिन संजय सिंह 218 बहस का हिस्सा बने हैं. सदन में सवाल पूछे जाने का राष्ट्रीय औसत 259 है, जबकि संजय सिंह राज्यसभा में 479 सवाल पूछ चुके हैं.
राजनीति से पहले क्या करते थे संजय सिंह?
अन्ना आंदोलन से बाहर निकलकर आए संजय सिंह की पहचान एक साफ-सुथरी छवि वाले नेता के तौर पर होती है. मणिपुर मामले में संजय सिंह ने सभापति की कुर्सी के सामने पहुंचकर विरोध किया था और इसके बाद उन्हें पूरे मॉनसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था. आज हिंदुस्तान की जनता के मन में सवाल है कि संजय सिंह नाम वाले इस नेता की पूरी कहानी क्या है. अक्सर सफेद कुर्ते पायजामे में देखे जाने वाले 51 साल के संजय सिंह की जड़ें कहां से हैं और हिंदुस्तान की राजनीति का बड़ा नाम बनने से पहले वो क्या थे.
उत्तर प्रदेश का सुल्तानपुर जिला देश की राजधानी दिल्ली से करीब 700 किमी दूर है. आम आदमी पार्टी के संजय सिंह इसी सुल्तानपुर से ताल्लुक रखते हैं. उनका जन्म इसी जिले में हुआ था. संजय सिंह की मां और पिता दोनों शिक्षक थे. सुल्तानपुर के लोगों के लिए संजय सिंह गुड्डू नाम से जाने जाते थे. संजय के माता-पिता ने 12वीं की परीक्षा के बाद उन्हें इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए ओडिशा भेज दिया था. ओडिशा से कोल माइनिंग की डिग्री लेने के बाद संजय सिंह वापस लौटे थे. धनबाद में नौकरी भी ज्वाइन कर ली थी लेकिन कुछ अलग करने की सोच रखने वाले संजय का मन रमा नहीं और वो घर लौट आए.
नौकरी छोड़ समाजसेवी बन गए संजय सिंह
इसके बाद संजय सिंह की समाज सेवा का सिलसिला शुरू हुआ. वो रेहड़ी लगाने वालों के लिए लड़े. समाज सेवा केंद्र भी बनाया और रक्तदान करने की मुहिम भी चलाई. संजय सिंह खुद 40 से ज्यादा बाद रक्तदान कर चुके हैं. सुल्तानपुर के रहने वाले लोगों का स्वभाव आंदोलनकारी होता है. उनकी प्रवृत्तियां फक्कड़ किस्म की होती हैं. संजय सिंह खुद भी बार-बार अपने लिए फक्कड़ शब्द का इस्तेमाल करते हैं. सुल्तानपुर के लोग संजय भैया को उनकी बेबाकी और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जानते हैं.
अन्ना आंदोलन से मिली पहचान
एक समय दिल्ली में सूचना के अधिकार को लेकर एक बड़े आंदोलन की नींव रखी गई. इस आंदोलन की आवाज सुल्तानपुर तक पहुंची. संजय सिंह आरटीआई एक्टिविस्ट के तौर पर काम करने लगे और फिर एक दिन अरविंद केजरीवाल संजय सिंह से मिलने के लिए सुल्तानपुर पहुंचे. साल 2010 में जब अन्ना हजारे ने जंतर मंतर पर धरना देने से लेकर रामलीला मैदान में अनशन किया, तो संजय सिंह को मंच संभालने की जिम्मेदारी मिली. संजय सिंह ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा.
पार्टी जीतती गई चुनाव और बढ़ता गया संजय सिंह का कद
अन्ना आंदोलन में मनीष सिसोदिया और संजय सिंह खास रहे. यहां से धीरे-धीरे उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत हुई. जहां जहां आप ने चुनाव लड़ा सबमें संजय सिंह की बड़ी भूमिका रही. उनकी तुलना मनीष सिसोदिया से होने लगी. 2013 में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में चुनाव लड़ने का ऐलान किया. इस चुनाव में संजय सिंह को कैंडीडेट सेलेक्शन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया. यानि दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार ढूंढने का जिम्मा पार्टी ने संजय सिंह के कंधों पर छोड़ दिया.
चुनाव में जीत मिली और केजरीवाल की पार्टी कामयाबी के झंडे गाड़ती चली गई और संजय सिंह का पार्टी में कद विशाल होता गया. संजय सिंह को दिल्ली के बाहर पंजबा में पार्टी की कमान सौंपी गई. यहां पर पार्टी ने कमाल करके दिखाया. अब जब मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव होने हैं. कुछ महीने के भीतर ही 2024 का आम चुनाव होना है, उसके ठीक पहले संजय सिंह की गिरफ्तारी को आम आदमी पार्टी बीजेपी की बौखलाहट बता रही है. इंडिया गठबंधन के तमाम नेता एकसुर में संजय सिंह की गिरफ्तारी पर हमला कर रहे हैं. तय है कि इस गिरफ्तारी को विपक्ष चुनावी मुद्दा बनाएगा.
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह राजपूत बिरादरी से आते हैं. मध्य प्रदेश और राजस्थान में राजपूत वोटरों का खासा प्रभाव है, इसलिए संजय सिंह की गिरफ्तारी चुनावी मुद्दा बन सकती है. संजय सिंह के बारे में दो बाते कही जाती हैं, पहली ये कि वो हार नहीं मानते और दूसरी ये कि वो राजनीति में नहीं होते तो शायद गायक होते.
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