केंद्र सरकार ने शुक्रवार यानी 27 अक्टूबर को हलाल प्रमाणन निकायों की मान्यता और निर्यात इकाइयों के पंजीकरण की समय सीमा को बढ़ाकर 5 अप्रैल, 2024 तक कर दिया है. विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने इसी साल 6 अप्रैल को आदेश जारी किया था कि मौजूदा हलाल सर्टिफिकेशन कंपनियों को छह महीने के भीतर i-CAS (भारतीय अनुरूपता मूल्यांकन योजना) हलाल के लिए राष्ट्रीय प्रमाणन निकाय प्रत्यायन बोर्ड (NABCB) से मान्यता लेना अनिवार्य है.
ऐसे में इस स्टोरी में जानते हैं कि आखिर ये हलाल प्रमाणीकरण है क्या, इसकी मान्यता पाने की क्या प्रक्रिया है. इसके साथ ही जानेंगे कि कंपनियां अपने उत्पादों को हलाल सर्टिफाइड क्यों करवाती हैं? इस पूरे मामले को समझने के लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि आखिर ये हलाल शब्द का मतलब क्या होता है. दरअसल हलाल एक अरबी शब्द है. जिसका मतलब होता है ‘जायज’.
रेख्ता डिक्शनरी में इस शब्द का मतलब बताते हुए लिखा गया है ‘जो इस्लामी धर्म-शास्त्र के अनुसार उचित हो, जो हराम न हो, जिस पर प्रतिबंध न हो यानी जायज हो उसे हलाल कहा जाता है.’
डीजीएफटी क्या है
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की शाखा है जो निर्यात और आयात से संबंधित मुद्दों से निपटती है. दिशानिर्देशों के अनुसार, मीट को ‘हलाल सर्टिफिकेट’ मिलने के बाद ही उसके उत्पादकों को निर्यात करने की अनुमति दी जाती है.
क्या है हलाल सर्टिफिकेट
भारत में रेल से लेकर विमानन सेवाओं, फाइव स्टार होटल लेकर स्विगी-जोमैटो तक, किसी को मांस परोसने के लिए हलाल सर्टिफिकेट हासिल करना बेहद जरूरी है. यह सर्टिफिकेट यह सुनिश्चित करता है इन जगहों पर जो मांस परोसा जा रहा है वो हलाल है. मैकडोनाल्ड, डोमिनोज़ जैसी तमाम मल्टी नेशनल कंपनियां तक इसी सर्टिफिकेट के साथ काम करती हैं.
भारत में अलग-अलग सामानों के लिए अलग-अलग सर्टिफिकेट का प्रावधान है जो उनकी क्वालिटी सुनिश्चित करते हैं. उदाहरण के तौर पर औद्योगिक वस्तुओं के लिए ISI मार्क जरूरी है तो कृषि उत्पादों के लिए एगमार्क. ठीक इसी तरह अचार के लिए एफपीओ जरूरी है तो सोने के लिए हॉलमार्क. ये तो बात हुई अलग-अलग सामानों की लेकिन अब तक हलाल का सर्टिफिकेट भारत सरकार नहीं देती थी. भारत में इस सर्टिफिकेट को देने के लिए कुछ प्राइवेट संस्थान या ट्रस्ट थे. लेकिन अब इन सभी संस्थानों को सरकार की तरफ से मान्यता लेनी पड़ेगी.
कौन-कौन से संस्थान दे रहे हैं हलाल सर्टिफिकेशन
- हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
- हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
- जमीयत उलमा-ए-महाराष्ट्र- जमीयत उलमा-ए-हिंद की एक राज्य इकाई
- जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट
कंपनियां क्यों लेती है हलाल सर्टिफिकेशन?
जो भी कंपनी मुस्लिम देशों को अपना सामान बेचती हैं उस कंपनी को इन देशों को हलाल सर्टिफिकेट दिखाना पड़ता है. मुस्लिम देश उन उत्पादों को तब तक नहीं खरीदते जब तक हलाल सर्टिफिकेट नहीं हो. वहीं अगर हलाल फूड मार्केट की बात करें तो यह वैश्विक स्तर पर इसकी हिस्सेदारी 19% की है जिसकी कीमत 2.5 ट्रिलियन डॉलर के आसपास है. बता दें कि पूरी दुनिया में इस्लाम के अनुयायियों की आबादी 1.8 बिलियन है, यानी दुनिया की 24.1% आबादी मुस्लिम है.
कब शुरू हुआ हलाल सर्टिफिकेशन?
60 के दशक के बाद जब मुस्लिम आबादी पश्चिमी देशों में जाने लगी, तब मीट को परोसने से पहले सर्टिफिकेशन जैसी चीजें जरूरी हो गईं ताकि मुस्लिम समुदाय के लोगों को पता रहे कि वो किस तरह से कटा हुआ गोश्त खा रहे हैं. नब्बे के दशक के अंत तक सिर्फ मांस ही नहीं, बल्कि दवाओं और कॉस्मेटिक्स तक पर बताया जाने लगा कि वो हलाल है या नहीं. एक तरह से ये मुस्लिम मार्केट को जोड़े रखने की कोशिश थी.
हलाल का मार्केट कितना बड़ा
एड्राइट मार्केट रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 से हर साल हलाल मार्केट में 5.6 प्रतिशत की बढ़त हो रही है और 2020 में ही इसका ग्लोबल मार्केट 7 ट्रिलियन डॉलर से ऊपर जा चुका था. हालांकि इसमें केवल मांस ही नहीं, खाने की सारी चीजें, पेय पदार्थ और दवाएं भी शामिल हैं. यहां तक की कोविड वैक्सीन बनने के बाद कई मुस्लिम-बहुल देशों ने इस पर भी एतराज किया था कि वैक्सीन हलाल नहीं है. इंडोनेशियाई धर्मगुरुओं ने ये तक अपील कर डाली थी कि लोग वैक्सीन लगाने से बचें.
क्या है हलाल मीट
कुरान में परिभाषित इस्लामी नियम का पालन करते हुए किसी भी जानवर को जिबह करना (काटना) हलाल मीट है. इस नियम के अनुसार केवल एक मुस्लिम व्यक्ति ही जानवर को मार सकता है. जानवरों के गले की नस कैरोटिड धमनी और श्वासनली को काटी जाती है. इसके अलावा जिस वक्त जानवर काटा जा रहा हो उस वक्त उसका जीवित और स्वस्थ होना लाजमी है. इसके अलावा शरीर से सारा खून निकल जाना चाहिए.
इस प्रक्रिया के दौरान, एक मुस्लिम एक दुआ का पाठ करेगा, जिसे तस्मिया या शहदा के नाम से जाना जाता है. इसके साथ ही जिस जानवर को हलाल किया जा रहा है उसका सिर मक्का की दिशा में रखा जाता है. यहूदियों के यहां भी इस्लामिक नियमों की तरह ही जानवरों को काटने की परंपरा है.
क्या है हलाल और झटका में फर्क
बीबीसी की एक रिपोर्ट में बेंगलुरु की जुम्मा मस्जिद के मौलाना मक़सूद इमरान रश्दी कहते हैं, ‘पैगंबर मोहम्मद के अनुसार मांस के भीतर खून सूख जाने के बाद उसे खाने कई बीमारियां हो सकती हैं. लेकिन हलाल के दौरान जब मांस का सारा ख़ून बहा दिया जाता है तो उसके खाने पर इंसान को बीमारी नहीं होती. इसे ‘ज़बीहा’ कहते हैं.”
मौलाना रश्दी आगे कहते हैं, ”ज़बीहा करने के लिए जानवर को फ़र्श पर लिटाकर ‘बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर’ पढ़ा जाता है और उसका गला काट दिया जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान नस को इस तरीके से काटा जाता है कि जानवर का सिर और धड़ अलग न हो, ताकि उसके शरीर का सारा ख़ून बह जाए.
वहीं दूसरी तरफ झटका मीट में जानवर की गले को धारदार हथियार से एक बार में ही काट दिया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि झटका में जानवर को मारने से पहले उसे बेहोश कर दिया जाता है, ताकी उसे दर्द का ज्यादा एहसास नहीं हो. झटका मीट को लेकर लोगों का सबसे बड़ा मत ये है कि सेहत के लिहाज से झटका मीट खाना ठीक नहीं होता. इसकी एकमात्र वजह है बल्ड क्लॉटिंग.
जानवर, जो झटके से काट दिए गए हैं उनमें तेजी से ब्लड क्लॉटिंग की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. जिससे कटे हुए जगहों पर जानवर के खून का थक्का जम जाता है. ब्लड क्लॉटिंग के कारण जानवर के शरीर से खून पूरी तरह निकल नहीं पाता और ये मीट में जमने लगता है. इससे मीट का टुकड़ा न सिर्फ कड़ा हो जाता है बल्कि खून की मात्रा ज्यादा होने से जल्दी खराब होता है.
क्या है ये ब्लड क्लॉटिंग
ब्लड क्लॉटिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जो घाव लगने पर शुरू होती है, ताकि शरीर का ज्यादा खून न निकले. दरअसल, जब किसी भी जानवर के शरीर पर घाव लगता है और ब्लीडिंग शुरू होती है. ऐसे में खून में मौजूद प्लेटलेट्स और प्लाज्मा आपस में मिलकर खून को जमाने का काम करते हैं जिसे ब्लड क्लॉटिंग कहा जाता है.
भारत में हलाल मीट का हुआ था विरोध
साल 2022 में हलाल सर्टिफिकेशन को लेकर काफी चर्चा हुई थी. लोगों का मानना था कि हलाल मांस उद्योग देश के अन्य धर्मों के लोगों के खिलाफ भेदभाव करता है और मजहबी आवश्यकताओं को बनाए रखने के लिए गैर-मुस्लिमों को नौकरियों और रोजगार से अलग-थलग कर देता है.
दरअसल जब हलाल मांस की बात आती है तो इस्लामिक नियमों के कारण इसे काटने वाले का मुस्लिम होना जरूरी है. ऐसे में हलाल मीट को बैन किए जाने की मांग करते हुए कई संगठनों का कहना था कि जो भी हिन्दू इस कारोबार में थे उन्होंने इस काम को करना बंद कर दिया है.
ठीक इसी प्रकार उनका ये भी कहना है कि जब हलाल सर्टिफिकेट मांस तक सीमित नहीं होकर रेस्टोरेंट या फाइव स्टार होटल पर लागू होता है तो कस्टमर को परोसी जाने वाली हर चीज जैसे तेल, मसाले चावल, दाल सब कुछ हलाल सर्टिफिकेट की होनी चाहिए. लेकिन ये हिंदुओं और सिखों जैसे गैर मुस्लिम मांसाहारियों को भी परोसा जाता है.
ये मांस उन गैर मुस्लिमों को भी परोसा जाता है जिनकी धार्मिक मान्यताएं हलाल के उलट झटका मांस की इजाजत देती हैं वो भी इसी का सेवन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं. इसके अलावा अलग-अलग प्राइवेट संस्थान से सर्टिफिकेट लेने के कारण इसे लेने वाले को भारी भरकम रकम देनी पड़ती है जो गैर सरकारी मुस्लिम संगठनों की झोली में जाती है.
क्या शाकाहारी भोजन हलाल सर्टिफाइड है?
आम शाकाहारी प्रोडेक्ट में मांस शामिल नहीं के कारण उसे हलाल नहीं माना जा सकता है. उदाहरण के तौर कुछ शाकाहारी मिठाइयों में अल्कोहलिक तत्व हो सकते हैं. इसलिए उन्हें हलाल की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता.
यूरोपियन यूनियन ने बेहोश करने को जरूरी बताया
यूरोपियन संघ में देश इस बात को मानते हैं कि हलाल करने से पहले जानवरों को बेहोश करना चाहिए है. ये किसी भी तरीके से किया जा सकता है जैसे बिजली के झटके से, गैस से या स्टन गन से. यह नियम साल 1979 से ही ये लागू है ताकि जानवर को बेवजह के दर्द से बचाया जा सके. हालांकि ज्यादातर देश इसका फैसला समुदाय विशेष और स्लॉटर हाउस पर छोड़ देते हैं.

Rajneesh Singh is a journalist at Asian News, specializing in entertainment, culture, international affairs, and financial technology. With a keen eye for the latest trends and developments, he delivers fresh, insightful perspectives to his audience. Rajneesh’s passion for storytelling and thorough reporting has established him as a trusted voice in the industry.