Aligarh Muslim University: उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में स्थित ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी’ इन दिनों एक बार फिर से सुर्खियों में है. दरअसल, एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. देश की शीर्ष अदालत ने गुरुवार (2 फरवरी) को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर फैसला सुरक्षित रख लिया. ऐसे में जल्द ही शीर्ष अदालत की तरफ से इस मामले में फैसला सुनाया जाना है, जिस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जेबी पारदीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा की सात सदस्यीय पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया. सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2006 के फैसले से उत्पन्न एक संदर्भ पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि एएमयू एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. ऐसे में आइए समझने की कोशिश करते हैं कि ये पूरा मामला क्या है और कोर्ट से क्या मांग की गई है.
संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शिक्षण संस्थान पर क्या कहा गया है?
भारत के संविधान के आर्टिकल 30 (1) में सभी धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थान की स्थापना करने और उन्हें चलाने का का अधिकार दिया गया है. इस प्रावधान के जरिए इस बात की भी गारंटी मिलती है कि केंद्र सरकार अल्पसंख्यक समुदायों के विकास को बढ़ावा देने के प्रति प्रतिबद्ध है. प्रावधान के जरिए ये भी तय किया जाता है कि केंद्र सरकार ‘अल्पसंख्यक’ संस्थान के आधार पर उसे दी जाने वाली मदद में कोई भेदभाव नहीं करेगी.
एएमयू की स्थापना कब की गई थी?
सर सैयद अहमद खान ने 1875 में अलीगढ़ में ‘मोहम्मडन एंग्लो-ऑरिएंटल कॉलेज’ (MAO Faculty) की स्थापना की. उनका मकसद मुस्लिमों की शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ेपन को दूर करना और उन्हें सरकारी सेवाओं के लिए तैयार करना था. ‘मोहम्मडन एंग्लो-ऑरिएंटल कॉलेज’ में पश्चिमी शिक्षा के साथ-साथ इस्लामिक शिक्षा पर भी जोर दिया गया. सर सैयद अहमद खान ने महिलाओं की शिक्षा की वकालत भी की थी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अंग्रेजों के शासनकाल के समय 1920 में ‘एएमयू एक्ट’ पास कर ‘मोहम्मडन एंग्लो-ऑरिएंटल कॉलेज’ को यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया और कॉलेज की सभी संपत्तियां ट्रांसफर कर दी गईं. इस एक्ट के टाइटल में लिखा गया था, ‘अलीगढ़ में एक शिक्षण और आवासीय मुस्लिम यूनिवर्सिटी को शामिल करने के लिए एक्ट.’ इस तरह कॉलेज के तौर पर शुरू हुआ संस्थान यूनिवर्सिटी बन गया.
किस तरह हुई विवाद की शुरुआत?
दरअसल, केंद्र सरकार ने 1951 और 1965 में एएमयू एक्ट में दो संशोधन किए. इनके जरिए यूनिवर्सिटी की पूरी संरचना में बदलाव हुआ. 1951 में हुए संशोधन के जरिए मुस्लिमों के लिए अनिवार्य की गई धार्मिक शिक्षा और यूनिवर्सिटी कोर्ट में विशेष मुस्लिम प्रतिनिधित्व जनादेश को हटाया गया. 1965 में हुए संशोधन के जरिए कोर्ट की शक्तियों को अन्य निकायों के बीच बांट दिया गया. राष्ट्रपति को भी यूनिवर्सिटी की गवर्निंग बॉडी के लिए सदस्य नियुक्त करने की शक्ति मिली.
हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, कानूनी विवाद की शुरुआत 1967 में हुई, जब एस अजीज बाशा संशोधनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. इस केस को ‘एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामला’ के तौर पर जाना जाता है. केस के तहत सुप्रीम कोर्ट ने 1951 और 1965 में हुए संसोधनों की समीक्षा की. याचिकाकर्ता अजीज बाशा का कहना था कि मुस्लिमों ने एएमयू की स्थापना की है, इसलिए उनके पास इसे मैनेज करने का अधिकार है.
हालांकि, पांच जजों की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने दोनों संशोधनों को बरकरार रखा. पीठ का कहना था कि एएमयू न तो मुस्लिम अल्पसंख्यकों के जरिए स्थापित किया गया है और न ही उनके जरिए इसे मैनेज किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने बताया कि केंद्रीय कानून के जरिए एएमयू एक्ट को लागू किया गया था. आसान भाषा में कहें तो यूनिवर्सिटी को केंद्र के जरिए कॉलेज से यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला था. अदालत के इस फैसले के खिलाफ राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन हुए.
दोबारा हुआ संसोधन और चलता रहा विवाद
यही वजह थी कि 1981 में एक बार फिर से एएमयू एक्ट में संशोधन किया गया, जिसमें यूनिवर्सिटी का ‘अल्पसंख्यक दर्जा’ बरकरार किया गया. वहीं, 2005 में एएमयू ने मुस्लिम छात्रों के लिए पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल सीटों की 50% सीटें रिजर्व कर दीं. यूनिवर्सिटी के रिजर्वेशन पॉलिसी के इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया. हाईकोर्ट की तरफ से 1981 के संशोधन को अधिकार क्षेत्र से बाहर मानते यूनिवर्सिटी की रिजर्वेशन पॉलिसी रद्द की गई.
इस केस को ‘डॉ नरेश अग्रवाल बनाम भारत संघ मामला’ के तौर पर जाना जाता है. फिर 2006 में भारत सरकार और यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. हालांकि, 2016 में भारत सरकार ने यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्ज को स्वीकार करने से इनकार करते हुए अपनी अपील को वापस ले लिया. यही वजह है कि कोर्ट अब अकेले ही सुप्रीम कोर्ट में अपने अल्पसंख्यक दर्ज को लेकर लड़ाई लड़ रहा है.
यह भी पढ़ें: ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकती’, सुप्रीम कोर्ट में बोली केंद्र सरकार, SC ने क्या कहा?

Rajneesh Singh is a journalist at Asian News, specializing in entertainment, culture, international affairs, and financial technology. With a keen eye for the latest trends and developments, he delivers fresh, insightful perspectives to his audience. Rajneesh’s passion for storytelling and thorough reporting has established him as a trusted voice in the industry.