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Uttarkashi Tunnel What Happened During Rescue Operation 41 Labor Could Not Came Out


Uttarkashi Tunnel Rescue Operation: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन का शुक्रवार (24 नवंबर) को 13वां दिन है. मुश्किलें आ रही हैं, धैर्य की परीक्षा ली जा रही है, लेकिन देश अपने 41 मजदूरों से यही कह रहा है कि हिम्मत नहीं हारनी है. हर अड़चन को हराकर जीत हासिल करनी है. मजदूर सुरंग के भीतर हैं, लेकिन बाहर पूरा हिंदुस्तान उनका इंतजार कर रहा है. ड्रिलिंग के रास्ते में लोहे की रॉड आने की वजह से मशीन खराब हो गई थी. दिल्ली से एक्सपर्ट बुलाकर उन्हें ठीक कराया गया है और अब पाइप डालने का काम फिर जारी है.

कल (गुरुवार 23 नवंबर) ऐसा माना जा रहा था कि मजदूरों को शाम तक निकाल लिया जाएगा, लेकिन मशीन में खराबी आने की वजह से ऑपरेशन बीच में रुक गया. अधिकारियों का भी कहना है कि सब ठीक रहा तो दिन ढलने तक ऑपरेशन कंपलीट होगा. हिमालय की चोटी पर बसा उत्तरकाशी, गंगा और यमुना दोनों नदियों का जहां उद्गम स्थल है. उत्तरकाशी जो देवभूमि है और यहां हजारों तीर्थयात्री पवित्र धाम के दर्शन के लिए जाते हैं. उत्तराखंड के उसी उत्तरकाशी को पूरा देश टकटकी लगाए देख रहा है. बार-बार उम्मीद बंधती है कि जल्द सुरंग में फंसे हुए 41 मजदूर बाहर आने वाले हैं, लेकिन अचानक कोई अड़चन इंतजार को और बढ़ा देती है और एक बार फिर धैर्य की परीक्षा शुरू हो जाती है.

ठंड में भी लगातार चल रहा मजदूरों को निकालने का काम
कल सुबह 7:30 बजे रेस्क्यू के दौरान मशीन के सामने लोहा आ गया था. राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल (NDRF) की टीम ने गैस कटर की मदद से लोहे को काटा. अभी 7-9 मीटर की ड्रिलिंग बची है. कल ऑगर मशीन के रास्ते में पाइप रूफिंग का पाइप रास्ते में आ गया था, जिसके चलते काम रोकना पड़ा था.1.5 इंच का लोहे का पाइप, जिसे टनल में पाइप रूफिंग के लिए इस्तेमाल करते हैं, उसे अब निकल लिया गया है.

अधिकारियों के मुताबिक दोपहर तक मजदूर टनल से बाहर निकाले जा सकेंगे. ये मुश्किल घड़ी है. सुरंग में फंसे मजदूरों के लिए और रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी पूरी टीम के लिए, क्योंकि जिस जगह पर ऑपरेशन टनल चलाया जा रहा है, वहां की भौगोलिक स्थितियां बहुत आसान नहीं हैं. पहाड़ के बिल्कुल बीचों-बीच घिरे इस इलाके में दिन में धूप तो निकलती है, लेकिन शाम होते ही तापमान तेजी से गिरने लगता है. ठंड बढ़ने लगती है. तेज हवा से शरीर कांप उठता है, लेकिन रेस्क्यू ऑपरेशन रुकता नहीं. दिन हो या फिर गहरी रात. ना हाथ रुकते हैं ना मशीनें.

दीवाली की सुबह सुरंग के भीतर मलबा गिरने के बाद 41 मजदूर फंस गए थे. हादसे को करीब 300 घंटे से ज्यादा वक्त बीत चुका है. सुरंग के बाहर की तस्वीर बदल चुकी है. सीएम पुष्कर सिंह धामी बुधवार रात से सुरंग के बाहर मौजूद हैं और वहीं से अपने तमाम सरकारी कामकाज निपटा रहे हैं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ना सिर्फ सुरंग के भीतर गए, बल्कि उन्होंने सुरंग में फंसे मजदूरों से भी बात की.

सीएम पुष्कर सिंह धामी भी मौजूद हैं
पुष्कर सिंह धामी सुरंग के बाहर मजदूरों का इंतजार कर रहे हैं. मजदूरों का ढांढस बंधा रहे हैं कि वो घबराएं नहीं सरकार ने पूरी ताकत लगा रखी है. उत्तरकाशी की सुरंग के बाहर सिर्फ विज्ञान नहीं बल्कि भगवान से भी मदद मांगी जा रही है. सुरंग के बाहर गाजे बाजे के साथ भगवान की डोली लाई जा रही है. सुरंग के दरवाजे पर बाबा बौखनाग का मंदिर भी बनाया गया है, क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि बाबा बौखनाग नाराज हैं और इसी वजह से यह घटना घटी.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जब रेस्क्यू ऑपरेशन का जायजा लेने के लिए सुरंग के अंदर जा रहे थे तो पहले उन्होंने प्रवेश द्वार पर बौखनाग बाबा से आशीर्वाद लिया था और उसके बाद अंदर दाखिल हुए थे. इतना ही नहीं ऑपरेशन टनल से जुड़े विदेशी एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स ऑपरेशन को रोज लीड करने से पहले सुरंग के बाहर बनाए गए इस मंदिर में आकर आशीर्वाद लेते हैं. अर्नोल्ड डिक्स ऐसे कई रेस्क्यू ऑपरेशन को सफलता से अंजाम दे चुके हैं

सुरंग के बाहर बनाया गया बाब बौखनाग का मंदिर
सुरंग के बाहर बाबा बौखनाग के मंदिर के पीछे भी एक कहानी है. दरअसल, यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि सुरंग हादसा बाबा बौखनाग की नाराजगी की वजह से हुआ है. स्थानीय लोगों के मुताबिक चारधाम ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के लिए बन रही सुरंग के निर्माण में मंदिर को तोड़ दिया गया था और इसी के बाद ये हादसा हुआ. बौखनाग देवता को इलाके का रक्षक माना जाता है और स्थानीय लोगों के कहने के बाद सुरंग के बाहर ये मंदिर स्थापित किया गया था. धर्म और विज्ञान कहीं भी कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है, लेकिन बार-बार रेस्क्यू ऑपरेशन में अड़चन आ रही है. देश के मन में सवाल है कि जब बुधवार रात तक ये बताया जा रहा था कि किसी भी वक्त सुरंग के भीतर से खुशखबरी आ सकती है तो फिर अचानक क्या हो गया?

लोहे की रॉड की वजह से रुक गया रेस्क्यू 
बुधवार रात को पूरे देश के मन में उल्लास था कि एनडीआरएफ के जवान सुरंग के अंदर जा रहे हैं यानि मजदूर अब बाहर आएंगे, क्योंकि ये बताया गया था कि पाइप का काम पूरा होेने पर पहले एनडीआरएफ के जवान अंदर जाएंगे और मजदूरों को बताएंगे कि बाहर आने का तरीका क्या है. ऐसा इसलिए था, क्योंकि इन्ही पाइप के जरिए सुरंग के भीतर एक और सुरंग बनाई जा रही है और 800 एमएम के इस पाइप से रेंगते हुए मजदूरों को बाहर आना है, लेकिन फिर हुआ क्या? हुआ ये कि जब 8वां पाइप वेल्डिंग करके सुरंग के बीचों बीच मलबे में ड्रिल किया जा रहा था तो वहां अचानक लोहे की रॉड आ गई और रॉड की वजह से ड्रिलिंग करने वाली अमेरिकी ऑगर मशीन खराब हो गई. ऑगर मशीन स्टील या लोहे को नहीं भेद सकती. बस बड़ी चट्टानों को भेद सकती.

कल्पना करना मुश्किल है कि सुरंग के भीतर जहां एक-एक पल का इंतजार मुश्किल है. जहां 9 दिन बाद मजदूरों को खाना मिला था. जहां बिजली और पानी तो है, लेकिन सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती. वो मजदूर आखिर अपना वक्त कैसे काटते होंगे. टनल में 41 मजदूरों के साथ गब्बर सिंह नेगी भी मौजूद हैं. गब्बर सिंह नेगी के भाई ने बताया कि वो कीर्तन और एक्टिविटी करवाकर मजदूरों को व्यस्त रखते हैं ताकि सबका हौसला बना रहे.

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