UP Politics: 4 जून 2024 वो तारीख थी जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए थे और उसी दिन शाम करीब चार बजे के बाद से ही राजनीतिक पंडितों के बीच एक चर्चा चल पड़ी कि अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की विदाई तय है. इस चर्चा ने तब और जोर पकड़ लिया, जब उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और उनके बाद डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने भी थोड़े बगावती तेवर अपनाए.
लखनऊ-दिल्ली एक कर दिया. बयान भी दे दिया कि संगठन सरकार से बड़ा होता है लेकिन चुपचाप बैठे योगी आदित्यनाथ ने बिना कुछ कहे, बिना कुछ बोले, बिना कुछ किए भी ये साबित कर दिया कि उत्तर प्रदेश में न तो सरकार बड़ी है न ही संगठन बल्कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए उपयोगी सिर्फ और सिर्फ योगी हैं.
केशव और योगी के बीच कब शुरू हुई तकरार?
इस बात को सात साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, जब केशव प्रसाद मौर्य की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को नकार दिया गया था और योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. इन सात साल में कम से कम 70 बार बात हुई कि केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ के बीच सबकुछ ठीक नहीं है. और जब भी इस बात को थोड़ी हवा मिलनी शुरू हुई, आलाकमान ने उसपर पानी डाल दिया. सबकुछ जस का तस हो गया.
अब भी यही हो रहा है. इस बार भी पिछले करीब दो महीने में कम से कम 20 बार इस बात का जिक्र हो चुका है कि केशव प्रसाद मौर्य नाराज हैं. और ये बात उठी तब जब बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में केशव प्रसाद मौर्य ने कह दिया कि संगठन सरकार से बड़ा होता है.
अखिलेश यादव ने आग में डाल दिया घी!
तो इस बात को कुछ यूं उछाला गया कि केशव प्रसाद मौर्य ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. इसके बाद केशव प्रसाद मौर्य कई बार दिल्ली आए. बीजेपी के बड़े-बड़े नेताओं से मुलाकात की. और लखनऊ लौट गए. इसपर बीजेपी की ओर से तो कुछ नहीं कहा गया, लेकिन विपक्ष और खास तौर से अखिलेश यादव-शिवपाल यादव चुटकी लेते हुए दिखे.
बची खुची कसर केशव प्रसाद मौर्य के आरक्षण वाली चिट्ठी ने पूरी कर दी, जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विभाग में संविदाकर्मियों के आरक्षण का सवाल उठाया गया था. चिट्ठियां पुरानी थीं, लेकिन वायरल तब हुईं जब केशव प्रसाद मौर्य की नाराजगी की बात सामने आई. इससे पहले केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी आरक्षण का सवाल पूछा था, जिसे लेकर कहा गया कि यूपी बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं है.
फिर तो दिल्ली से लेकर लखनऊ तक में बैठे पत्रकारों ने मुख्यमंत्री योगी की विदाई के गीत गाने शुरू कर दिए.हवाला दिया जाने लगा कि फलां विधायक नाराज हैं, इसलिए योगी की कुर्सी खतरे में है. ओम प्रकाश राजभर नाराज हैं..संजय निषाद नाराज हैं और भी बीजेपी के ही नेता नाराज हैं…तो मुख्यमंत्री योगी को कुर्सी छोड़नी पड़ेगी.
योगी आदित्यनाथ चुपचाप करते रहे अपना काम
लेकिन हुआ क्या. कुछ भी नहीं. खुद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कह दिया कि मुख्यमंत्री की कुर्सी बदलने वाली नहीं है. लेकिन इसके बाद भी बात होनी बंद नहीं हुई. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बैठक बुलाई तो न तो केशव प्रसाद मौर्य पहुंचे और न ही ब्रजेश पाठक. इसको लेकर अभी चर्चा चल ही रही थी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली चले गए. और वहां से लौटे तो फिर लगा कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं है. और शायद बात भी यही है कि अभी तो कुछ नहीं हुआ है. क्योंकि अगर कुछ हुआ होता, तो 29 जुलाई को वो न होता, जो हुआ.
योगी डटे थे और डटे रहेंगे
और हुआ ये कि 29 जुलाई को उत्तर प्रदेश की विधानसभा का सत्र शुरू होने से पहले जब मुख्यमंत्री ने एनडीए की बैठक बुलाई तो मुख्यमंत्री के तरफ केशव प्रसाद मौर्य और दूसरी तरफ ब्रजेश पाठक बैठे. ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद भी बैठे. अनुप्रिया पटेल की पार्टी से मंत्री आशीष पटेल भी मौजूद रहे.
इतना ही नहीं सदन शुरू होने से पहले जो मीडिया ब्रिफिंग हुई उसमें भी मुख्यमंत्री के आजू-बाजू दोनों ही डिप्टी सीएम मौजूद थे. तो मतलब तो साफ है. कि आप कयास लगाते रहिए. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को केंद्र में रखकर उनके ईर्द-गिर्द सियासी कहानियां बुनते रहिए. लेकिन योगी अभी तो डटे रहेंगे. और ऐसे ही डटे रहेंगे जैसे वो पिछले सात साल से डटे हुए हैं. क्योंकि बीजेपी को भी पता है कि यूपी के लिए अभी तो उपयोगी सिर्फ योगी हैं और कोई नहीं.

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