India Sri Lanka Relations: श्रीलंका, हिन्द महासागर में भारत का अहम पड़ोसी देश है. जब-जब श्रीलंका पर संकट आया है, भारत ने अपने पड़ोसी होने के कर्तव्य को बखूबी निभाया है. पिछले साल भी जब श्रीलंका अपने सबसे बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा था, उस वक्त भी भारत ने दिल खोलकर उसकी मदद की थी. भारत ने श्रीलंका को बचाने के लिए न केवल आर्थिक मदद की थी, बल्कि वहां खून-खराबा रोकने में भी कूटनीतिक तरीके से सहायता की थी.
हालांकि इंडो-पैसिफिक रीजन में अपना दबदबा बढ़ाने की कवायद में चीन का पिछले कुछ सालों से श्रीलंका में प्रभुत्व बढ़ रहा था, लेकिन 2022 का आर्थिक संकट श्रीलंका के लिए सबक सरीखा था. अब श्रीलंका ने भारत को अपना सबसे भरोसेमंद दोस्त बताया है.
राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे का भारत दौरा
इस बीच श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे 21 जुलाई से भारत की दो दिवसीय यात्रा करेंगे. इस दौरान उनके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ द्विपक्षीय मसलों पर विस्तार से बातचीत होने की संभावना है. कोलंबो में अधिकारियों ने 9 जुलाई को यह जानकारी दी है. राष्ट्रपति बनने के बाद से विक्रमसिंघे की यह पहली भारत यात्रा होगी. भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा अगले हफ्ते के शुरू में श्रीलंका जाएंगे, इस दौरान वे रानिल विक्रमसिंघे की भारत यात्रा से जुड़े एजेंडे और व्यवस्थाओं पर काम करेंगे. रानिल विक्रमसिंघे के साथ भारत यात्रा पर वहां से एक प्रतिनिधिमंडल भी आएगा, जिसमें मत्स्य मंत्री डगलस देवनंदा, बिजली और ऊर्जा मंत्री कंचन विजेशेखरा, विदेश मंत्री अली साबरी और राष्ट्रपति स्टाफ के प्रमुख सागला रत्नायके शामिल हैं.
आर्थिक संकट में भारत ने बचा लिया
श्रीलंका की ओर से भारत की इस मदद के लिए चारों तरफ से तारीफ की जा रही है. मदद की सराहना करते हुए श्रीलंका ने कहा है कि वित्तीय संकट से समय भारत ने हमें बचा लिया. तारीफों का पुल बांधते हुए श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने (Mahinda Yapa Abeywardena) ने कहा है कि जिस तरह से भारत ने आर्थिक संकट के वक्त मदद दी, वैसी मदद दुनिया के किसी और देश ने नहीं की.
अब तक श्रीलंका को 4 अरब डॉलर की मदद
जब पिछले साल द्वीपीय देश श्रीलंका आर्थिक उथल-पुथल में फंसा था तो उस वक्त भारत ने अलग-अलग तरीकों से श्रीलंका को करीब 4 अरब डॉलर की मदद दी थी. ये कितनी बड़ी मदद थी, इससे समझने के लिए ये जानना जरूरी है कि भारत की ओर से दी गई वित्तीय सहायता अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की कुल प्रत्याशित विस्तारित निधि सुविधा (whole anticipated Prolonged Fund Facility) से भी ज्यादा थी. ये भारत के ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति के तहत उठाया गया बेहद ही मानवीय और संवेदनशील कदम है.
इंडियन ट्रैवल कांग्रेस के प्रतिनिधियों के लिए कोलंबो में भव्य रात्रिभोज समारोह का आयोजन किया गया था. इसी समारोह में श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष अभयवर्धने ने ये बातें कही. उन्होंने तो इतना तक कह डाला कि अगर भारत ने वक्त रहते श्रीलंका को नहीं बचाया होता तो हम सभी को एक और रक्तपात का सामना करना पड़ता. श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष के बयान से भी समझा जा सकता है कि भारत की ओर से एक अच्छे पड़ोसी होने की जिम्मेदारी कितनी गंभीरता से निभाया गया.
भारत है श्रीलंका का सबसे भरोसेमंद दोस्त
श्रीलंका और भारत सांस्कृतिक, राष्ट्रीय और नीतिगत रूप से बहुत करीब से जुड़े हुए देश हैं, इस पहलू का जिक्र करते हुए श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष अभयवर्धने ने ये भी कहा कि भारत श्रीलंका का एक बहुत करीबी सहयोगी और भरोसेमंद दोस्त रहा है और जब भी श्रीलंका मुसीबत में पड़ा है, भारत ने हमेशा ही मदद की है.
इतना ही नहीं श्रीलंका के ऋणों के पुनर्गठन को 12 वर्ष के लिए बढ़ाने को भी भारत तैयार हो गया है. इसके लिए भी श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष ने धन्यवाद देते हुए कहा कि कभी ऐसी उम्मीद नहीं थी और न ही इतिहास में भी किसी देश ने श्रीलंका को इस तरह की सहायता दी है. जब श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष भारत को सबसे भरोसेमंद दोस्त बता रहे थे, उस वक्त समारोह में श्रीलंका में भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बागले और श्रीलंका के पर्यटन और भूमि मंत्री हरिन फर्नांडो भी मौजूद थे.
श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष का मानना है कि भारत की ओर मिली सहायता की वजह से उनके देश को 6 महीने तक जीवित रहने में मदद मिली. इसके लिए उन्होंने भारत के साथ ही भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी धन्यवाद दिया. जिस तरह श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने ने भारत को लेकर बातें कही है, ये दिखाता है कि अब श्रीलंका के ऊपर से चीन का जो असर है वो धीरे-धीरे कम हो रहा है या फिर श्रीलंका, चीन के मकड़जाल से निकलने में भारत की भूमिका को और बड़ी देख रहा है. ये भारत के लिए भी सामरिक नजरिए से काफी महत्वपूर्ण है.
श्रीलंका की मदद करना जारी रखेगा भारत
श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष के इस रुख के बाद भारत की ओर से भी कहा गया है कि वित्तीय संकट से उबरने में श्रीलंका की मदद करना जारी रखेंगे. कोलंबो में निर्माण, बिजली और ऊर्जा एक्सपो 2023 के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए भारत के उप उच्चायुक्त विनोद के जैकब ने ये बातें कही. उन्होंने कहा कि भारत और श्रीलंका के बीच हाल में संबंध गहरे हुए हैं और इससे दोनों देशों के बीच दोस्ती और व्यापक सहयोग और भी मजबूत हुआ है.
इस साल जनवरी में आईएमएफ की ऋण प्रक्रिया शुरू करने के लिए श्रीलंका को जरूरी वित्त पोषण के संबंध में आश्वासन देने वाला पहला देश भारत ही था. इसका जिक्र करते हुए विनोद के जैकब ने कहा कि जापान और पेरिस क्लब के साथ ऋणदाता समिति के सह-अध्यक्ष के रूप में भारत रचनात्मक भूमिका निभाना जारी रखेगा. भारत जनवरी 2023 में श्रीलंका के वित्त पोषण और ऋण पुनर्गठन के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को अपना समर्थन पत्र सौंपने वाला पहला देश था.
हिंद महासागर में सामरिक महत्व वाला देश
भारत और श्रीलंका हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित दो दक्षिण एशियाई देश हैं. भौगोलिक दृष्टि से, श्रीलंका भारत के दक्षिणी तट पर स्थित है, जो पाक जलडमरूमध्य (Palk Strait) से अलग होते हैं. भारत के लिए श्रीलंका हिंद महासागर में सामरिक महत्व रखने वाला द्वीपीय देश है.
श्रीलंका में 2022 में सबसे बड़ा आर्थिक संकट
श्रीलंका को 1948 में ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी. उसके 7 दशक बाद श्रीलंका के सामने पिछले साल सबसे बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया था. ये संकट विदेशी मुद्रा की भारी कमी की वजह से पैदा हुआ था. आर्थिक संकट ने धीरे-धीरे राजनीतिक संकट का रूप ले लिया था.
2022 की शुरुआत में श्रीलंका में लोगों को बिजली कटौती और ईंधन जैसी बुनियादी चीजों की कमी का सामना करना पड़ा. महंगाई का स्तर चरम पर पहुंच गया था. मुद्रास्फीति की दर प्रति वर्ष 50% तक बढ़ गई थी. वहां बसों, ट्रेनों और चिकित्सा वाहनों जैसी जरूरी सेवाओं के लिए ईंधन की कमी हो गई थी. श्रीलंका के पास और आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा का पर्याप्त भंडार नहीं था. ईंधन की कमी के कारण पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई थी. अप्रैल 2022 आते-आते तक लोगों का गुस्सा राजधानी कोलंबो में विरोध प्रदर्शन के जरिए निकलना शुरू हो गया और देखते ही देखते ये विरोध प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया था. अप्रैल-मई 2022 में श्रीलंका अपने इतिहास में पहली बार विदेशी ऋण पर ब्याज भुगतान करने में विफल रहा था.
आर्थिक दुश्वारियां राजनीतिक संकट में तब्दील
श्रीलंका में आर्थिक दुश्वारियां राजनीतिक संकट में तब्दील हो गई. राजपक्षे परिवार के खिलाफ श्रीलंकाई लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. मई 2022 की शुरुआत में महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा. हालात इतने बुरे हो गए थे कि प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री कार्यालय पर हमला बोलकर उस पर क़ब्ज़ा जमा लिया.
भारी विरोध प्रदर्शन के चलते राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा और 14 जुलाई 2022 को गोटाबाया के आधिकारिक इस्तीफे का एलान किया गया. उसके बाद देश के सांसदों ने गुप्त मतदान कर रानिल विक्रमसिंघे को कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर चुन लिया. कार्यवाहक राष्ट्रपति की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने पूरे देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी. ऐसे मुश्किल वक्त में भारत ने आगे बढ़कर आर्थिक मुसीबतों और बढ़ते ईंधन के दामों से निपटने के लिए श्रीलंका को दिल खोलकर मदद की. ये मदद 4 अरब डॉलर तक पहुंच गई.
चीन के कर्ज के मकड़जाल में फंसा श्रीलंका
इंडो पैसिफिक रीजन में चीन लगातार अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. उसके विस्तारवादी और आक्रामक नीति का ही नतीजा है कि वो श्रीलंका में भी अपना प्रभुत्व बढ़ना चाहता था. चीन ने धीरे-धीरे श्रीलंका को अपने कर्ज के मकड़जाल में फंसाया. ऐसे तो श्रीलंका के आर्थिक संकट के लिए बरसों का आर्थिक कुप्रबंधन और सरकारी भ्रष्टाचार के साथ ही राजनीतिक कारक भी जिम्मेदार हैं, लेकिन द्विपक्षीय ऋणदाता के तौर पर चीन की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण है.
श्रीलंका में चीनी कर्ज का हिस्सा 1990 के दशक के अंत में सिर्फ़ 0.3% था. लेकिन 2000 के बाद से ही श्रीलंका के कर्ज में हिस्सेदारी लगातार बढ़ने लगी. 2016 में चीन की हिस्सेदारी बढ़कर 16% हो गई. कहानी यहीं नहीं थमी. 2022 के आखिर होते-होते श्रीलंका में चीनी कर्ज का भंडार 7.3 अरब अमेरिकी डॉलर तक जा पहुंचा. ये राशि श्रीलंका के सार्वजनिक विदेशी ऋण का 19.6% हिस्सा था.
भीषण आर्थिक संकट में चीन से नहीं मिली मदद
चीन ने श्रीलंका को बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के लिए भी बड़ी मात्रा में उधार दिया. इसका लाभ उठाते हुए चीन ने श्रीलंका के साथ कुछ परियोजनाओं को अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के साथ जोड़ दिया. पहले कर्ज बुनियादी परियोजनाओं के नाम पर कर्ज देते गए और बाद में चीन ने कर्ज की ब्याज अदायगी में सहायता और भुगतान सहायता के तौर कर्ज बढ़ता गया. श्रीलंका जब-जब चीन से ऋण के पुनर्गठन किए जाने की गुहार लगाता था, चीन उसे खारिज कर देता था. 2014 और 2017 में चीन ऐसा कर चुका था. 2022 में जब श्रीलंका बुरी तरह से आर्थिक कुचक्र में फंस गया, उस वक्त भी चीन की ओर से ऋण के पुनर्गठन के लिए श्रीलंका की गुजारिश पर कोई सक्रियता नहीं दिखाई गई.
भारत की ओर से बढ़-चढ़कर मदद
ऐसे में मुश्किल वक्त में भारत ने न सिर्फ़ श्रीलंका की आर्थिक मदद की, बल्कि भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से श्रीलंका को वित्तीय सहायता दिलाने में भी बढ़-चढ़कर मदद कर रहा है. दरअसल भारत के लिए श्रीलंका की अहमियत काफी है. हिंद महासागर में चीन के वर्चस्व को रोकने के लिए ये जरूरी है कि श्रीलंका को बीजिंग के चुंगल से बाहर निकाला जाए. अब भारत श्रीलंका को दिए गए कर्ज के पुनर्गठन के लिए भी तैयार हो गया है. इतना ही नहीं भारत के पर्यटन संगठन ट्रैवल एजेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से श्रीलंका में पर्यटन गतिविधियां बढ़ाने में मदद करने का भी भरोसा दिया गया है.
इंडो पैसिफिक रीजन और बिम्सटेक का गणित
भारत चाहता है कि इंडो पैसिफिक रीजन में चीन का जो रुख है, उससे अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानूनों का उल्लंघन न हो. भारत हमेशा से ही इंडो-पैसिफिक रीजन में बाधारहित व्यापार के पक्ष में रहा है. इस रीजन के लिए दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का अंतरराष्ट्रीय संगठन बिम्सटेक की भूमिका अहम है. इस संगठन में भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमा, थाईलैंड, नेपाल और भूटान शामिल हैं. बिम्सटेक को बंगाल की खाड़ी स्थित देशों के मंच के तौर भी जाना जाता है. भारत को छोड़कर बिम्सटेक के तमाम देशों में चीन किसी न किसी तरह से अपनी भूमिका और प्रभाव बढ़ाने की फिराक में हमेशा रहता है.
भारत और बिम्सटेक दोनों के लिए श्रीलंका का चीन की चंगुल से निकला जरूरी है. ये एक तरह से इंडो-पैसिफिक रीजन के लिए कूटनीतिक कदम होगा. श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने बिम्सटेक को पर्यटन के लिहाज से एक सीमा-मुक्त क्षेत्र बनाने का सुझाव दिया है. ट्रैवल एजेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यक्रम को कोलंबो में संबोधित करते हुए 7 जून को रानिल विक्रमसिंघे ने कहा था कि बंगाल की खाड़ी स्थित सात देशों के बहु-क्षेत्रीय तकनीकी औरआर्थिक सहयोग मंच बिम्सटेक को पर्यटन का एक सीमा-मुक्त क्षेत्र बना दिया जाना चाहिए. हालांकि ये तभी संभव है, जब भारत की दिलचस्पी इसमें सबसे ज्यादा हो.
निवेश और व्यापार के नजरिए से अहम है भारत
व्यापारिक नजरिए से भी श्रीलंका के लिए भारत बेहद महत्वपूर्ण है. भारत और श्रीलंका आर्थिक और वाणिज्यिक साझेदारी पिछले दो दशक में मजबूत हुई है. परंपरागत रूप से भारत, श्रीलंका के सबसे बड़े व्यापार भागीदारों में से एक रहा है और श्रीलंका सार्क देशों में भारत के सबसे बड़े व्यापार भागीदारों में से एक बना हुआ है. भारत 2021 में 5.45 बिलियन अमेरिकी डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था. साल 2000 में भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौता लागू हुआ था. इससे दोनों देशों के बीच व्यापार के विस्तार में काफी मदद मिली.
श्रीलंका, अमेरिका और ब्रिटेन के बाद सबसे ज्यादा निर्यात भारत को ही करता है. भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते का लाभ वहां के 60% से अधिक निर्यात को मिलता है. इतना ही नहीं श्रीलंका में भारत एक प्रमुख निवेशक देश है. श्रीलंका में भारत से 2005 से 2019 तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) करीब 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा था. हालांकि इस मामले में चीन पहले से ही सबसे बड़ा निवेशक रहा है. चीन का 2010-2019 के दौरान कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 23.6% हिस्सा था, जबकि भारत के लिए ये आंकड़ा 10.4% था.
लेकिन अब चीन के कर्ज के मकड़जाल से निकलने के लिए श्रीलंका हाथ-पैर मार रहा है, तो ऐसे में उसके लिए निवेशक के तौर पर भारत से बेहतर विकल्प नहीं मिल सकता है. इसका असर दिख भी रहा है. श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के मुताबिक भारत से अब तक कुल 2.2 बिलियन डॉलर से ज्यादा का श्रीलंका में एफडीआई हुआ है. 2021 में तो भारत, श्रीलंका के लिए FDI का सबसे बड़ा स्रोत था, जिसकी राशि 142 मिलियन डॉलर थी.
श्रीलंका के लिए पर्यटन का सबसे बड़ा स्रोत है भारत
पर्यटन के लिहाज से भी भारत, श्रीलंका के लिए काफी मायने रखता है. पहले की तरह ही 2022 में भी एक लाख से ज्यादा पर्यटकों के साथ भारत श्रीलंका के लिए पर्यटकों का सबसे बड़ा स्रोत था. श्रीलंका में हर पांच से छह पर्यटकों में से एक भारतीय होता है. चेन्नई-जाफना के बीच उड़ानों की बहाली से भी दोनों देशों के लोगों को करीब लाने में मदद मिल रही है. उम्मीद है कि भविष्य में दोनों देशों के बीच फेरी सेवाओं से इसे और बढ़ावा मिलेगा.
प्राचीन काल से ही भारत और श्रीलंका के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यापारिक संबंधों का एक लंबा इतिहास रहा है. भारत और श्रीलंका का संबंध सदियों पुराना है. तमिल मूल के लोगों की संख्या भी श्रीलंका में काफी है. इसके अलावा भारतीय उपनाम ‘सिंह’ और श्रीलंकाई उपनाम ‘सिंघे’ के बीच समानता भी ये दर्शाता है कि दोनों देश आनुवंशिक तौर से जुड़े हैं. यही वजह है कि श्रीलंकाई संसद के अध्यक्ष का कहना है कि भारत, श्रीलंका के लोकाचार का हिस्सा है, उसके दिल का हिस्सा है.
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