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Top Archaeologists Criticize Madras HC Order For Removal Of Ancient Tomb From The Court Complex


Madras Excessive Court: देश के कुछ शीर्ष आर्कियोलॉजिस्ट ने मद्रास हाईकोर्ट की ओर से केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय को कोर्ट से 300 साल पुराने संरक्षित मकबरे को हटाने के निर्देश देने के मामले की कड़ी आलोचना की है. भारतीय पुरात्व विभाग (एसएसआई) इस आदेश के खिलाफ कोर्ट की खंड पीठ में याचिका दायर करने की तैयारी कर रहा है.

यह मकबरा 1687 से 1692 तक मद्रास के राज्यपाल रहे एलिहू येल ने अपने बेटे डेविड येल और दोस्त जोफस हायमर की याद में बनवाया था. ब्रिटेन लौटने के बाद येल ने भारत से जुटाए धन का काफी बड़ा हिस्सा ‘कोलीगेट स्कूल’ को दिया, जिसे बाद में येल कॉलेज नाम का दिया गया और अब यह येल यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है. यह दुनिया के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में से एक है.

1921 में किया गया संरक्षित स्मारक घोषित
एएसआई ने तत्कालीन प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1904 के तहत पहली बार 1921 में मकबरे को ‘संरक्षित स्मारक’ घोषित किया था. स्वतंत्रता के बाद इसे एक ‘संरक्षित स्मारक’ की श्रेणी में लाया गया. कोर्ट में अधिवक्ताओं, कर्मचारियों, वादियों, सरकारी अधिकारियों की संख्या बढ़ने से वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है इसलिए यहां बहु-स्तरीय पार्किंग बनाई जानी है और इसके लिए ही अदालत परिसर में स्थित इस मकबरे का स्थानांतरण प्रस्तावित है.

कोर्ट ने क्यों दिया ये फैसला
कानून के अनुसार संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के दायरे में कोई निर्माण नहीं किया जा सकता,यह मकबरा विकासात्मक गतिविधियों के रास्ते में आ रहा है. मद्रास हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता बी मनोहरन की याचिका पर स्थानांतरण आदेश पारित किया था. कोर्ट ने आदेश में कहा कि मकबरे का न तो पुरातात्विक महत्व है और न ही ऐतिहासिक महत्व है, न ही यह कोई कलात्मक कृति है. सुनवाई के दौरान एएसआई ने स्थानांतरण का विरोध करते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 49 के खिलाफ है, जिसमें हर राज्य को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह प्रत्येक स्मारक या कला की दृष्टि से, ऐतिहासिक महत्व वाले स्थानों या वस्तुओं को सुरक्षित करे.

आर्कियोलॉजिस्ट ने बताया दुर्भाग्यपूर्ण फैसला
कुछ प्रसिद्ध आर्कियोलॉजिस्टों ने इस आदेश के खिलाफ तर्क दिया कि अदालत के पास किसी स्मारक के कलात्मक या पुरातात्विक महत्व को तय करने की विशेषज्ञता नहीं है. एएसआई के संयुक्त महानिदेशक (रिटायर) डॉ. एम नंबिराजन का कहना है कि यह मकबरा ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका निर्माण एहिलु येल ने कराया था, जिन्होंने विश्व प्रसिद्ध येल  यूनिवर्सिटी स्थापना की थी. एक अन्य प्रसिद्ध आर्कियोलॉजिस्ट डॉ. जीएस ख्वाजा ने कहा कि यह एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण आदेश है. स्मारक संसद के अधिनियम के तहत संरक्षित है और हाईकोर्ट कानून से ऊपर नहीं है.

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