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Termination Of Being pregnant: Supreme Court CJI DY Chandrachud Says Having Waited (*26*) 26 Weeks, Cant The Mother Wait (*26*) Few More ANN


Termination of Being pregnant Case In SC: गर्भ में पल रहे बच्चे के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (12 अक्टूबर) को अहम टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि जब गर्भपात के लिए कानून में तय मियाद पूरी हो चुकी हो और बच्चा गर्भ में स्वस्थ हो, तो सिर्फ परिवार के चाहने पर उसकी धड़कन बंद कर देना सही नहीं है. 

कोर्ट ने 26 हफ्ते की गर्भवती विवाहित महिला को सलाह दी कि वह कुछ हफ्ते और प्रतीक्षा कर बच्चे को जन्म दे. चूंकि, सरकार बच्चे का ध्यान रखने को तैयार है, इसलिए जन्म के बाद उसे सरकार को सौंप दिया जाए. मामले की सुनवाई आज (गुरुवार, 12 अक्टूबर) अधूरी रही. कोर्ट ने इसे शुक्रवार (13 अक्टूबर) को दोबारा सुनवाई के लिए लगाते हुए माता-पिता, उनके वकील और केंद्र सरकार की वकील को आपस में बात कर समाधान निकालने को कहा है.

डॉक्टर ने क्या कहा?
पहले से 2 बच्चों की मां ने अपनी मानसिक और पारिवारिक समस्याओं के चलते गर्भ गिराने की मांग की है. 9 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की बेंच ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स को महिला को भर्ती कर गर्भपात की प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया था. लेकिन 10 अक्टूबर को एम्स के एक विशेषज्ञ डॉक्टर ने केंद्र सरकार की वकील को ईमेल भेज कर बताया कि बच्चा गर्भ में सामान्य लग रहा है. अगर उसे मां के गर्भ से बाहर निकाला गया, तो उसके जीवित बाहर आने की संभावना है. ऐसे में गर्भपात के लिए पहले ही उसकी धड़कन बंद करनी होगी. डॉक्टर ने यह भी बताया कि अगर बच्चे को अभी बाहर निकाल कर जीवित रखा गया, तो वह शारिरिक और मानसिक रूप से अपाहिज हो सकता है.

डॉक्टर की इस रिपोर्ट के बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से गर्भपात का आदेश वापस लेने का अनुरोध किया. बुधवार को हुई सुनवाई में जस्टिस हिमा कोहली और बी वी नागरत्ना की बेंच ने इस पर अलग-अलग आदेश दिया. इस वजह से आज इस मामले को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारडीवला और मनोज मिश्रा की बेंच ने सुना. केंद्र सरकार के लिए पेश एडिशनल सॉलिसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने विशेषज्ञ डॉक्टर की तरफ से दी गई जानकारी को जजों के सामने रखा. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार मां के स्वास्थ्य का ध्यान रखने और जन्म के बाद बच्चे को अपने संरक्षण में रखने को तैयार है.

एडिशनल सॉलिसीटर जनरल ने कोर्ट का ध्यान इस ओर भी आकर्षित किया कि MTP एक्ट (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट) के तहत अधिकतम 24 हफ्ते तक ही गर्भपात की अनुमति दी गई है. अगर मामला यौन शोषण की शिकार नाबालिग लड़की से जुड़ा हो या बलात्कार की शिकार महिला को हो या फिर गर्भ से मां के जीवन को खतरा हो, तभी 24 हफ्ते के परे जा कर भी गर्भपात की अनुमति दी जाती है. यहां सिर्फ यह कहते हुए गर्भपात की मांग की जा रही है कि मां अपने दूसरे बच्चे को जन्म देने के बाद से डिप्रेशन (अवसाद) में रही है. वह अपने 2 बच्चों को सही तरीके से पाल नहीं पा रही है.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के सवाल
मामले को सुनते हुए चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, “आप माता-पिता के लिए पेश हुए हैं, सरकार के लिए भी वकील यहां पर है, लेकिन क्या उस बच्चे का कोई वकील यहां पर है? क्या हम उसकी धड़कन बंद करने का आदेश दे दें? या फिर उसे शारीरिक या मानसिक अक्षमता के साथ दुनिया में आने दें. हो सकता है कि आपकी परिस्थितियां ऐसी रही हों कि आप गर्भपात का निर्णय देरी से ले पाए. लेकिन अब जब 26 हफ्ते का गर्भ है तो कम से कम 2 हफ्ते का इंतज़ार कर लेना ही बेहतर होगा. इस अवधि के बाद बच्चे के विकृति के साथ पैदा होने की आशंका खत्म हो जाएगी. आप सब आपस में बात करें. हम कल मामले को दोबारा सुनेंगे.”

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