Authorized Information: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के 2 जज शुक्रवार (13 अक्टूबर) को उस समय हैरान रह गए जब एक याचिकाकर्ता ने दावा कर दिया कि अल्बर्ट आइंस्टीन और चार्ल्स डार्विन के वैज्ञानिक सिद्धांत गलत हैं. जजों का कहना था कि इसमें अदालत का क्या काम है? उन्होंने याचिकाकर्ता से कहा कि यह विषय जनहित याचिका का नहीं है. इसमें कोर्ट को सुनवाई की ज़रूरत नहीं.
जस्टिस संजय किशन कौल और सुधांशु धुलिया की बेंच के सामने व्यक्तिगत रूप से पेश हुए याचिकाकर्ता राज कुमार ने कहा कि डार्विन की थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन (धरती पर जीवन के विकास का सिद्धांत) और आइंस्टाइन का फॉर्मूला E = mc2 (ऊर्जा से जुड़ा अहम सिद्धांत) को उन्होंने स्कूल और कॉलेज में पढ़ा है. आज वह यह कह सकते हैं कि यह सिद्धांत वैज्ञानिक दृष्टि से गलत हैं. इस पर जजों ने सवाल किया कि कोर्ट इसमें क्या कर सकता है?
जज ने पूछे ये सवाल
जस्टिस कौल ने कहा, “क्या यह कोर्ट का काम है कि वह न्यूटन या आइंस्टाइन के सिद्धांतों का परीक्षण करे? आपको किस वकील ने याचिका दाखिल करने की सलाह दी?” याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्होंने खुद याचिका दाखिल की है. इसके बाद याचिकाकर्ता ने पूछा कि अगर कोर्ट उनकी याचिका को नहीं सुनेगा तो वह कहां जाएं? इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि कोर्ट का काम उन्हें सलाह देना नहीं है.
…तो अलग सिद्धांत बनाएं- बोला सुप्रीम कोर्ट
बेंच ने कहा कि अगर लंबे अरसे से प्रचलित वैज्ञानिक सिद्धांत किसी को गलत लगते हैं तो वह अपने सिद्धांत गढ़ने और उनका प्रचार करने के लिए स्वतंत्र है. याचिकाकर्ता भी चाहे तो ऐसा कर सकता है. यह कोई ऐसा विषय नहीं, जिस पर कोर्ट को सुनवाई करनी चाहिए. इसके बाद जजों ने याचिका खारिज कर दी.
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