Supreme Court on Media Trial: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को आपराधिक मामलों की मीडिया ब्रीफिंग पर 2 महीने में गाइडलाइन बनाने के निर्देश दिए हैं. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने बुधवार (13 सिंतबर) को कहा कि पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग से लोगों को संदेह होता है कि आरोपी ने ही अपराध किया है.
पीठ ने कहा कि मीडिया की खबरें पीड़ित की निजता का भी उल्लंघन कर सकती है. पीठ ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों (डीजीपी) को आपराधिक मामलों में पुलिस की मीडिया ब्रीफिंग के लिए नियमावली तैयार करने के संबंध में गृह मंत्रालय को 1 महीने के अंदर सुझाव देने के निर्देश दिए.
सभी डीजीपी देंगे गृह मंत्रालय को सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘सभी डीजीपी दिशा-निर्देशों के लिए अपने सुझाव एक महीने में गृह मंत्रालय को दें. इसके साथ ही एनएचआरसी के सुझाव भी लिए जा सकते हैं.’ कोर्ट ने कहा है कि इससे अपराध के मामलों में पुलिस से मीडिया को आधिकारिक जानकारी मिलने से अनुमान के आधार पर होने वाली रिपोर्टिंग में कमी आएगी.
सुप्रीम कोर्ट मीडिया ब्रीफिंग में पुलिस द्वारा अपनाए गए तौर-तरीकों के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसकी जांच जारी है. अब इस मामले की सुनवाई अगले साल जनवरी 2024 के दूसरे सप्ताह में होगी.
मीडिया ट्रायल पर क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की रिपोर्टिंग के नए तरीकों पर भी जोर दिया. चीफ जस्टिस ने इसे बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा बताते हुए कहा कि एक तरफ जहां लोगों को जानकारी देनी जरूरी है तो वहीं जांच के दौरान अगर किसी तरह के सबूत का खुलासा हो गया तो उससे जांच प्रभावित हो सकती है.
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के अधिकार पर बात करते हुए कहा कि मीडिया ट्रायल करके किसी को फंसाना गलत है. इसके अलावा कोर्ट ने इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के इनपुट पर विचार करने के निर्देश दिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा यह यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी खुलासे का मीडिया ट्रायल न हो ताकि आरोपी को पहले ही अपराधी नहीं माना जा सके.
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