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Supreme Court Electoral Bond Hearing Asks Election Commission Income Of Political Parties ANN


Supreme Court on Electoral Bond: इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली है. कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए चुनाव आयोग से कहा कि वह 30 सितंबर 2023 तक का राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड से हुई आमदनी का आंकड़ा पेश करे.

कोर्ट ने यह तब कहा जब चुनाव आयोग के वकील ने बताया कि सभी रजिस्टर्ड राजनीतिक दल हर साल 30 सितंबर तक उसे अपने आयकर रिटर्न की जानकारी देते हैं. इसके माध्यम से पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिले पैसों का पता चल सकता है.

2019 चुनाव के बाद मिले चंदे का आंकड़ा नहीं

दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव से पहले, 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा था कि वह सभी पार्टियों से उन्हें इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले पैसों और दान देने वाले लोगों की पूरी जानकारी ले और उस जानकारी को अपने पास सीलबंद लिफाफे में रखे.

सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि उसने लोकसभा चुनाव से पहले मिले चंदे का आंकड़ा लिया था, लेकिन उसके बाद का नहीं क्योंकि उस पर कोर्ट का आदेश स्पष्ट नहीं था.

आयोग के वकील ने बताया कि अप्रैल 2019 के बाद के दानदाताओं के नाम तो उसके पास नहीं हैं, लेकिन पार्टियां हर साल जो जानकारी उसे देती हैं, उससे दान की कुल रकम की जानकारी मिल सकती है.

राजनीति में काले धन को रोकने का प्रयास

तीन दिन तक चली सुनवाई के अंतिम दिन बहस की शुरुआत सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने की. उन्होंने बुधवार को रखी अपनी दलीलों को आगे बढ़ाते हुए कहा कि सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना एक अच्छे उद्देश्य से लागू की.

इसके चलते राजनीति में काले धन का प्रवाह रोकने की कोशिश की गई है. 5 जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस पर कहा कि सरकार के उद्देश्य पर वह कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते.

वह निश्चित रूप से ऐसा नहीं चाहते कि पुरानी ‘कैश से चंदा’ व्यवस्था लौटे. वह पूरी प्रक्रिया का भी सम्मान करते हैं, लेकिन कमियां हर व्यवस्था में हो सकती हैं और उसे बेहतर बनाने का प्रयास होना चाहिए.

चंदे को हमेशा रिश्वत की तरह नहीं देखना चाहिए

सॉलिसीटर जनरल ने यह भी कहा कि किसी कंपनी से मिलने वाले चंदे को हमेशा रिश्वत की तरह नहीं देखना चाहिए. एक व्यापारी इस बात के लिए भी किसी पार्टी को चंदा देता है कि वह पार्टी व्यापार के लिए एक अच्छा माहौल बना सकती है.

मेहता के बाद अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने अपनी दलीलें रखीं. वेंकटरमनी ने साफ किया कि उन्होंने कभी भी ऐसा नहीं कहा कि लोगों को जानकारी पाने का हक नहीं है, लेकिन मीडिया में कुछ जगहों पर उनके हवाले से ऐसा लिख दिया गया.

वोटर को किसी उम्मीदवार के आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में जानने का हक है. ताकि वह सही व्यक्ति को चुन सके, लेकिन किसी पार्टी को वह वोट उसकी नीतियों के आधार पर देता है, उसे मिलने वाले चंदे के आधार पर नहीं.

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