Bilkis Bano Case: बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उसके परिवार के सात सदस्यों की निर्मम हत्या के मामले में 11 दोषियों की रिहाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट में बिलकिस के दोषियों को सजा में दी गई छूट की वैधता को चुनौती दी गई है. इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक आक्रोश सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक फैसलों को प्रभावित नहीं करेगा. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने साफ किया कि आंदोलनों और समाज के आक्रोश का उसके फैसलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और वो सिर्फ कानून के अनुसार ही चलेगी.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने की टिप्पणी
बेंच ने बिलकिस की तरफ से पेश वकील शोभा गुप्ता से कहा, हम इस घटना पर जनता के गुस्से के अनुसार नहीं चलेंगे. मान लीजिए, कोई सार्वजनिक आक्रोश नहीं है. क्या हमें आदेश को बरकरार रखना चाहिए? अगर कोई जनाक्रोश है तो क्या इसका यह मतलब है कि ये गलत आदेश है?’ पीठ की ये टिप्पणी उस वक्त आई, जब बिलकिस की वकील शोभा गुप्ता ने कहा कि दोषियों को सजा में छूट देने पर विचार करते वक्त ‘सार्वजनिक आक्रोश’ पर भी विचार किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि मामले में दोषियों की रिहाई के बाद समाज में आक्रोश फैल गया और देश भर में आंदोलन हुए.
बिलकिस के वकील ने रखीं ये दलीलें
मंगलवार 8 अगस्त को जैसे ही सुनवाई शुरू हुई, बिलकिस बानो के वकील ने सुप्रीम को बताया कि गुजरात के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, जेल और सुधार उपाय प्रशासन ने दोषियों को छूट दिये जाने के बारे में अपनी नकारात्मक राय दी थी. उनमें से एक-राधेश्याम शाह की समय से पहले रिहाई की सिफारिश नहीं की थी. उन्होंने पीठ को बताया कि गुजरात सरकार की नौ जुलाई, 1992 की छूट नीति के तहत समय से पहले रिहाई की मांग करने वाली राधेश्याम शाह की याचिका गुजरात हाईकोर्ट ने अस्वीकार कर दी थी, जिसके बाद उसने राहत के लिए रिट याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की बेंच से पूछा, ‘‘इस कोर्ट के सामने ये रिट याचिका कैसे कायम रखी जा सकती है, जबकि उसने पहले ही अनुच्छेद 226 के तहत (उच्च न्यायालय के समक्ष) अपने अधिकार का इस्तेमाल कर लिया है.’ उसे 2008 में मुंबई की एक सीबीआई अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. उस समय लागू नियमों के अनुसार, एक दोषी 14 साल के बाद सजा में छूट के लिए आवेदन कर सकता था, जिसे तब आजीवन कारावास की अवधि माना जाता था. याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से मामले को देखने और दो महीने के भीतर फैसला करने को कहा था कि क्या उन्हें छूट दी जा सकती है.
‘दोषियों का किया गया फूल मालाओं से स्वागत’
बिलकिस बानो की वकील ने कहा कि गुजरात सरकार को उनकी याचिका पर विचार करने का निर्देश देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सब कुछ तेजी से हो गया और सभी दोषियों को 15 अगस्त, 2022 को रिहा कर दिया गया. जनहित याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने याद किया कि कैसे दोषियों को माला पहनाई गई और उनका स्वागत किया गया और उनके ब्राह्मण होने के बारे में बयान दिए गए कि ब्राह्मण अपराध नहीं कर सकते.
इसके जवाब में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि रिहा किए गए दोषियों को माला पहनाने वाले उनके परिवार के सदस्य थे. उन्होंने पूछा, ‘परिवार के किसी सदस्य का माला पहनाने में क्या गलत है?’ इससे पहले कोर्ट ने कहा कि वो इस मामले में जनहित याचिका दायर करने वाले कई लोगों के ‘हस्तक्षेप के अधिकार (लोकस स्टैंडाई)’ पर नौ अगस्त को दलीलें सुनेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने रिहाई पर उठाए थे सवाल
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 18 अप्रैल को 11 दोषियों को दी गई छूट पर गुजरात सरकार से सवाल किया था और कहा था कि नरमी दिखाने से पहले अपराध की गंभीरता पर विचार किया जाना चाहिए था. सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी भी जताई थी कि क्या इस मामले में विवेक का इस्तेमाल किया गया था. ये सभी दोषी 15 अगस्त, 2022 को जेल से रिहा कर दिए गये थे. शीर्ष अदालत ने दोषियों की समय से पहले रिहाई का कारण पूछते हुए जेल में बंद रहने के दौरान उन्हें बार-बार दी जाने वाली पैरोल पर भी सवाल उठाया था.
(इनपुट – भाषा)
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