CJI DY Chandrachud: चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने रविवार (28 जुलाई 2024) को कहा कि महत्वपूर्ण आपराधिक मामलों में संदेह की गुंजाइश रहने की स्थिति में अधीनस्थ कोर्ट के जज जमानत देकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं. चीफ जस्टिस ने हर मामले की बारीकियों पर गौर करने के लिए सामान्य समझ और विवेक का इस्तेमाल करने की आवश्यकता पर बल दिया.
मनमाने तरीके से गिरफ्तारियों पर बोले CJI
सीजेई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘जिन लोगों को निचली अदालतों से जमानत मिलनी चाहिए, उन्हें वहां जमानत नहीं मिल रही है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें हमेशा हाई कोर्ट का रुख करना पड़ता है. जिन लोगों को हाई कोर्ट से जमानत मिलनी चाहिए, जरूरी नहीं कि उन्हें जमानत मिल जाए और इस कारण उन्हें सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ता है. यह देरी उन लोगों की समस्या को और बढ़ा देती है, जो मनमाने तरीके से गिरफ्तारियों का सामना कर रहे हैं.’’
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ से एक कार्यक्रम में मनमाने ढंग से की गई गिरफ्तारियों के बारे में सवाल पूछा गया था, जिसके जवाब में उन्होंने ये बातें कही है.
प्रश्न पूछने वाले व्यक्ति ने कहा, ‘‘हम ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां पहले कृत्य किया जाता है और फिर बाद में माफी मांगी जाती है. यह बात विशेष रूप से उन लोक प्राधिकारियों के लिए सच हो गई है, जो राजनीतिक रूप से प्रेरित होकर कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, पत्रकारों और यहां तक कि विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों समेत नेताओं को हिरासत में ले रहे हैं.’’
धीमी गति से मिलता है न्याय- सीजेआई
चीफ जस्टिस के अनुसार, ये सभी कृत्य इस पूर्ण विश्वास के साथ किए जाते हैं कि न्याय बहुत धीमी गति से मिलता है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने इसके जवाब में कहा कि सुप्रीम कोर्ट लगातार यह बताने की कोशिश कर रहा है कि इसका एक कारण देश में संस्थाओं के प्रति अंतर्निहित अविश्वास भी है.
सीजेआई ने कहा, ‘‘दुर्भाग्यवश, आज समस्या यह है कि हम अधीनस्थ अदालतों के जजों की ओर से दी गई किसी भी राहत को संदेह की दृष्टि से देखते हैं. इसका मतलब यह है कि अधीनस्थ अदालत के जज महत्वपूर्ण मामलों में जमानत देकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं.’’
चीफ जस्टिस ने कहा कि जजों को प्रत्येक मामले की बारीकियों और सूक्ष्मताओं को देखना होगा. उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामले सुप्रीम कोर्ट में आने ही नहीं चाहिए. चीफ जस्टिस ने कहा, ‘‘हम जमानत को प्राथमिकता इसलिए दे रहे हैं ताकि पूरे देश में यह संदेश जाए कि निर्णय लेने की प्रक्रिया के सबसे प्रारंभिक स्तर पर मौजूद लोगों (न्यायिक अधिकारियों) को यह विचार किये बिना अपना कर्तव्य निभाना चाहिए कि उन्हें कोई जोखिम नहीं है.’’
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