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Shrilanka President Ranil Wickremesinghe Is Considering India Worries Over Permission To Chinese Survey Vessel In Colombo


Shrilanka On China Survey vessel: श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे चीनी सर्वेक्षण और अनुसंधान पोत शिन यान 6 को भारत से सटी अपनी समुद्री सीमा में नहीं आने देने के भारत के अनुरोध पर विचार कर रहे हैं. श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन से जुड़े सूत्रों ने यह जानकारी दी है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर के अंत में श्रीलंका के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में राष्ट्रीय जलीय संसाधन अनुसंधान और विकास एजेंसी (एनएआरए) के साथ चीन ने संयुक्त सैन्य वैज्ञानिक अनुसंधान की पेशकश की है. इस बहाने चीनी पोत के जरिए भारत की जासूसी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. इसलिए गत 11 अक्टूबर को कोलंबो में श्रीलंकाई राष्ट्राध्यक्ष के साथ बैठक के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस मुद्दे को उठाया था और चीन के पोत को प्रवेश की अनुमति नहीं देने का अनुरोध किया था. इस मुद्दे पर श्रीलंकाई राष्ट्रपति विक्रमसिंघे के रुख पर नजरें टिकी हैं. 

क्या है मामला

श्रीलंका के विदेश मंत्री मोहम्मद अली साबरी के हवाले से 9 अक्टूबर को श्रीलंका के द आइलैंड अखबार ने दावा किया था कि चीन के पोत को गहरे कोलंबो सी पोर्ट पर डकिंग की अनुमति दी गई है. इसी रिपोर्ट में उनके हवाले से कहा गया है कि श्रीलंका “चीन, भारत और अमेरिका” के बीच चल रही “बड़ी शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता” में “शामिल होना” नहीं चाहता है.

दिलचस्प बात यह है कि अमेरिकी नौसेना का जहाज, यूएसएनएस ब्रंसविक बुधवार को कोलंबो पहुंचा है. जबकि चीनी जहाज शि यान 6 की यात्रा के लिए अभी तक किसी तारीख की घोषणा नहीं की गई है.

चीनी पोत वर्तमान में पिछले दो सप्ताह से द्वीप राष्ट्र में चीन-नियंत्रित हंबनटोटा बंदरगाह से 1000 किमी पूर्व में ठहरा है. जहाज ने 23 सितंबर को हिंद महासागर क्षेत्र में प्रवेश किया और वर्तमान में हिंद महासागर के नब्बे डिग्री रिज पर स्थिति बनाए हुए है, जो बंगाल की खाड़ी के दक्षिण में है.

PM मोदी भी जता चुके हैं चिंता

जुलाई में, श्रीलंकाई राष्ट्रपति की यात्रा के बाद, भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह “आवश्यक” था कि दोनों देश “एक-दूसरे के सुरक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए” एक साथ काम करें.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक चीनी पोत को अनुमति देने का अंतिम निर्णय विक्रमसिंघे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के निमंत्रण पर 17-18 अक्टूबर को बीआरआई शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए अपनी बीजिंग यात्रा के दौरान ले सकते हैं.

पिछले 5 सालों में हिंद महासागर में चीनी जहाजों की बढ़ोतरी

पिछले पांच वर्षों में, चीनी जहाज हिंद महासागर क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं. 2019 में युद्धपोतों, बैलिस्टिक मिसाइल ट्रैकर्स, सर्वेक्षण और अनुसंधान जहाजों सहित कुल 29 जहाजों ने हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी. यह 2020 में बढ़कर 39 हो गई, फिर 2021 में 45 और 2022 में 43 हो गई. इस साल, 15 सितंबर तक, 28 चीनी जहाजों ने हिंद महासागर क्षेत्र में गश्ती की है.

भारत को किस बात की है फिक्र

दरअसल श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह फिलहाल चीन के कब्जे में है क्योंकि कर्ज नहीं चुका पाने की वजह से श्रीलंका ने इस बंदरगाह को 99 सालों के लिए चीन के पास गिरवी रखा है. इस पोर्ट की क्षमता 1.5 अरब डॉलर की है और एशिया तथा यूरोप के मुख्य शिपिंग रूट में से एक है. इसके बाद श्रीलंका के अन्य बंदरगाहों तक भी चीन अपनी पहुंच बढ़ा रहा है. भारत की चिंता यही है कि गरीब और जरूरतमंद देशों को कर्ज देकर चीन उन पर दबाव बनाता रहा है और इसकी आड़ में अपने विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ता है.

भारत से सटे हिंद महासागर समुद्र के रास्ते सामरिक दृष्टि से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है इसीलिए यहां चीन की सक्रियता भारत को नागवार गुजर रही है. इस बात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन श्रीलंकाई पोर्ट का इस्तेमाल सैन्य गतिविधियों के लिए कर सकता है. श्रीलंका का यह इलाका भारत के तमिलनाडु राज्य से महज 50 किलोमीटर दूर है जो सामरिक दृष्टि से चिंता का कारण है.

2020 में पूर्वी लद्दाख में एलओसी पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्ते तल्ख बने हुए हैं. इस बीच भारत की समुद्री सीमा के पास चीनी जहाजों की सक्रियता, चिंता का सबब हैं.

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