पांच राज्यों में चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही देश में राजनीतिक पारा तेजी से चढ़ने लगा है. सोमवार को मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम विधानसभा चुनाव के तारीखों की घोषणा कर दी.
इस घोषणा से दो दिन पहले ही राजस्थान में कांग्रेस ने ऐलान कर दिया था कि उनकी पार्टी 16 अक्टूबर से ‘काम किया दिल से, कांग्रेस फिर से’ नारे के साथ अपने चुनाव अभियान की शुरुआत करेगी.
चुनावी अभियान के शुरुआत की घोषणा से पहले रविवार को राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने प्रदेश के 13 जिलों के नेताओं के साथ कांग्रेस वॉर रूम में बैठक की. लगभग 2 घंटे तक चली इस बैठक में कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) को पूर्वी राजस्थान में घेरने के लिए अपनी नई रणनीति तैयार कर ली.
कांग्रेस वॉर रूम की बैठक के बाद राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करते हुए कहा कि पार्टी 16 अक्टूबर से अपना चुनावी कैम्पेन की शुरुआत करेगी. इस अभियान में कांग्रेस पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERPC) को अपनी प्राथमिकता सूची में रखेगी. उन्होंने कहा कि इस शुरुआत में हम ERPC के ऊपर केंद्र सरकार की तरफ से जो वादाखिलाफी हुई है उस मुद्दे से करेंगे.’
ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि आखिर ये पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERPC) क्या है और क्या कांग्रेस इस मुद्दे को उठाते हुए बीजेपी को बैकफुट पर ला सकती है.
क्या है ईआरपीसी
ईआरसीपी पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के लिए सिंचाई और पेयजल की योजना है. इस योजना के तहत साल 2051 तक इन 13 जिलों को पानी की पूर्ति होनी है. अगर यह योजना सफल होती है तो पूर्वी राजस्थान में 2.02 लाख हेक्टेयर नई सिंचाई भूमि बनेगी और पीने वाले पानी के साथ किसानों को सिंचाई के लिए भी जरूरत का पानी मिल सकेगा.
इस परियोजना के अंतर्गत पार्वती, चंबल और कालीसिंध नदी को जोड़ने की बात कही गई थी. जिसके जरिए पूर्वी राजस्थान के जयपुर, अजमेर, करौली, टोंक, दौसा, सवाई माधोपुर, अलवर, बारा, झालावाड़, भरतपुर, धौलपुर, बूंदी और कोटा को पानी की कमी के संकट से छुटकारा मिल पाएगा. पीने वाले पानी के साथ इस परियोजना के सफल होने से किसानों को सिंचाई के लिए भी जरूरत का पानी मिल सकेगा.
बता दें कि इस परियोजना का खाका राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में तैयार किया गया था. इस काम को सात साल में पूरा हो जाना था.
क्यों जरूरी है ईआरसीपी?
वर्तमान में पूर्वी राजस्थान एक ही बारहमासी नदी बहती है जिसका नाम है चंबल. चंबल में हर साल लगभग 20 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पानी यमुना-गंगा नदी के बहाव के जरिए बंगाल की खाड़ी में बह जाता है बेकार और यही पानी हर साल इस क्षेत्र में बाढ़ का कारण भी बनता है.
अब बंगाल की खाड़ी में बहकर बेकार हो जाने वाले इन 20 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर पानी का उपयोग करने के लिए ईआरसीपी योजना बनाई गई है. इस परियोजना के तहत मानसून के दौरान कुल 3510 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी चंबल बेसिन से राजस्थान की दूसरी नदियों और बांधों में शिफ्ट करना है.
इन 3510 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी में से 1723.5 पीने के लिए, 1500.4 सिंचाई के लिए और 286.4 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी उद्योगों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.
इसके अलावा मेज नदी, पार्वती, कालीसिंध के बरसात के मौसम में बढ़ जाने वाले पानी को बनास, मोरेल, बाणगंगा और गंभीर नदी तक लाया जाना है. कुल मिलाकर ईआरसीपी परियोजना से पूर्वी राजस्थान की 11 नदियों एक दूसरे से जोड़ा जाएगा. ताकि मानसून में ज्यादा पानी होने के कारण जो पानी बहकर बेकार हो जाता है या बाढ़ में तब्दील हो जाता है उसका उपयोग हो सके. इसी से 13 जिलों को सिंचाई, पेयजल और उद्योगों के लिए पानी मिल सकेगा. ईआरसीपी योजना के लिए 40 हजार करोड़ का बजट तय किया गया है.
ईआरसीपी पर केंद्र सरकार की वादा खिलाफी
इस विधानसभा चुनाव की तारीख तय होने के पहले से ही कांग्रेस ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने के मुद्दे पर लगातार अभियान चला रही है और बीजेपी को घेर रही है.
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कई बार सार्वजनिक मंचों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वादाखिलाफी का मुद्दा उठा चुके हैं. उनके अनुसार पीएम मोदी ने अजमेर और जोधपुर की चुनावी सभाओं में खुद ही ईआरसीपी को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा देने का वादा किया था. लेकिन अब वह इस वादे से मुकर गए हैं और पूरा नहीं कर रहे हैं.
कांग्रेस ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत के साथ ही साल 2018 में पीएम नरेंद्र मोदी के जयपुर और अजमेर की सभाओं में दिए गए उन बयानों को आधार बनाकर घेरना शुरू किया है जिसमें पीएम ने ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने का आश्वासन दिया था.
रविवार को हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा, ‘केंद्र सरकार ने ईआरसीपी पर वादाखिलाफी की है. कांग्रेस के पास कहने के लिए बहुत कुछ है. प्रदेश के इतिहास में 70 सालों में जितना काम नहीं हुआ, उतना हमारी सरकार ने केवल पांच साल में लोगों के लिए किया है. हमारी सरकार ने राजस्थान की जनता को शानदार योजनाएं दी है. 10 तरह की गारंटी ले लीजिए, चाहे हर वर्ग के लिए बोर्ड बनाने की बात ले लीजिए, लोगों ने जो डिमांड किया हमने उसे पूरा किया है.’
सीएम गहलोत लगातार साधते रहे हैं बीजेपी पर निशाना
साल 2023 के फरवरी महीने में भी राजस्थान के प्रधानमंत्री अशोक गहलोत ने ERCP को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा था. उन्होंने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर लिखा- प्रधानमंत्री मोदी जी, आपने आज अच्छा अवसर गंवा दिया. आप पिछले विधानसभा चुनाव से पहले किए गए वादे ERCP को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने के आश्वासन को पूरा करते तो प्रदेश की जनता स्वागत करती. दौसा जिला भी ERCP के 13 जिलों में शामिल है. फिर भी मैंने इस बजट में ERCP के लिए 13 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया है.’
सीएम ने एक्स पर ही लिखा, ‘राजस्थान के 13 जिलों में सिंचाई के लिए पीने के लिए पानी की उपलब्धता बहुत जरूरी है. राज्य सरकार अपने संसाधनों से ERCP के काम को आगे तो बढ़ा रही है. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर देते तो कार्यों को गति मिल जाती और प्रदेश की जनता को समय पर पानी उपलब्ध हो पाता.’
आखिर क्यों राष्ट्रीय परियोजना नहीं बना रहें पीएम मोदी
राजस्थान के स्थानीय पत्रकार ने इस सवाल के जवाब में कहा ERPC की योजना राजस्थान के पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के वक्त की है, लेकिन उनकी सत्ता खत्म होने के बाद कांग्रेस ने इसे बंद नहीं किया. पूर्वी राजस्थान की जनता के फायदे के इतर इस परियोजना का एक सियासी गणित भी है. इसीलिए कांग्रेस लगातार ERCP को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कराने की मांग मोदी कर रही है. वहीं भारतीय जनता पार्टी ये नहीं चाहती कि इस योजना में श्रेय कांग्रेस को मिल जाए. इसीलिए कांग्रेस की सरकार रहते मोदी सरकार इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं करना चाहती.
अब समझ लीजिए पूर्वी राजस्थान के 100 विधानसभा सीटों का गणित
ये परियोजना 13 जिलों के लोगों को फायदा पहुंचाएगा. ये 13 जिले है, भरतपुर, सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर, टोंक, अलवर, धौलपुर, करौली, बारां, बूंदी, कोटा, अजमेर और झालावाड़. इन जिलों में राजस्थान के कुल विधानसभा सीटों का आधा सीट है. यानी 200 विधानसभी सीटों वाले राजस्थाम का 83 विधानसभा सीट इन 13 जिलों में है. और यहीं की आबादी भी लगभग तीन करोड़. जो कि राजस्थान की 41.13 प्रतिशत आबादी है.
उपर बताए गए ये 13 जिले प्रदेश के ढूंढाड़, मेरवाड़ा, हाड़ौती, मेवात और ब्रज क्षेत्र में आते हैं. साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम को देखें तो इन 83 विधानसभा सीटों में लगभग 61 प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया था. जिसका मतलब है कि कांग्रेस को 83 में से 51 सीटें मिली थीं.
इसके अलावा पूर्वी राजस्थान के इन 13 जिलों में से सात जिलों ऐसे हैं जहां वर्तमान में कांग्रेस की स्थिति बेहद अच्छी है. टोंक, सवाई माधोपुर, दौसा, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, जिले में 39 विधानसभा सीटें हैं. साल 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने इन जिलों से 25 सीटें जीती थी. बाकी पांच बीएसपी, चार निर्दलीय और एक आरएलडी के खाते में गई.
हालांकि सत्ता में आने के साथ ही बीएसपी कांग्रेस में विलय कर गई और निर्दलीय, आरएलडी विधायकों का भी समर्थन कांग्रेस को मिल गया. इस तरह इन 7 जिलों के 39 सीटों में से 35 सीटों पर कांग्रेस का दबदबा हो गया.
अब इस साल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस चाहेगी कि उन्हें पूर्वी राजस्थान के उन लोगों को समर्थन मिलता रहे जिन्होंने पिछले चुनाव में कांग्रेस का साथ दिया था. यही कारण है कि पार्टी इस क्षेत्र में ऐसे मुद्दे को उठाकर आगे बढ़ना चाहती है जो यहां की जनता के लिए बेहद जरूर है.
कैसे बीजेपी को बैकफुट पर लाने की कोशिश कर रही है कांग्रेस
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ईआरसीपी परियोजना को राज्य सरकार के खर्चे पर पूरा करवाने की घोषणा की है. बजट में सीएम गहलोत ने पहले ही 9000 करोड़ इस परियोजना पर खर्च करने की घोषणा की थी. जिसके बाद पांच हजार करोड़ की और घोषणा गई. इसके असावा सीएम गहलोत हर मंच पर इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश करते हैं. उन्होंने अपने कई भाषणों में ईआरसीपी परियोजना का जिक्र करते हुए केंद्र सरकार और बीजेपी पर हमला बोला है. अब का ईआरसीपी पर यात्रा निकालने का फैसला कांग्रेस विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को बैकफुट पर लाने का प्रयास है.