Parliament Special Session Reside: संसद का विशेष सत्र आज सोमवार (18 सितंबर) से शुरू हो रहा है जिसमें चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति से संबंधित विवादास्पद विधेयक पर चर्चा हो सकती है. इससे पहले रविवार शाम (17 सितंबर 2023) को एक्टिविस्ट और सिविल सोसायटी के सदस्यों ने इस कानून के पारित होने पर चुनाव निकाय की स्वायत्तता पर सवाल उठाए.
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023, को मॉनसून सत्र में राज्यसभा में पेश किया गया था. इस प्रस्ताव के मुताबिक, चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए चयन पैनल (सीईसी) में अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, सदस्य के रूप में विपक्ष के नेता और अन्य सदस्य के रूप में प्रधानमंत्री की तरफ से नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे. मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि चयन पैनल में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) शामिल होने चाहिए. हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस प्रक्रिया का पालन तभी किया जाएगा, जब तक संसद कानून नहीं बना देती.
पूर्व सीईसी ने समिति को बताया एकतरफा
बैठक में एक बार फिर इस बात पर सवाल उठाए गए कि सीजेआई के बजाय कैबिनेट मंत्री को शामिल करने से चयन समिति पर सरकार का नियंत्रण हो जाएगा. वहीं, पूर्व सीईसी एसवाई क़ुरैशी के अनुसार, “प्रस्तावित विधेयक का एक बड़ा नकारात्मक पक्ष यह है कि समिति एकतरफा है और इसका मकसद अपने सभी निर्णयों को सर्वसम्मत बनाना लग रहा है.”
सरकार करेगी नामों की समीक्षा
गैर-सरकारी संगठनों सतर्क नागरिक संगठन और एएनएचएडी की ओर से आयोजित एक वेबिनार में उन्होंने कहा, “इसका मतलब किसी भी तरह से विपक्ष के नेता को वीटो अधिकार देना नहीं होगा क्योंकि कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक खोज समिति है जो चयन समिति को शॉर्टलिस्ट किए गए नामों की एक लिस्ट देगी और उन नामों की सरकार की ओर से समीक्षा की जाएगी,”
इस विधेयक को बताया असंवैधानिक
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह कानून असंवैधानिक है और उनके विचार में इसे सुप्रीम कोर्ट की ओर से रद्द किया जा सकता है. उन्होंने आगे कहा, “इसे इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि यह लोकतंत्र का उल्लंघन करता है”. उन्होंने आगे कहा “उम्मीद थी कि संसद की ओर से बनाया गया कानून सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप होगा.“
बाद में बहुत कुछ हो सकता है बदलाव
दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार का इस पर कहना है कि, यह विधेयक बेशक आयोग की स्वतंत्रता के बारे में कुछ चिंताएं पैदा करता है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले, सरकार अनिवार्य रूप से यह तय कर सकती है कि सीईसी और ईसी के रूप में किसे नियुक्त किया जाए.
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