<p fashion="text-align: justify;">सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों को शादी की मान्यता देने से इनकार किया है. सुप्रीम कोर्ट में 18 समलैंगिक जोड़ों की तरफ से इसको लेकर याचिका दायर की गई थी. कोर्ट ने साफ कहा कि ये विधायिका का क्षेत्र है और उनकी ये राय है कि इस बारे में पार्लियामेंट की तरफ से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने को लेकर अपना फैसला करना चाहिए. हालांकि, एक तरह से अगर देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट का समलैंगिकों के विवाह को कानूनी मान्यता देने को लेकर लगाई गई याचिका पर दिया गया फैसला अपेक्षित ही था.</p>
<p fashion="text-align: justify;">इसमें किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरह का संदेह नहीं होना चाहिए कि क्योंकि समलैंगिक विवाह की मांग पर याचिका भारतीय संस्कृति और सभ्यता के पूरी तरह से विरुद्ध थी. सुप्रीम कोर्ट भी इस सोसाइटी का पार्ट है, इसलिए इस सोसाइटी का पार्ट होने के नाते यही अपेक्षा की जाती है कि भारती धर्म और संस्कृति के अनुसार फैसला सुनाया जाएगा. </p>
<p fashion="text-align: justify;">चूंकि, हमारे देश में मैरिज एक सीक्रेट यूनियन माना जाता है, जीवन भर का साथ माना जाता है. क्योंकि हमारे समाज में पति और पत्नी के हमारे समाज के अंदर ऐसा आकार दिया गया है जिसकी एक धार्मिक महत्ता है. इस धार्मिक महत्ता को अगर तोड़ा जाएगा तो कानून अपने आप टूट जाएगा.</p>
<p fashion="text-align: justify;"><span fashion="shade: #e03e2d;"><robust>सोसाइटी को देखकर दिया गया फैसला</robust></span></p>
<p fashion="text-align: justify;">कानून, समाज को रेगुलेट करने के लिए होता है, ऐसे में वह कानून उस परंपरा को अनुरूप होना चाहिए. इस फैसले के ऊपर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ है क्योंकि ये फैसला बिल्कुल यही होना चाहिए था.</p>
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<p fashion="text-align: justify;">हां, उनके कुछ और भी अधिकार हैं और वो निश्चित रुप से दिया जाना चाहिए. लेकिन, एक बायोलॉजिकल जिसकी महत्ता है, उसमें बदलाव नहीं होना चाहिए. क्योंकि, इससे हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा के ऊपर ये सीधा प्रहार होता है. इसीलिए मैं यही कहना चाहूंगा कि सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही अपेक्षित फैसला दिया है.<br />कोर्ट का काम है कि जो सरकार फैसला देती है, उसे देखना कि वो सही है या गलत. कोर्ट का काम कभी कानून बनाना नहीं रहा है.</p>
<p fashion="text-align: justify;">चूंकि, हमारे संविधान में सेपरेशन ऑफ पावर के तीन अंग हैं और सेपरेशन ऑफ पावर में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की उतनी ही अहमियत है. कभी-कभार इन तीनों ऑर्गन्स के बीच में टकराव होता है. लेकिन इनके अपने अधिकार क्षेत्र बंटे हुए हैं, जैसे- न्यायपालिका के लिए है कि वे किसी सरकार के फैसले की वैधता या अवैधता पर सिर्फ अपनी व्याख्या दे सकते हैं. जहां तक कोर्ट और न्यायालय के अधिकार की बात है तो वो बिल्कुल परिभाषित है.</p>
<p fashion="text-align: justify;">हमारे भारतीय संविधान में आर्टिकल 21 कहा गया है कि एक विदेशी को भी मानवीय अधिकार है और वो उसे मिलना चाहिए. किसी भी व्यक्ति को किसी भी दायरे में रखकर उसके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है कि वो एलजीबीटी है.</p>
<p fashion="text-align: justify;"><span fashion="shade: #e03e2d;"><robust>सेम सेक्स के प्रति गलत नजरिया</robust></span></p>
<p fashion="text-align: justify;">जहां तक सेम सेक्स की बात है तो निश्चित रुप से प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर हमारे समाज में है लेकिन इसे नहीं माना गया है क्योंकि इस चीज को आज भी हमारे समाज में गलत तरीके से देखा जाता है. निश्चित तौर पर इसे गलत नजरिए से देखा भी जाना चाहिए क्योंकि ये जैविकीय व्यवस्था के विरुद्ध है. बायोलॉजिकल कंसेप्ट के विरुद्ध है.</p>
<p fashion="text-align: justify;">ऐसे में वैवाहिक संबंध मौलिकता से भी जुड़ा हुआ है. सेम सेक्स का आज भी हमारे समाज में 95 फीसदी लोग विरोध करेंगे, क्योंकि इस तरह की चीजों को अगर समाज बढ़ावा दे देता है तो उसके सबसे बड़ा बुरा असर इंस्टीट्यूशन ऑफ मैरेज पर पड़ेगा.</p>
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<p fashion="text-align: justify;">इंस्टीट्यूशन ऑफ मैरिज का एक बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. ये एक सेक्रेड यूनियन है. सुप्रीम कोर्ट ने एक बीच का रास्ता निकाल कर ये बताया है कि उनके मानवीय अधिकार, जैसे कोई सरकारी योजनाओं की सुविधाएं हों, चाहे कोई अन्य फैसिलिटीज हो, निश्चित रुप से इस तरह की सुविधाएं उन्हें मिलनी चाहिए. लेकिन, वैवाहिक संबंध को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती है क्योंकि मैरिज के बायोलॉजिकल डिफिनेशन के खिलाफ भी है और एक जो विवाह की हमारी सांस्कृतिक परिभाषा है, ये उसके खिलाफ भी है.</p>
<p fashion="text-align: justify;">ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत अच्छा निर्णय दिया है और ये फैसला देकर के हमारे जो सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य का बरकरार रखा है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बेहद स्वागत योग्य है. सुप्रीम कोर्ट फाइनल आर्बिटर ऑफ द कंस्टीट्यूशन है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जो कुछ भी कहा गया है वो सही ही कहा गया है. </p>
<p fashion="text-align: justify;"><span fashion="shade: #e03e2d;"><robust>सेम सेक्स मैरिज भारतीय परंपराओं के खिलाफ</robust></span></p>
<p fashion="text-align: justify;">निश्चित तौर पर सेम सेक्स मैरिज भारतीय परंपराओं के विरुद्ध है, क्योंकि आप दूसरे देश के कल्चर को हमारे देश के कल्चर में लाएंगे तो निश्चित तौर पर यह एक विरोधाभाष हो जाएगा. हमारी परिस्थितियां अलग है, हमारे अंडरस्टैंडिंग लेवल अलग है. लेवल ऑफ इंटलैक्चुअलिटी अलग है. इन सारी चीजों को देखकर आपको काम करने की जरूरत है. </p>
<p fashion="text-align: justify;">भारत विश्व गुरु रहा है. यहां पर सभ्यता और संस्कृति की उत्पत्ति हुई है. भारत एक कंजर्वेटिव और ट्रेडिशनल सोसाइटी है. हमलोग एक भावना से काम करते हैं. भावनात्मक धर्म होता है. हमारा समाज, अमेरिका और कनाडा की तुलना में बिल्कुल अलग है. </p>
<p fashion="text-align: justify;">लॉ सोसाइटी का रिफ्लेक्शन है. जो मूल्य आप अपनाते हैं, वहीं तो मूल्य का रिफ्लैक्शन लॉ में होता है. लॉ कहीं बाहर से तो आया नहीं है. इसलिए कनाडा के लॉ को यहां पर लागू नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह मूल्य सामाजिक मूल्यों को रेगुलेट करने का है.</p>
<p fashion="text-align: justify;">आप दूसरे प्रकार की चीजों में उस प्रकार के लॉ को लागू कर सकते हैं. आप भारतीय क्यों हैं, क्योंकि आपका एक कल्चर है. आज विदेश में भी अगर आप जाते हैं तो वहां पर भारतीयता है. भारतीयता में मैरिज में आती है, और अगर उस भारतीयता पर आक्रमण किया जाए तो निश्चित रुप से आप भारतीय भी नहीं रहेंगे और आप विदेशी भी नहीं रहेंगे.</p>
<p fashion="text-align: justify;">इसलिए, भारतीयता को बचाने के लिए इतना बड़ा परिवर्तन करने के लिए हमारा समाज तैयार नहीं है. क्योंकि, आप स्कूल, कॉलेज हर जगह पर यही पढ़ते हैं कि विवाह एक पवित्र रिश्ता है. आज का हमारा जो समाज है, इसमें इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती है. इतना बड़ा समाज में परिवर्तन नहीं हुआ है. हमारी सच्चाई विदेश नहीं बल्कि हमारी आर्थिक और सामाजिक स्थिति है.</p>
<p fashion="text-align: justify;">आज हमारी सच्चाई क्या है ये हमलोगों से कोई बेहतर नहीं जानता है. ऐसे तुलना तो जरूर हो लेकिन वहां पर हो जहां पर करने लायक हो. सामाजिक मूल्यों पर तुलना करने का अर्थ होता है कि आप कहीं न कहीं भटक गए हैं. </p>
<p fashion="text-align: justify;"><robust>[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]</robust></p>

Rajneesh Singh is a journalist at Asian News, specializing in entertainment, culture, international affairs, and financial technology. With a keen eye for the latest trends and developments, he delivers fresh, insightful perspectives to his audience. Rajneesh’s passion for storytelling and thorough reporting has established him as a trusted voice in the industry.