<p model="text-align: justify;"><span model="font-weight: 400;">भारत ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को कच्चे तेल की खरीद के बदले पहली बार रुपये में भुगतान किया है. इस कदम को द्विपक्षीय व्यापार में भारतीय मुद्रा रुपये के उपयोग को बढ़ावा देने के रूप में बड़ी पहल बताया जा रहा है, इससे रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण को बल मिलेगा और डॉलर की मांग भी कम करने में मदद मिलेगी साथ ही इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक मौद्रिक झटकों का कम असर होगा. रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण से विदेशी मुद्रा भंडार रखने की आवश्यकता कम हो जाती है.</span></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="shade: #e03e2d;"><robust>अमरीकी मुद्रा ‘यूएस डॉलर’ का रहा है प्रभुत्व </robust></span></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="font-weight: 400;">आज अपनी 80 प्रतिशत से अधिक तेल जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत आयात पर निर्भर है. इसके लिए उसे बड़े पैमाने पर डॉलर में भुगतान करना होता है. ग्लोबल हो चुकी इस दुनिया में हर देश की मुद्रा की, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले क्या कीमत है, इसका न सिर्फ उस देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है, बल्कि बाजार में बहुत सारी चीजों की कीमतों पर भी. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइज़ेशन लिस्ट के अनुसार दुनिया भर में कुल 180 करंसी हैं परन्तु उन सभी में अमरीकी मुद्रा ‘यूएस डॉलर’ का प्रभुत्व रहा है. 1944 के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ‘यूएस डॉलर’ अंतर्राष्ट्रीय भुगतान का माध्यम बन गया था.</span></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="shade: #e03e2d;"><robust>भारतीय रुपये में किया है तेल की खरीद का भुगतान</robust></span></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="font-weight: 400;">ख़बरों के मुताबिक इस दिशा में भारत ने जुलाई में यूएई के साथ रुपये में भुगतान के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) ने अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (एडीएनओसी) से 10 लाख बैरल कच्चे तेल की खरीद का भुगतान भारतीय रुपये में किया है. इससे पूर्व दिसंबर 2022 में रूस से आयात किये गये क्रूड ऑयल के कुछ हिस्से के भुगतान की राशि भी रुपये में की गई थी. </span><span model="font-weight: 400;">सरकार व आरबीआई को यह श्रेय तो देना ही होगा कि रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में रुपये में बिलिंग को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. </span></p>
<p><iframe title="YouTube video participant" src="https://www.youtube.com/embed/Sj1yiVcNVg4?si=tWSSx7pvfqdhVeLK&begin=589" width="560" peak="315" frameborder="0" allowfullscreen="allowfullscreen"></iframe></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="font-weight: 400;">पिछले कुछ समय से अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने या डी-डॉलरीकरण की चर्चा जोर पकड़ रही है. वर्ष 1999 तक जहां वैश्विक मुद्रा संग्रहण में अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी करीब 70 फीसदी से अधिक थी, वह वर्ष 2022 में घटकर 59 फीसदी रह गई है. डॉलर के बाद सबसे अधिक संग्रहण यूरो का है. </span></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="font-weight: 400;">वास्तव में हमें रुपये को वैश्विक मुद्रा बनाने के लिए और भी अधिक जमीनी स्तर पर काम करना होगा. बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार, प्रमुख निर्यातकों में भारत की हिस्सेदारी मामूली 1.8 प्रतिशत और आयात में 2.8 प्रतिशत है और विदेशी मुद्रा बाजार कारोबार में रुपये की दैनिक औसत हिस्सेदारी केवल 1.6% है फिर भी आज भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. यह 2023 में 3.75 ट्रिलियन यूएस डॉलर की जीडीपी के साथ पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था है. </span></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="shade: #e03e2d;"><robust>कोविड-19 महामारी</robust></span></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="font-weight: 400;">कोविड-19 महामारी के बाद मजबूत आर्थिक सुधार को देखते हुए, रुपये में एक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनने की क्षमता है. देखें तो चीन ने युआन को वैश्विक मुद्रा बनाने के लिए कई वर्षों तक काफी प्रयास किये हैं और वर्ष 2022 के दौरान 7% से अधिक वैश्विक लेनदेन युआन के माध्यम से किए गए, और यह पांचवीं सबसे अधिक कारोबार वाली मुद्रा बन गई.</span></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="font-weight: 400;">भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले तीन वर्षों में विदेशों में रुपये के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत में कार्यरत 20 बैंकों को 22 देशों के साझेदार बैंकों के साथ 92 विशेष रुपया वोस्ट्रो खाते (एसआरवीए) खोलने की अनुमति देकर एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. यह इन देशों के निर्यातकों और आयातकों को घरेलू मुद्राओं में व्यापार लेनदेन करने की अनुमति देता है, जिससे आसान और अधिक कुशल व्यापार प्रणाली की सुविधा मिलती है. इससे वस्तुओं या सेवाओं का आयात करने वाले आयातक विदेशी विक्रेता को उनके सामान की कीमत रुपये में अदा कर सकेंगे अर्थात आयातक का बैंक निर्यातक के बैंक के वोस्ट्रो खाते में सामान की कीमत सीधे रुपये में जमा कर सकेगा. </span></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="font-weight: 400;">जैसे-जैसे रुपये का वैश्विक उपयोग बढ़ता जायेगा, यह भारतीय व्यवसायों की सौदेबाजी की शक्ति में सुधार करेगा जिससे ना केवल भारतीय अर्थव्यवस्था में वजन बढ़ेगा बल्कि भारत का वैश्विक कद और सम्मान भी बढ़ेगा. इसके अलावा 64 देशों ने भारतीय रुपये में व्यापार करने में रुचि व्यक्त की है. </span></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="font-weight: 400;">इसमें कोई संदेह नहीं कि अभी भी डालर विश्व की सबसे मजबूत मुद्रा है परन्तु जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था का विस्तार हो रहा है, भारतीय रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बल मिल रहा नई व्यवस्था (विशेष रुपया वोस्ट्रो खाते) अपनाने के बाद भारत रुपये में अंतरराष्ट्रीय कारोबार कर सकेगा.</span></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="shade: #e03e2d;"><robust>देश ने कोविड-19 के बीच 200 से अधिक देशों को कोरोना की दवाइयां निर्यात की</robust></span></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="font-weight: 400;">भारतीय रुपये के लिए अंतर्राष्ट्रीयकरण, अभी भी एक लंबा रास्ता है, लेकिन सिंगापुर व संयुक्त अरब अमीरात से रूपये में सौदे और विशेष रुपया वोस्ट्रो खाते सही दिशा में उठाए गए कदम हैं. यह जरूरी है कि वैश्विक जरूरतों के अनुरूप घरेलू उत्पादन बढ़ाकर नए चिन्हित देशों में वस्तु निर्यात बढ़ाने के साथ-साथ सेवा निर्यात भी तेजी से बढ़ाया जाये. देश ने कोविड-19 के बीच 200 से अधिक देशों को कोरोना की दवाइयां निर्यात की हैं. ऐसे में भारत से भावनात्मक रूप से कई देश जुड़े हैं जो निर्यात की नई संभावनोँ को मज़बूत बना सकते हैं. यह समय है जब भारत में मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) को तेजी से आकार दिया जाये.</span></p>
<p model="text-align: justify;"><span model="font-weight: 400;">वर्तमान में सरकार अभी डॉलर या यूरो में निर्यात की कमाई लाने वाले निर्यातकों को सरकार की तरफ से कर छूट दे रही, यह छूट सरकार को रुपये में निर्यात की कमाई लाने में उपलब्ध करना होगा. समय की मांग है कि ऐसी स्कीम को तैयार किया जाना चाहिए, जिससे रुपये में वैश्विक कारोबार की अनुमति बढ़े और व्यापार घाटे में कमी आ सके. हम जानते हैं कि किसी भी देश की मुद्रा को वैश्विक मुद्रा के रूप में पहचान हेतु उस देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था व आर्थिक नीतियों में प्रगतिशीलता जरूरी है. संयोग से भारत में ये दोनों बातें हैं, यह जरूर है कि हमें एक लंबा सफर तय करना है पर यह नामुनकिन नहीं है.</span></p>
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<p model="text-align: justify;"><robust>[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]</robust></p>
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Rajneesh Singh is a journalist at Asian News, specializing in entertainment, culture, international affairs, and financial technology. With a keen eye for the latest trends and developments, he delivers fresh, insightful perspectives to his audience. Rajneesh’s passion for storytelling and thorough reporting has established him as a trusted voice in the industry.