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modi govt does not have numbers for constitutional amendment how will the dream of One Nation-One Election be fulfilled


One Nation-One Election: मोदी कैबिनेट ने ‘एक देश-एक चुनाव’ योजना पर आगे बढ़ते हुए चरणबद्ध तरीके से लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया. बीजेपी ने 2024 लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी एक देश-एक चुनाव का वादा किया था.  

सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मिली मंजूरी की जानकारी हुए कहा कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों को आगे बढ़ाने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा और अगले कुछ महीनों में देश भर के विभिन्न मंचों पर विस्तृत चर्चा की जाएगी. वैष्णव ने कहा, हम अगले कुछ महीनों में आम सहमति बनाने की कोशिश करेंगे. हमारी सरकार उन मुद्दों पर आम सहमति बनाने में विश्वास करती है जो लंबे समय में लोकतंत्र और देश को प्रभावित करते हैं. यह एक ऐसा विषय है, जो हमारे देश को मजबूत करेगा. 

कमेटी ने 18 संशोधनों की सिफारिश की

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होगी. हालांकि, इसके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की आवश्यकता होगी जिन्हें संसद द्वारा पारित करने की जरूरत होगी. एक मतदाता सूची और एक मतदाता पहचान पत्र के संबंध में कुछ प्रस्तावित संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों द्वारा समर्थन की जरूरत होगी.

‘एक देश, एक चुनाव’ पर गठित उच्च स्तरीय समिति ने लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले मार्च में रिपोर्ट सौंपी थी. समिति ने ‘एक देश, एक चुनाव’ को दो चरणों में लागू करने की सिफारिश की. पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने और उसके बाद दूसरे चरण में आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएं. समिति ने भारत के चुनाव आयोग द्वारा राज्य निर्वाचन प्राधिकारियों से विचार-विमर्श कर एक साझा मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र बनाने की भी सिफारिश की.  अभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की जिम्मेदारी भारत के निर्वाचन आयोग की है जबकि नगर निगमों और पंचायतों के लिए स्थानीय निकाय चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग कराते हैं.

जल्द विधि आयोग पेश करेगा रिपोर्ट

इसके अलावा विधि आयोग भी एक साथ चुनाव कराने पर अपनी रिपोर्ट जल्द ही पेश कर सकता है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रबल समर्थक रहे हैं. समाचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से कहा कि विधि आयोग सरकार के तीन स्तरों – लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं तथा पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के लिए 2029 से एक साथ चुनाव कराने और त्रिशंकु सदन जैसे मामलों में एकता सरकार बनाने के प्रावधान की सिफारिश कर सकता है. 

पहले भी हो चुके एक देश-एक चुनाव

देश में 1951 से 1967 के बीच एक साथ चुनाव हुए थे, लेकिन उसके बाद मध्यावधि चुनाव समेत तमाम कारणों से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे. सभी चुनाव एक साथ कराने के लिए काफी प्रयास करने होंगे, जिसमें कुछ चुनावों को पहले कराना तथा कुछ को देर से करना शामिल है. 

कहां कब होने हैं चुनाव?

इस साल मई-जून में लोकसभा चुनाव हुए थे. उसके साथ ही ओडिशा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए. जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव प्रक्रिया अभी चल रही है, जबकि महाराष्ट्र और झारखंड में भी इस साल के अंत में चुनाव होने हैं. जबकि दिल्ली और बिहार उन राज्यों में शामिल हैं जहां 2025 में चुनाव होने हैं. 

इसके अलावा  असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी की मौजूदा विधानसभाओं का कार्यकाल 2026 में समाप्त होगा, जबकि गोवा, गुजरात, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की विधानसभाओं का कार्यकाल 2027 में समाप्त होगा. हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और तेलंगाना में राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2028 में समाप्त होगा. वर्तमान लोकसभा और इस वर्ष एक साथ चुनाव में शामिल राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 में समाप्त होगा. 1999 में तत्कालीन विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में प्रत्येक पांच वर्ष में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक ही चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा था. एक संसदीय समिति ने 2015 में अपनी 79वीं रिपोर्ट में दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया था. 

कितनी कठिन है बीजेपी की राह?

बीजेपी का एक देश-एक चुनाव का प्लान तभी सफल हो सकता है, जब संसद द्वारा दो संविधान संशोधन विधेयक पास हों. इसके लिए बीजेपी को कई राजनीतिक दलों के समर्थन की जरूरत होगी. अभी बीजेपी के पास अपने दम पर लोकसभा में बहुमत नहीं है. ऐसे में उसे न सिर्फ एनडीए सहयोगियों बल्कि विपक्षी दलों के समर्थन की भी जरूरत होगी. 

चूंकि ये बिल संविधान संशोधन से जुड़े हैं, ऐसे में ये तभी पास होंगे, जब इन्हें संसद के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन मिलेगा. यानी लोकसभा में इस बिल को पास कराने के लिए कम से कम 362 और राज्यसभा के लिए 163 सदस्यों का समर्थन जरूरी होगा. संसद से पास होने के बाद इस बिल को कम से कम 15 राज्यों की विधानसभा से पास करवाना जरूरी है. इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्ष के बाद ही ये बिल कानून बन सकेंगे

NDA की पार्टियों का क्या है रुख?

NDA में बीजेपी की प्रमुख सहयोगी जदयू ने केंद्रीय कैबिनेट के इस फैसले का स्वागत किया है. एनडीए में बीजेपी के अलावा जदयू, टीडीपी और एलजेपी बड़ी पार्टियां हैं. जदयू और एलजेपी ने एक देश एक चुनाव का समर्थन किया है. हालांकि, टीडीपी ने अभी तक इस पर कोई जवाब नहीं दिया है. हालांकि, बीजेपी को उम्मीद है कि उसे और भी विपक्षी पार्टियों का साथ इस मुद्दे पर मिल सकता है. 

दरअसल, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने 62 राजनीतिक दलों से भी राय ली थी. हालांकि, 47 ने इसपर जवाब दिया. इनमें से  32 ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया और 15 ने इसका विरोध किया. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 राजनीतिक दलों ने कोई जवाब नहीं दिया. राष्ट्रीय दलों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने प्रस्ताव का विरोध किया. 

हालांकि, अन्नाद्रमुक, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, अपना दल (सोनेलाल), असम गण परिषद, बीजू जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी (आर), मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, शिवसेना, जनता दल (यूनाइटेड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, शिरोमणि अकाली दल और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है. 

कांग्रेस बोली- ये व्यावहारिक नहीं

वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि एक साथ चुनाव व्यावहारिक नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी चुनाव आते ही वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए ऐसी बातें करती है. 

क्या आम सहमति से बिल हो सकते हैं पास?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, आवश्यक सर्वसम्मति बनाने का एक तरीका संशोधन विधेयकों को स्थायी समिति या संयुक्त संसदीय समिति जैसी किसी संसदीय समिति को भेजना है. इन पैनलों में विपक्षी सांसद भी शामिल होते हैं, ऐसे में यहां चर्चा से आम सहमति बन सकती है. 

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