Republic Day 2024, Who was Major Shaitan Singh: आबाद भारत के बुलंद लोकतंत्र की नींव उन जांबाजों के बलिदान पर टिकी है जिन्होंने शहादत कबूल की और मां भारती का सिर कभी झुकने न दिया. ऐसे ही जांबाज मेजर शैतान सिंह थे जिनके हाथ में कभी बम फट गया था तो उन्होंने इसके बाद पैर में मशीन गन बांधते हुए दुश्मनों से लोहा लिया था. आइए, इस गणतंत्र दिवस (26 जनवरी, 2024) पर जानते हैं उनकी कहानी:
यह किस्सा साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान का है. जंग खत्म होने के 3 महीने बाद बर्फ गली पर मेजर शैतान सिंह का पार्थिव शरीर मिला था. उनके शरीर में पैरों में रस्सी बंधी थी. नजर सामने थी और अंगुलियां मशीन गन के ट्रिगर पर थीं. चूंकि, ठंड बहुत अधिक थी इसलिए बर्फ के चलते उनका देह जम गया था.
छोटी टुकड़ी ले भिड़े थे 16000 चीनी सैनिकों से
18 नवंबर 1962 की वह सर्द सुबह थी जब मेजर शैतान सिंह महज 123 जवानों की अपनी टुकड़ी के साथ 17000 फीट की ऊंचाई पर चीन की करतूतों को नाकाम के लिए पहरा दे रहे थे. कुमायूं बटालियन के ये चुशुल सेक्टर में तैनात थे. बर्फ पड़ रही थी उसी समय सुबह-सुबह रेजांग ला पर चीन की तरफ से कुछ हलचल शुरू हुई. बटालियन के जवानों ने देखा कि उनकी तरफ रोशनी के कुछ गोले हवा में तैरते चले आ रहे हैं. बाद में पता चला कि ये रोशनी के गोले असल में लालटेन थीं जिन्हें कई सारे यॉक के गले में लटकाकर चीन की सेना ने भारत की तरफ भेजा था. ये चीनी साजिश थी ताकि भारतीय सैनिक टुकड़ी फायरिंग कर दे और उनके गोली बारूद खत्म हो जाए. चीनियों को पता था कि भारतीय सेना ठंड में इतनी ऊंचाई पर लड़ने में अनुभवी नहीं है. इसीलिए तुरंत हमला कर दिया. करीब 16000 चीनी सैनिकों ने अपने पूरे लाल लश्कर के साथ हमला किया था. बटालियन के मेजर शैतान सिंह यह जानते थे कि उनके पास सिर्फ 123 सैनिक, 100 हथगोले, 300-400 राउंड गोलियां और कुछ पुरानी बंदूकें हैं, जिन्हें दूसरे विश्वयुद्ध में नकारा घोषित किया जा चुका है. बावजूद इसके उन्होंने जवाबी कार्रवाई का रास्ता चुना.
आर्मी ने पोस्ट छोड़कर वापस आने को कहा था, मेजर ने कहा – मरना कबूल है.
चीन के हमले के बाद मेजर शैतान सिंह ने वायरलेस पर सीनियर अधिकारियों से मदद मांगी,लेकिन मदद नहीं मिली. उन्हें कहा गया कि आप पोस्ट छोड़कर पीछे हट जाएं और अपने साथियों की जान बचाएं. लेकिन उन्हें पीछे हटना कहां मंजूर था! मातृभूमि के लिए बलिदान का रास्ता चुना.
उन्होंने टुकड़ी से कहा, ‘हमारे पास कुछ नहीं है,लेकिन जो जंग के मैदान में मरना चाहता है वो साथ चलें जो नहीं चाहता है वो लौट जाए.’ इस छोटी सी ब्रीफिंग के बाद उन्होंने अपने जवानों को फायरिंग का आदेश दे दिया. जैसे मेजर शैतान सिंह थे, वैसे ही उनकी बटालियन के जांबाज भी. एक भी जवान वापस नहीं लौटा. दूसरी तरफ से तोपों और मोर्टारों का हमला शुरू हो चुका था. इधर भारत का एक-एक सिपाही मौत से आंखें चार कर 10-10 चीनी सैनिकों को मौत की नींद सुला रहा था.
इस जंग में ज्यादातर भारतीय जवान शहीद हो गए और कई बुरी तरह घायल.
अपनी टुकड़ी का नेतृत्व कर चीनी सैनिकों पर टूट पड़े मेजर शैतान सिंह का हाथ बम फटने से छलनी हो गया था. खून से सने मेजर को दो सैनिक एक बड़ी बर्फीली चट्टान के पीछे ले गए. मेडिकल हेल्प के लिए उन्हें पहाड़ियों से नीचे उतरना था, लेकिन मेजर ने मना कर दिया.
पैर से आखरी सांस तक चलाई मशीन गन
जख्मी हालत में भी उन्होंने सैनिकों को ऑर्डर दिया कि उन्हें एक मशीन गन लाकर दें. बर्फ के इस चट्टान के पीछे से उन्होंने मशीन गन को पैर से बंधवाया और रस्सी के सहारे मशीन गन पर फायरिंग शुरू कर दी. अपने साथ आए सैनिकों को उन्हें वापस भेज दिया और अकेले आखरी सांस तक फायरिंग करते रहे. जब युद्ध खत्म हुआ तो शैतान सिंह के बारे में कुछ नहीं पता चला. इसकी वजह थी कि युद्ध के समय बर्फबारी हो रही थी और बर्फ में वह दब गए थे. तीन महीने बाद जब बर्फ पिघली और रेड क्रॉस सोसायटी और सेना के जवानों ने उन्हें खोजना शुरू किया तब एक गड़ेरिये की सूचना पर एक चट्टान के नीचे मेजर शैतान सिंह ठीक उसी पॉजिशन में थे जिस पॉजिशन में वो चीनियों की लाशें बिछा रहे थे. पैरों में रस्सी बंधी थी नजर सामने थी और उंगलियां मशीन गन की ट्रिगर पर. शरीर पथरा गया था.
114 जवानों के मिले थे शव
मेजर शैतान सिंह कब तक चीनी सैनिकों से लोहा लेते रहे थे, यह कोई नहीं जानता. शायद घंटों या कई दिनों तक. उनके साथ उनकी टुकड़ी के 114 जवानों के शव भी मिले. बाकी 9 सैनिकों को चीन ने युद्ध बंदी बना लिया था. भारत युद्ध हार गया था लेकिन बाद में पता चला कि चीन की सेना का सबसे ज्यादा नुकसान रेजांग ला पर ही हुआ था. यहां भारतीय सेवा के जवानों ने चीन के 1800 सैनिकों को मार गिराया था. पूरे लव लश्कर के बावजूद चीनी सेना यहां घुस नहीं पाई थी।
मरणोपरांत हुए परमवीर चक्र से सम्मानित
रोंगटे खड़ा कर देने वाली इस बहादुर का परिचय देने वाले मेजर शैतान सिंह का उनके पैतृक शहर जोधपुर में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. इसके बाद उन्हें देश का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र मिला. उनके परिवार का सेना से पुराना नाता था. उनका पूरा नाम शैतान सिंह भाटी था। एक दिसंबर, 1924 को राजस्थान के जोधपुर में उनका जन्म हुआ था. पिता आर्मी अफसर लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह भाटी थे. हेम सिंह भाटी को 1 अगस्त, 1949 को कुमाऊं रेजिमेंट में कमीशन मिला था.
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