Madhya Pradesh Assembly Election: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मात देने के बाद अब कांग्रेस उसी फॉर्मूले पर चलते हुए मध्य प्रदेश में भी बीजेपी को शिकस्त देकर दोबारा से सत्ता पर काबिज होने की तैयारी में है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी, लेकिन 15 महीने बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया बगावत करते हुए अपने 21 समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए, जिसके बाद कमलनाथ सरकार गिर गई. इसके बाद बीजेपी ने सरकार बना ली.
इस चुनाव में फिर कामयाब होने के लिए कांग्रेस पुराने योद्धाओं के साथ-साथ कुछ युवा नेताओं के सहारे भी मैदान में ताल ठोक रही है. पार्टी कर्नाटक की तरह ही यहां हाइपरलोकल मुद्दों पर फोकस कर रही है और वोटरों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है. यहां हम आपको बताएंगे कांग्रेस के उन पांच बड़े नामों के बारे में जिन पर पार्टी को जीत दिलाने का जिम्मा है और चुनाव में इन पर सबकी नजर रहेगी.
1. कमल नाथ
पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में राज्य कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ 2020 का बदला लेते हुए फिर से सीएम की कुर्सी पर बैठना चाहेंगे. वह एक चतुर राजनीतिज्ञ और कुशल वार्ताकार भी हैं जो जटिल परिस्थितियों को मैनेज करने के लिए जाने जाते हैं. 18 नवंबर, 1946 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्मे, कमल नाथ ने सेंट जेवियर्स कॉलेज कोलकाता से ग्रेजुएशन किया था. 1971 में वह कांग्रेस में शामिल हुए और पहली बार 1980 में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से लोकसभा के लिए चुने गए. उन्होंने एक ही सीट से लगातार नौ बार जीत हासिल की, इस तरह सबसे लंबे समय तक किसी सीट से सांसद बनने का रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज हो गया.
केंद्र में जब कांग्रेस की सरकार थी, तब वह केंद्रीय मंत्री भी रहे. दिसंबर 2018 में कांग्रेस को जब बहुमत हासिल हुआ तो सीएम बने, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत की वजह से सरकार गिर गई. कमलनाथ ने भाजपा के हिंदुत्व कार्ड का मुकाबला करने के लिए खुद को भगवान हनुमान के भक्त के रूप में पेश करके नरम हिंदुत्व की लाइन अपनाई है.
2. दिग्विजय सिंह
पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह कांग्रेस अभियान का एक अभिन्न हिस्सा हैं और बड़े पैमाने पर राज्य का दौरा कर रहे हैं. दिग्विजय सिंह 1977 से राजनीति में हैं और अपने बेबाक और विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते हैं. वह वर्तमान में राज्यसभा सांसद और कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य हैं. 28 फरवरी 1947 को मध्य प्रदेश के इंदौर में राघौगढ़ के तत्कालीन शाही परिवार में जन्मे दिग्विजय सिंह ने इंदौर में श्री गोविंदराम सेकसरिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1970 में कांग्रेस में शामिल हो गए.
वह पहली बार 1977 में राघौगढ़ से विधानसभा के लिए चुने गए और 1993 में सीएम बने, 2003 तक उन्होंने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए. उन्हें गांधी परिवार का करीबी और वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी का वफादार माना जाता है. दिग्विजय सिंह बीजेपी के गढ़ों में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक पहुंच कार्यक्रम चला रहे हैं, जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत कर रहे हैं, प्रतिद्वंद्विता की समस्या का निवारण कर रहे हैं और भाजपा चुनाव मशीनरी का मुकाबला करने के लिए जमीनी स्तर के संगठन को तैयार कर रहे हैं.
3. जयवर्धन सिंह
जयवर्धन सिंह, दिग्विजय सिंह के बेटे हैं और ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ों पर ध्यान फोकस कर रहे हैं. उन्होंने हाल ही में कुछ ऐसे नेताओं की कांग्रेस में वापसी कराई है जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बगावत करते हुए बीजेपी में चले गए थे. 37 वर्षीय सिंह ने अपनी स्कूली शिक्षा दून स्कूल से पूरी की. इसके बाद श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, नई दिल्ली से बीकॉम (ऑनर्स) किया है. उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी न्यूयॉर्क से लोक प्रशासन और विकास अभ्यास में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ले रखी है. जयवर्धन ने 2013 में राजनीति में एंट्री की और राघौगढ़ से विधानसभा चुनाव जीता. 2018 में भी वह इस सीट से जीते.
4. जीतू पटवारी
जीतू पटवारी राज्य कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. कांग्रेस की सरकार में वह मंत्री भी थे. वह एमपी कांग्रेस कमेटी के सह-अध्यक्ष भी हैं. उनकी जन आक्रोश रैलियों में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए हैं. पटवारी, चौहान सरकार के खिलाफ आक्रामक अभियान का हिस्सा रहे हैं और वह पटवारी (राजस्व अधिकारी), पुलिस और शिक्षक भर्ती घोटालों जैसे मामलों के जरिये शिवराज सरकार को लगातार घेरने का प्रयास कर रहे हैं. पटवारी राऊ से विधायक हैं. इनका जन्म 19 नवंबर 1973 को इंदौर के पास एक छोटे से शहर बिजलपुर में हुआ था. इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से बीए और एलएलबी पास हैं.
5. कमलेश्वर पटेल
हाल ही में सीडब्ल्यूसी में शामिल किए गए कमलेश्वर पटेल के पास विंध्य प्रदेश क्षेत्र में भाजपा के गढ़ों को बचाने की जिम्मेदारी है. वह इसे लेकर लगातार रणनीति बना रहे हैं. पटेल ने 2013 में सिहावल से अपना पहला विधानसभा चुनाव 32,000 से अधिक वोटों से जीता और समान अंतर से फिर से चुने गए. वह कमलनाथ सरकार में मंत्री रह चुके हैं.
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