Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले समाजवादी पार्टी को बड़ा झटका लगा है. महासचिव के पद पर रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी छोड़ दी है. उन्होंने नई पार्टी बनाने का फैसला कर लिया है. स्वामी प्रसाद मौर्य के इस फैसले का असर आगामी चुनाव में देखने को मिलेगा. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव विपक्षी दलों के साथ मिलकर यूपी में बीजेपी का दबदबा कम करने में लगे हैं, लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य के इस फैसले से सबसे ज्यादा नुकसान अखिलेश की चुनावी उम्मीदों को होने वाला है.
पार्टी छोड़ने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव में 40-45 सीट पर सिमटी रहती थी. उनके आने के बाद पार्टी को 100 से ज्यादा सीटें मिलीं और वोट शेयर 6 फीसदी बढ़ा था. ऐसे में उनके जाने से सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को ही होगा.
यूपी में क्या है वोट का गणित?
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं. यहां सबसे ज्यादा 52 फीसदी मतदाता ओबीसी और दलित समाज के हैं. वहीं, 23 फीसदी मतदाता सवर्ण और 20 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं. ऐसे में यहां जीत हासिल करने के लिए ओबीसी मतदाताओं का वोट बेहद जरूरी है. इसी वजह से सभी पार्टियों के नेता ओबीसी मतदाताओं को लुभाने में जुटे रहते हैं.
यूपी के ओबीसी मतदाता समाजवादी पार्टी का वोट बैंक माने जाते हैं. इसी वजह से यह पार्टी यहां सत्ता में रही है. हालांकि, ओबीसी मतदाताओं को भी दो वर्गों में बांटा जाता है. पहले वह ओबीसी मतदाता हैं, जो समाज में अहम भूमिका रखते हैं, जैसे यादव. दूसरे वह ओबीसी मतदाता हैं, जिनका दबदबा कम है. यादव पारंपरिक रूप से समाजवादी पार्टी के वोटर हैं, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के बीच स्वामी प्रसाद मौर्य की पकड़ मजबूत है. ऐसे में उनके समाजवादी पार्टी छोड़ने से समाजवादी पार्टी के ओबीसी और बहुजन समाजवादी पार्टी के दलित वोट बैंक में कमी आएगी. वह अखिलेश और मायावती के वोट काटेंगे और इसका फायदा बीजेपी को होगा.
हिंदू विरोधी छवि का भी असर
स्वामी प्रसाद मौर्य हमेशा से ही हिंदू विरोधी बयान देते रहे हैं. इससे वह बौद्ध और मुस्लिम वोटरों को साधने की कोशिश भी करते हैं. ऐसे में वह अलग पार्टी बनाकर समाजवादी पार्टी और मायावती के वोटर कम करेंगे. इसके साथ ही अन्य क्षेत्रीय दलों को भी इसका नुकसान हो सकता है. अगर स्वामी प्रसाद किसी के साथ गठबंधन नहीं करते हैं और अपने प्रभाव वाली सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारते हैं तो अखिलेश और मायावती के साथ क्षेत्रीय दलों के भी वोट कम करेंगे. इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है. क्योंकि सवर्ण मतदाता एकजुट होकर बीजेपी को वोट देते हैं.
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