Bharat Ratna To LK Advani: भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वयोवृद्ध नेता और पूर्व प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने की घोषणा के बाद पूरे देश में एक बार फिर उनकी चर्चा तेज हो गई है. जनसंघ की स्थापना के समय से ही पार्टी के कद्दावर नेताओं में शामिल रहे आडवाणी को इस सम्मान की घोषणा के बाद उनके समर्थकों में खुशी की लहर है. देश की आजादी के समय के दिग्गज नेताओं में से एक रहे आडवाणी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्रिमंडल से लेकर राम मंदिर आंदोलन तक का दिलचस्प सफर तय किया था.
हालांकि उनके दिल में एक मलाल हमेशा से रहा है जो आज भी है. ये गम है आजादी के बाद उस भूमि के पाकिस्तान में चले जाने का जहां उन्होंने जन्म लिया था. उन्हें अमूमन अपनी जन्मभूमि की याद सताती रहती है.
‘सिंध के बिना भारत अधूरा है’
जी हां लाल कृष्ण आडवाणी का जन्म अविभाजित भारत के कराची में एक सिंधी परिवार में वर्ष 1927 में हुआ था. अपनी मातृभूमि के भारत में नहीं होने का दुख वह कई बार जाहिर कर चुके हैं. उन्होंने बार-बार कहा है कि सिंध के बिना भारत अधूरा है. इस शहर से जुड़ी अपनी यादों को वह हमेशा बयान करते रहते हैं. उन्होंने 2017 में एक कार्यक्रम में कहा था, ‘कभी-कभी मैं महसूस करता हूं कि कराची और सिंध अब भारत का हिस्सा नहीं रहे. मैं बचपन के दिनों में सिंध में आरएसएस में काफी सक्रिय था. मेरा मानना है कि सिंध के बिना भारत अधूरा है.’
‘जहां मेरा जन्म हुआ वह हिस्सा आज मेरे साथ नहीं है’
उसी साल दिल्ली में एक कार्यक्रम में आडवाणी ने कहा, ‘कितने लोगों को इस बात का अहसास है, जो अहसास मुझे है कि भारत का एक हिस्सा था, जब भारत विभाजित नहीं हुआ था. एक हिस्सा ऐसा था, जिसमें मेरा जन्म हुआ. जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो हमारी स्वतंत्रता के साथ-साथ वह हिस्सा हमसे अलग हो गया. मैं जहां का निवासी हूं, जहां मेरा जन्म हुआ, वह हिस्सा सिंध, आज भारत का हिस्सा नहीं है, आज हमारे साथ नहीं है. इस बात का दुख मुझे और मेरे साथियों को बहुत होता है.’
ऐसा रहा लालकृष्ण आडवाणी का सफर
आपको बता दें कि बीजेपी के कद्दावर नेता 96 वर्षीय लालकृष्ण आडवाणी का राजनीतिक सफर संघर्षमय रहा है. 1942 में ही वो राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के स्वयंसेवक बन गए थे और आजादी की लड़ाई में भी सक्रिय रहे. आजादी के बाद उनका पूरा परिवार पाकिस्तान से भारत आ गया था. यहां वो पहले जनसंघ से जुड़े, फिर जनता पार्टी में दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ अहम जिम्मेवारी संभालते रहे.
आपातकाल के बाद भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य बने. 1988 में वे पहली बार भारत के गृह मंत्री बने. जून 2002 से मई 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान वो देश के उप प्रधानमंत्री रहे. आज शनिवार (3 फरवरी) को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा की है.
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