Independence Day 2023: देशभर में 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी चल रही हैं. इस बीच उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा जिले के सुदूर गांव के एक बुनकर ने भारत के नक्शे और तिरंगे वाली कालीन तैयार की है. उन्हें उम्मीद है कि इस कालीन को भारत की नई संसद में प्रदर्शित किया जाएगा.
ये कालीन अष्टेंगू गांव में मास्टर बुनकर मोहम्मद मकबूल डार ने तैयार की है. पिछले 40 साल से कालीन बुन रहे डार ने तिरंगे के साथ भारत के नक्शे वाला रेशमी कालीन बुना है. 2 x 2 फीट की कालीन को पूरा करने में उन्हें दो महीने का समय लगा.
देश के प्रति प्रेम का प्रतीक
डार ने कहा, “मैं इस साल स्वतंत्रता दिवस को यादगार बनाने के लिए कुछ अनूठा करना चाहता था. इसलिए मैंने कालीन में तिरंगा और भारत का नक्शा बनाया. यह स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्र के प्रति प्रेम का प्रतीक है.”
कालीन उद्योग को मिलेगा बढ़ावा
डार ने कहा, “मैं पिछले कुछ वर्षों से अपनी देशभक्ति और देश के प्रति प्रेम व्यक्त करने के लिए इस अवसर पर कुछ अनोखा बुनता था. मेरा मानना है कि यह भाव निश्चित रूप से कश्मीर घाटी के कालीन उद्योग को आगे बढ़ाएगा.”
कैसा है कालीन का डिजाइन?
कालीन के बैकग्राउंड में तेज नीला रंग और सबसे ऊपर गहरा केसरिया रंग है, बीच में सफेद और गहरे नीले रंग का पहिया है. इसका निचला भाग गहरे हरे रंग का है. तीनों भाग समान अनुपात में हैं, जो भारत के मानचित्र को आकर्षक बनाते हैं.
मानचित्र बुनने की शिक्षा ली
बकौल डार उन्होंने यह आइडिया भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान (IICT) श्रीनगर को दिया है, जिसने उन्हें विषय के प्रिंटआउट के साथ कालीन पर तिरंगे के साथ मानचित्र बुनने की कम्प्यूटरीकृत शिक्षा दी. बांदीपोरा के उपायुक्त ओवैस अहमद ने उन्हें 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस समारोह में आमंत्रित भी किया है.
बता दें कि डार इलाके में “डिलाइट कारपेट वीवर्स” सोसायटी चलाते हैं. उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा जिले में उनके 20 से अधिक करघे हैं, जहां दलित परिवारों की लगभग 50 युवा और शिक्षित लड़कियां अलग-अलग चीजें बुन रही हैं. उनके पास पढ़ी-लिखी लड़कियों की एक बड़ी टीम है जो पिछले कई सालों से उनके साथ अलग-अलग आकार और रंगों के कालीन बुनने का काम कर रही हैं.
डार के प्रयासों की प्रशंसा
कला के माध्यम से देशभक्ति प्रदर्शित करने के डार के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए डीडीसी अध्यक्ष अलोसा रेयाज अहमद खान ने कहा कि उन्हें खुशी है कि ऐसा कारीगर उनके क्षेत्र में रह रहा है. उन्होंने कहा, “यह परंपरा काफी पुरानी है और अब मास्टर कारीगर मोहम्मद मकबूल इस कला को पुनर्जीवित करने में मदद कर रहे हैं. साथ ही दलित और विकलांग लोगों, विशेषकर लड़कियों को आजीविका कमाने में भी मदद कर रहे हैं.”
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