22 सितंबर को कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी ने राजधानी दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की. इस औपचारिक मुलाकात के बाद जनता दल सेक्युलर जेडीएस राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल हो गई. बैठक के दौरान भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा और गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत भी मौजूद रहे. सूत्रों के अनुसार इन तीनों नेताओं के बीच लोकसभा चुनाव को देखते हुए कर्नाटक की सीट शेयरिंग को लेकर भी चर्चा हुई.
एनडीए में शामिल होने के बाद जेपी नड्डा ने सोशल मीडिया एक्स पर ट्वीट करते हुए लिखा, ‘मुझे खुशी है कि जेडीएस ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए का हिस्सा बनने का फैसला किया है. हम एनडीए में उनका तहे दिल से स्वागत करते हैं. इससे एनडीए और पीएम मोदी के न्यू इंडिया, स्ट्रांग इंडिया के दृष्टिकोण को और मजबूती मिलेगी.’
ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि क्या एनडीए और जेडीएस के साथ आने से क्या कर्नाटक में कांग्रेस कमज़ोर पड़ जाएगी और दोनों पार्टियों के हाथ मिलाने से क्या समीकरण बदलेंगे.
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर विकास गुप्ता ने एबीपी से बातचीत में कहा कि साल 2023 में कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव का परिणाम देखे तो पाएंगे कि इस चुनाव में जेडीएस सिर्फ 19 सीटों पर सिमट कर रह गई थी.
गुप्ता ने बताया कि कर्नाटक में वोक्कालिगा समुदाय के बीच जेडीएस की पकड़ अच्छी मानी जाती थी लेकिन इस विधानसभा चुनाव में जेडीएस के कोर वोटरों ने भी उनका साथ नहीं दिया. अब जब पार्टी ने एनडीए से हाथ मिला लिया है तो जेडीएस के पास अपने वोटरों को फिर से अपनी तरफ करने का एक और मौका है.
क्या गठबंधन के बाद राज्य में कांग्रेस कमज़ोर पड़ जाएगी?
साल 2019 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव के अनुसार राज्य में कांग्रेस को 43.2 प्रतिशत वोट के साथ 135 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं बीजेपी को 36.3 फीसदी वोट के साथ 66 सीटें और जेडीएस को 13.4 प्रतिशत वोट के साथ 19 सीटें मिली थी. हालांकि अगर एनडीए और जेडीएस दोनों का वोटिंग प्रतिशत मिला दिया जाए तो वो कांग्रेस से ज्यादा है.
अब जानते हैं राज्य के किस हिस्से में किस पार्टी की पकड़ है?
कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी और जेडीएस दो ऐसी पार्टियां हैं, जिनके अपने-अपने कोर वोटर्स हैं. जेडीएस को वोक्कालिगा समुदाय का समर्थन हैं तो भारतीय जनता पार्टी की लिंगायतों का वोट मिलता आया है. ये दोनों ही ऐसे समुदाय लगभग पूरे राज्य में चुनाव नतीजों को प्रभावित करते हैं.
जेडीएस के कोर वोटर हुए दूर
साल 2023 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों से पता चला कि इस चुनाव में जेडीएस के कोर वोटर यानी वोक्कालिगा समुदाय ने पार्टी को अपना समर्थन नहीं दिया. साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के मुकाबले साल 2023 में जेडीएस की लगभग 50 प्रतिशत सीटें घट गईं. जेडीएस 37 से 19 सीटों पर सिमट कर रह गई. इस पार्टी का वोट शेयर भी 18.3% से घटकर 13.3% रह गया.
कांग्रेस को कैसे प्रभावित कर सकता है ये गठबंधन
साल 2023 में कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खाते में 135 सीटें आई और 42.9 प्रतिशत पार्टी का वोट शेयर रहा. अगर कांग्रेस के वोट शेयर से भारतीय जनता पार्टी और जेडीएस के वोट शेयर को मिला दें तो यह लगभग 50 प्रतिशत के आसपास हो जाएगा है. यानी कांग्रेस के वोट प्रतिशत से 7 फीसदी ज्यादा. जिसका मतलब है कि साल 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में अगर बीजेपी और जेडीएस गठबंधन में होती तो इस बार नतीजे कुछ और हो सकते थे.
जेडीएस-एनडीए गठबंधन से किसको फायदा?
प्रोफेसर विकास गुप्ता कहते हैं कि जेडीएस और एनडीए के गठबंधन की अटकलें साल 2023 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों के साथ ही लगाई जाने लगी थीं. ये तो साफ है कि इस गठबंधन से सबसे ज्यादा लाभ जेडीएस को ही मिलेगा. एनडीए से गठबंधन के जरिये जेडीएस, अपने कोर वोटर्स को दोबारा साधना चाहती है और कर्नाटक की राजनीति में प्रासंगिक बने रहना चाहती है.
वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी को उम्मीद है कि जेडीएस का साथ मिलने के बाद एनडीए को लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को रोकने में तो मदद मिलेगी ही. साथ ही दक्षिण के अन्य राज्यों को भी एक सकारात्मक संदेश जाएगा. बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर चुनाव लड़ा था. इसके बावजूद बीजेपी ने अकेले 28 में से 25 सीटें हासिल की थी.
जेडीएस के साथ गठबंधन में आने से भारतीय जनता पार्टी को उत्तर और दक्षिण कर्नाटक की पिछड़ी-दलित जातियों में सेंध लगाने में सफलता मिल सकती है. वहीं बेंगलुरु कर्नाटक में बीजेपी की पकड़ फिलहाल मजबूत बनी हुई बताई जाती है, लेकिन अन्य इलाकों में पार्टी की स्थिति कमजोर हुई है. इस कमजोरी को मजबूती में बदलने के लिए बीजेपी लगातार प्रयास कर रही थी.
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए क्या है चुनौती
देश में अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव में कर्नाटक में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए भाजपा के सामने फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती उसके लिंगायत वोटर्स के बिखरने से रोकना है. दरअसल साल 2023 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान लिंगायत मतदाताओं ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया था जिससे पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि इस चुनाव में हारने के पीछे बीजेपी की अपनी गलतियां भी कम जिम्मेदार नहीं रहीं. पार्टी ने अपने दिग्गज लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा को मुख्य भूमिका से पीछे खींच लिया, लक्ष्मण सावदी और जगदीश शेट्टार को उनकी सीटों से टिकट देने से इनकार कर दिया गया. जिसके बाद बीजेपी से नाराज इन नेताओं ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया और उनके साथ उनके मतदाताओं ने अपना पाला बदल लिया.
जेडीएस-एनडीए गठबंधन पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने क्या कहा?
जेडीएस के एनडीए में शामिल होने के बाद कांग्रेस ने शुक्रवार (22 सितंबर) को कहा कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ‘बी टीम’ आज आधिकारिक रूप से एनडीए का हिस्सा बन गई. पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट किया, “कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने जो बार-बार कहा था, आज आधिकारिक तौर पर उसकी पुष्टि हो गई है. राज्य में बीजेपी की बी टीम जेडीएस आधिकारिक तौर पर एनडीए का हिस्सा बन गई है.”
वहीं कर्नाटक के मंत्री और कांग्रेस नेता प्रियांक खड़गे ने इस गठबंधन को लेकर कहा- जेडीएस को चुनाव आयोग को पत्र लिखना चाहिए और अपनी पार्टी के नाम से ‘सेक्युलर’ शब्द हटा देना चाहिए. क्योंकि एक समय आप धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं, और उसी समय आप स्वतंत्र भारत के इतिहास की सबसे सांप्रदायिक पार्टी से हाथ मिला रहे हैं
बीजेपी ने एनडीए-जेडी(एस) गठबंधन का किया स्वागत
वहीं जेडीएस के इस फैसले पर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा ने 8 सितंबर को बताया कि JDS लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ेगी. उन्होंने बताया कि गृहमंत्री अमित शाह (JDS) को लोकसभा की 4 सीटें देने पर सहमत हो गए हैं. हालांकि, पहले JDS कर्नाटक की 28 सीटों में से पांच सीटें मांग रही थी.