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Independence Day 2023: देशभर में मंगलवार को 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जाएगा. आजादी के लिए शहादत देने वालों में देश की महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. ब्रिटिश राज से भारत की आजादी के संघर्ष में महिलाओं के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
देश की महिलाओं ने स्वतंत्रता हासिल करने के लिए अंग्रेजों की विभिन्न यातनाएं झेली और उनके शोषण का सामना किया. 77वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आइए एक नजर डालते हैं भारत की उन महिला स्वतंत्रता सेनानियों पर जिनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता.
मातंगिनी हाजरा
मातंगिनी हाजरा को गांधी बुरी के नाम से जाना जाता था. उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन और असहयोग आंदोलन में भाग लिया. एक जुलूस के दौरान, तीन बार गोली लगने के बाद भी वह भारतीय ध्वज के साथ आगे बढ़ती रहीं और ‘वंदे मातरम’ चिल्लाती रहीं.
सरोजिनी नायडू
भारतीय कोकिला के नाम से मशहूर सरोजिनी नायडू सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी ही नहीं, बल्कि एक कवियत्री भी थीं. सरोजिनी नायडू ने खिलाफत आंदोलन की कमान संभाली और अग्रेजों को भारत से निकालने में अहम योगदान दिया.
अम्मु स्वामीनाथन
अम्मु स्वामीनाथन भी भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं. वह सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता और भारत की संविधान सभा के सदस्यों में से एक थीं. अम्मू ने शादी के बाद ही पढ़ाई की और अंग्रेजी सीखी. बाद में वह आजादी की लड़ाई से जुड़ गईं और महात्मा गांधी की फॉलोअर बन गईं.
रमादेवी चौधरी
रमादेवी चौधरी भारतीय स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थीं. साल 1921 में वह अपने पति के साथ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुई थीं. वह महात्मा गांधी से बहुत अधिक प्रभावित थीं. उन्होंने असहयोग आंदोलन में बढ़ृ-चढ़ कर हिस्सा लिया था. वह गांव-गांव जाकर महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करती थीं.
अरुणा आसिफ अली
वह स्वतंत्रता आंदोलन की ‘द ग्रैंड ओल्ड लेडी’ के नाम से लोकप्रिय हैं. वह एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं. अरुणा को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झंडा फहराने के लिए जाना जाता है. उन्होंने नमक सत्याग्रह आंदोलन के साथ-साथ अन्य विरोध मार्चों में भी भाग लिया और जेल गईं.
सुचेता कृपलानी
सुचेता कृपलानी एक गांधीवादी, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थीं. दिल्ली में पढ़ाई के दौरान भी कॉलेज से अकसर वो किसी राजनीतिक सभा-सम्मेलन में शिरकत करने पहुंच जातीं. 1940 में सुचेता कृपलानी ने कांग्रेस की महिला विंग की शुरुआत की थी. 1946 में उन्हें संविधान सभा का सदस्य चुना गया. 15 अगस्त 1947 को उन्होंने संविधान सभा में वंदे मातरम गाया.
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा
चेन्नम्मा कर्नाटक में कित्तूर रियासत की रानी थीं, उन्होंने ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ की ब्रिटिश नीति के खिलाफ 1824 के विद्रोह का नेतृत्व किया. इस दौरान उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी. उनकी वीरता आज भी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है.
कनकलता बरुआ
कनकलता बरुआ को बीरबाला के नाम से भी जाना जाता है. वह असम की एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं. उन्होंने 1942 में बारंगाबाड़ी में भारत छोड़ो आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई और हाथ में राष्ट्रीय ध्वज लेकर महिला स्वयंसेवकों की कतार में सबसे आगे खड़ी रहीं. उनका लक्ष्य “ब्रिटिश साम्राज्यवादियों वापस जाओ” जैसे नारे लगाकर ब्रिटिश-प्रभुत्व वाले गोहपुर पुलिस स्टेशन पर झंडा फहराना था, लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें रोक दिया और अन्य प्रदर्शनकारियों के साथ उन्हें भी गोली मार दी.
भीकाजी कामा
भीकाजी कामा भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन की एक प्रतिष्ठित शख्सियत थी. वह एक जानी-मानी स्वतंत्रता सेनानी हैं. उन्होंने पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता पर जोर दिया. साथ ही युवा लड़कियों के लिए एक अनाथालय की मदद के लिए अपनी सारी संपत्ति दे दी. एक भारतीय राजदूत के रूप में, उन्होंने 1907 में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए जर्मनी की यात्रा भी की.
लक्ष्मी सहगल
लक्ष्मी सहगल पूर्व भारतीय सेना अधिकारी थीं. उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) के लिए बंदूक उठाई और स्वतंत्रता संग्राम में एक शेरनी की तरह इसका नेतृत्व किया. वह महिला सैनिकों वाली झांसी की रानी रेजिमेंट की स्थापना और नेतृत्व करने की प्रभारी थीं.
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