आम चुनाव, 2024 अब चंद ही महीने बाक़ी हैं. अगले साल अप्रैल-मई में लोक सभा चुनाव होना है. 2014 से केंद्र की सत्ता पर बीजेपी की अगुवाई में एनडीए का क़ब्ज़ा है. लगातार दो बार 2014 और 2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया.
केंद्र की राजनीति पर 2014 से बीजेपी का प्रभुत्व कुछ इस कदर स्थापित हो गया कि देश की संसदीय व्यवस्था में विपक्ष की भी भूमिका गौण मात्र की रह गई. कई विपक्षी दलों के लिए केंद्र की राजनीति में प्रासंगिकता बनाए रखना मुश्किल हो गया है. केंद्रीय राजनीति में अपनी-अपनी पार्टियों की प्रासंगिकता या यूं कहें अस्तित्व बचाए रखने के लिए कांग्रेस समेत कई दलों के पास 2024 के चुनाव के लिए आपस में हाथ मिलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था.
एक दशक में बीजेपी केंद्र में बेहद मज़बूत हुई है
केंद्रीय राजनीति के लिहाज़ से पिछले एक दशक में बीजेपी की राजनीतिक ताक़त इतनी ज़्यादा हो गई है कि किसी एक दल के लिए 2024 में चुनौती देना एक तरह से असाध्य हो गया. इसी का तोड़ निकालने के परिणाम के तौर पर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ सामने आया. कांग्रेस समेत 26 विपक्षी दलों से शुरू हुआ यह कारवाँ 28 दलों तक पहुँच गया है. विपक्षी दलों का गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (I.N.D.I.A.) आम चुनाव 2024 में बीजेपी के विजय रथ को रोकने में कितना असरदार या असरकारक साबित होगा, सबसे बड़ा सवाल यही है.
कांग्रेस के प्रदर्शन में सुधार पर बहुत कुछ निर्भर
विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का कितना प्रभाव पड़ेगा और बीजेपी को केंद्र की सत्ता से दूर करने के मकसद की प्रासंगिकता बहुत हद तक कांग्रेस के प्रदर्शन पर निर्भर है. देश के राजनीतिक हालात और राज्यों में अलग-अलग दलों की स्थिति पर ग़ौर करें, तो इस बात को ब-ख़ूबी समझा जा सकता है.
दो प्रश्न महत्वपूर्ण हो जाते हैं. पहला, विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ से बीजेपी को उन राज्यों में नुक़सान पहुंच पायेगा या नहीं, जो-जो राज्य बीजेपी की बड़ी ताक़त हैं. जिन राज्यों में 2014 और 2019 में शानदार प्रदर्शन करते हुए बीजेपी केंद्र की सत्ता पर क़ाबिज़ हुई, उन राज्यों में विपक्षी गठबंधन में शामिल पार्टियाँ, ख़ासकर कांग्रेस, अपना प्रदर्शन बेहतर कर पाती हैं या नहीं. दूसरा प्रश्न जुड़ा है विपक्षी गठबंधन में शामिल अधिकांश दलों के अपने-अपने प्रभाव वाले राज्यों में कितनी ज़्यादा सीटें आती हैं.
विपक्ष में कांग्रेस का ही जनाधार पैन इंडिया
विपक्षी गठबंधन में शामिल दलों में सिर्फ़ कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है जिसका पैन इंडिया जनाधार है. इसमें कोई दो राय नहीं है. कांग्रेस के अलावा ‘इंडिया’ गठबंधन में ऐसी कोई पार्टी नहीं है जो यह दावा कर सके कि उसका जनाधार देश के कई राज्यों में है. यहाँ पर जनाधार से तात्पर्य महज़ चंद फ़ीसदी वोट हासिल करने से नहीं है,बल्कि सीट विशेष पर चुनाव जीतने से है.
विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल दलों के पास फ़िलहाल कुल 149 लोक सभा सांसद हैं. दूसरी ओर एनडीए को छोड़ दें, तो अकेले बीजेपी के पास 301 सांसद हैं. विपक्षी गठबंधन में जो दल शामिल हैं, लोक सभा में उनकी ताक़त फ़िलहाल कितनी है, इस पर अगर नजर डालेंगे, तो 28 दलों में से कांग्रेस को मिलाकर 16 दलों के पास लोक सभा की कोई न कोई सीट है. विपक्षी दलों में किसी के पास तीन अंकों में सीट नहीं है.
विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल दलों में से फ़िलहाल सिर्फ़ 4 दल ही ऐसे हैं, जिनके पास अभी लोक सभा में सीटों की संख्या दहाई के अंकों में है. इनमें कांग्रेस के पास 51, डीएमके के पास 24, तृणमूल कांग्रेस के पास 23 और जनता दल यूनाइटेड के पास 16 सीटें हैं. शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के पास 6 लोक सभा सांसद हैं. इनके अलावा 11 दलों के पास सीटें 5 से भी कम-कम हैं. शरद पवार की एनसीपी के पास 4, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या’नी सीपीएम, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, नेशनल कॉन्फ्रेंस और समाजवादी पार्टी के पास 3-3 सीटें हैं. सीपीआई के पास 2 सीटें हैं. जबकि आम आदमी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), विदुथलाई चिरूथाईगल काची और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के पास एक-एक सीट है.
‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल में दल कितने प्रभावी?
विपक्षी गठबंधन के तहत 2024 के चुनाव में दहाई अंक में सीटें जीतने की संभावना को अगर कसौटी बनाते हैं, तो ऐसे दलों की संख्या 10 बनती है. इनमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, जनता दल यूनाइटेड, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, सीपीएम, शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और शरद पवार का एनसीपी धड़ा शामिल है. बाक़ी दल चाहे कितना भी ज़ोर लगा लें, उनके लिए दो अंकों में पहुँचना नामुमकिन है.
विपक्षी गठबंधन में ये जो 10 दल हैं, उनमें कांग्रेस को छोड़कर सीट जीतने के लिहाज़ से बाक़ी 9 दलों की कुछ सीमाएं हैं. तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल से बाहर सीट नहीं जीत सकती है. डीएमके तमिलनाडु से बाहर कुछ नहीं कर सकती है. जनता दल यूनाइटेड और आरजेडी की प्रभावी भूमिका बिहार तक ही सीमित है. समाजवादी पार्टी में सिर्फ़ उत्तर प्रदेश में ही लोक सभा सीट जीतने का दमख़म है. उसी तर्ज़ पर शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और शरद पवार का एनसीपी गुट सीट जीतने के हिसाब से महाराष्ट्र तक ही सीमित है. जहाँ तक आम आदमी पार्टी का सवाल है, सीट जीतने के लिहाज़ से उसका दावा दिल्ली और पंजाब तक ही सीमित है. वहीं सीपीएम की दावेदारी भी केरल और दो-तीन सीटों पर पश्चिम बंगाल तक ही बनती है.
इंडिया’ गठबंधन के दलों से बीजेपी को कितना नुक़सान?
राज्य विशेष तक प्रभावी भूमिका रखने के बावजूद ये तमाम दल उस राज्य में अच्छा प्रदर्शन करेंगे या नहीं, यह भी बहुत हद तक कई सियासी समीकरणों पर निर्भर करता है. जैसे उत्तर प्रदेश की बात करें, तो मायावती के किनारा कर लेने से समाजवादी पार्टी-कांग्रेस-आरएलडी आपस में मिलकर भी बीजेपी का बड़ा नुक़सान कर पायेंगे, इसकी संभावना बहुत ही कम है.
उसी तरह से पश्चिम बंगाल में बीजेपी को बड़ा नुक़सान तभी पहुंच सकता है, जब कांग्रेस और सीपीएम क़ुर्बानी देते हुए ज्य़ादा से ज्यादा सीटों पर ममता बनर्जी की टीएमसी को लड़ने दे. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार पार्टी में दो फाड़ होने के बाद अपनी राजनीतिक विरासत बचाने की ही चुनौती से जूझ रहे हैं, ऐसे में महाराष्ट्र में भी विपक्षी गठबंधन से बीजेपी को बड़ी क्षति की संभावना कम ही दिखती है.
बिहार में बीजेपी को बड़ा नुक़सान पहुंच सकता है, अगर आरजेडी-कांग्रेस और जेडीयू के बीच सीटों के बँटवारे पर इस तरह से सहमति बनती हो कि जीतने की संभावना वाली पार्टी को ही ज़्यादा सीटों पर मौक़ा मिले. इस कसौटी पर जेडीयू और कांग्रेस को थोड़ा नरम रुख़ दिखाना होगा, ताक़ि आरजेडी ज़्यादा सीटों पर लड़ सके. हालांकि पार्टी निजी हितों के लिहाज़ से यह इतना सरल नहीं है.
जहाँ तक तमिलनाडु की बात है, बीजेपी के लिए वहाँ 2014 और 2019 के मुक़ाबले नुक़सान की कोई संभावना ही नहीं है. तमिलनाडु ऐसा राज्य है, जिसको लेकर केंद्र की सत्ता हासिल करने के नज़रिये से पिछले दो लोक सभा चुनाव में बीजेपी की कोई ख़ास उम्मीदें रही हों. यहाँ 2014 में बीजेपी किसी तरह से एक सीट जीत पायी थी और 2019 में खाता भी नहीं खुला था.
आम आदमी पार्टी का सवाल है, तो पकड़ के लिहाज़ से दिल्ली और पंजाब महत्वपूर्ण है. पंजाब में 13 और दिल्ली में 7 लोक सभा सीटे है. पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की वज्ह से बीजेपी को 2019 और 2014 में में दो-दो सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि अब पंजाब में बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल एक साथ नहीं हैं. पिछले दो आम चुनाव के लिहाज़ से पंजाब उन राज्यों में शामिल नहीं है, जहाँ बीजेपी को कोई बड़ा नुक़सान हो सकता है. दिल्ली में पिछले दोनों चुनावों में बीजेपी सभी सात सीट पर जीतते आ रही है. यहाँ अगर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस सीटों के बँटवारे में नहीं उलझते हैं, तो बीजेपी को कम से कम 5 सीटों का नुक़सान पहुंच सकता है.
विपक्षी गठबंधन के तहत सीपीएम ऐसे पार्टी है जिसका अब मुख्य प्रभाव केरल में ही रह गया है. केरल में कुल 20 लोक सभा सीट हैं. यहाँ बीजेपी को रत्ती भर हानि होने की संभावना नहीं है क्योंकि केरल में बीजेपी अब तक के इतिहास में कभी भी कोई लोक सभा सीट नहीं जीत पायी है. यहाँ की राजनीति कांग्रेस और सीपीएम के इर्द-गिर्द ही सीमित रही है.
बीजेपी को कांग्रेस से ही बड़ा नुक़सान संभव
विपक्षी गठबंधन में शामिल तमाम दलों की राजनीति हैसियत और उनसे बीजेपी को बड़ा नुक़सान पहुंचने की गणित को समझने से एक बात स्पष्ट है. सिर्फ़ कांग्रेस के सुधरे प्रदर्शन से ही बीजेपी को 2024 में बड़ा नुक़सान हो सकता है. इसका एक पहलू यह है कि पिछले दो लोक सभा चुनाव से बीजेपी को जिन राज्यों से ज़्यादा सीट हासिल होती रही हैं, उनमें से अधिकांश में कांग्रेस के साथ सीधी टक्कर है.
2019 में बीजेपी की बड़ी ताक़त वाले 8 राज्य
बीजेपी ने 2019 के लोक सभा चुनाव में 303 सीट जीतने में सफल रही थी. इसमें लोक सभा सीटों के हिसाब से बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के साथ ही महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल का महत्वपूर्ण योगदान था. इन 8 राज्यों में कुल 318 लोकसभा सीटें आती हैं. बीजेपी का प्रदर्शन इन 8 राज्यों में शानदार रहा था. बीजेपी को 2019 के लोक सभा चुनाव में इन राज्यों से ही 223 सीट मिल गई थी.
अब इन 8 राज्यों में 6 राज्य छत्तीसगढ़, झारखंड, हरियाणा, उत्तराखंड, असम और दिल्ली की सभी सीट मिला देते हैं. ऐसा करने से इन 14 राज्यों में लोक सभा की कुल सीट 379 हो जाती है. अगर इन 14 राज्यों में 2019 में बीजेपी के प्रदर्शन को देखें, तो उसे इन 379 में से 275 सीट पर जीत हासिल हुई थी. यही वो 14 राज्य हैं, जिनमें बीजेपी की असल ताक़त छिपी हुई है.
इनमें से उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली के समीकरणों को ऊपर समझ लिया है. झारखंड में कांग्रेस का कुछ ख़ास प्रभाव अब रह नहीं गया है. वहाँ हेमंत सोरेन की झारंखड मुक्ति मोर्चा से ही बीजेपी को चुनौती मिलने वाली है. बीजेपी की बड़ी ताक़त वाले 14 राज्यों में से इन 6 राज्यों को हटा देते हैं.
बीजेपी-कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर वाले 8 राज्य
अब बाक़ी बचे 8 राज्य गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड और असम में बीजेपी को सीधे कांग्रेस से चुनौती है. ये 8 राज्य हैं, जहाँ बीजेपी शत-प्रतिशत सीट जीतने का लक्ष्य लेकर चलती है. गुजरात में 26, राजस्थान में 25, मध्य प्रदेश में 29, कर्नाटक में 28, छत्तीसगढ़ में 11, हरियाणा में 10, उत्तराखंड में 5 और असम में कुल 14 लोक सभा सीटें हैं. इनमें से 2019 के आम चुनाव में बीजेपी के खाते में गुजरात में 26, राजस्थान में 24, मध्य प्रदेश में 28, कर्नाटक में 25, छत्तीसगढ़ में 9, हरियाणा में 10, उत्तराखंड में 5 और असम में 9 सीटें गई थी.
क्या 8 राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरेगा?
सरल तरीके से समझें तो इन 8 राज्यों में कुल 148 लोक सभा सीटें हैं. इनमें से 2019 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी ने 136 सीटों पर जीतने में सफल रही थी. ये 8 राज्य आगामी लोक सभा चुनाव के लिहाज़ से इसलिए भी ज़रूरी हो जाते हैं क्योंकि बीजेपी इन राज्यों में शत-प्रतिशत सीट अपने क़ब्ज़े में करना चाहेगी. इन 8 राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस में ही सीधी टक्कर होती है. विपक्षी गठबंधन के लिहाज़ से इन राज्यों में कांग्रेस को किसी और दल से कोई ख़ास लाभ होने वाला नहीं है. या’नी इन राज्यों में बीजेपी को बड़ा नुक़सान पहुँचाने का पूरा का पूरा दारोमदार कांग्रेस के कंधे पर ही है.
आम चुनाव, 2024 में बीजेपी को नुक़सान के लिहाज़ से 8 राज्य गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड और असम बेहद महत्वपूर्ण हैं. अगर इन राज्यों में कांग्रेस ने अपने प्रदर्शन में अभूतपूर्व सुधार किया, तभी विपक्षी गठबंधन अपने मकसद में कामयाब हो सकता है. अगर इन राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन 2014 और 2019 की तरह ही रहता है, तो फिर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ से बीजेपी को बड़ा नुक़सान होने की संभावना बेहद क्षीण हो जाती है.
कांग्रेस के प्रदर्शन में अभूतपूर्व सुधार की ज़रूरत
ऐसे भी कांग्रेस की स्थिति उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों में बेहद ही दयनीय है. इस नज़रिये से इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के प्रदर्शन में अभूतपूर्व सुधार की गुंजाइश नहीं के बराबर है. बीजेपी लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता हासिल करने में सफल रहेगी या नहीं, यह बहुत हद शत-प्रतिशत सीटों पर जीत के लक्ष्य से जुड़े राज्यों में पार्टी के प्रदर्शन पर निर्भर करेगा. ऐसे राज्यों में सिर्फ़ और सिर्फ़ कांग्रेस ही बीजेपी को नुक़सान पहुँचाने का दमख़म रखती है या कहें विपक्षी गठबंधन में से एकमात्र विकल्प है.
विपक्षी गठबंधन की धार पहले ही हो चुकी है कम
विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ बनने के बावजूद बीजेपी के पक्ष में एक पहलू है, जो विपक्ष के इस गठबंधन की धार को कम कर देता है. विपक्षी गठबंधन से मायावती, नवीन पटनायक, के. चंद्रशेखर राव और जगन मोहन रेड्डी की दूरी ने बीजेपी के लिए सत्ता छीन जाने के डर या बड़े नुक़सान की आशंका को बेहद कम कर दिया है. विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को ओडिशा में नवीन पटनायक, उत्तर प्रदेश में मायावती, आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी और तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव का साथ मिल जाता, तो फिर 2024 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी की राह बेहद ही कटीली हो जाती.
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