आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई सवालों के घेरे में है. इंडिया गठबंधन के नेताओं का आरोप है कि विपक्ष के बड़े नेताओं को लोकसभा चुनाव से पहले जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है, ताकि चुनाव में इसका फायदा लिया जा सके.
इंडिया गठबंधन के कम से कम 8 पार्टियों के बड़ नेता अभी ईडी के रडार पर हैं. 5 राजनीतिक पार्टियों के तो नंबर-2 के नेता शामिल हैं, जिनमें तृणमूल के अभिषेक बनर्जी, जेएमएम के हेमंत सोरेन, शिवसेना (यूबीटी) के संजय राउत, एनसीपी (शरद) के जयंत पाटील के नाम प्रमुख हैं.
कांग्रेस के सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी भी ईडी जांच के घेरे में हैं. तीनों नेताओं से आखिरी बार साल 2022 के जून-जुलाई में पूछताछ हुई थी.
लोकसभा चुनाव से पहले जिस तरह ईडी की कार्रवाई में तेजी आई है, उससे विपक्षी पार्टियों की टेंशन भी बढ़ा दी है. क्योंकि, विपक्ष के जो नेता ईडी के रडार पर हैं, उनमें से अधिकांश पर अपनी पार्टी के चुनावी मैनेजमेंट की भी जिम्मेदारी है.
मसलन, अभिषेक बनर्जी से शिक्ष भर्ती घोटाले में ईडी पूछताछ करना चाहती है. अभिषेक पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं, जो अध्यक्ष के बाद सबसे पावरफुल पद है. इसी तरह हेमंत सोरेन से भी ईडी पूछताछ करना चाहती है. सोरेन जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष के साथ-साथ झारखंड के मुख्यमंत्री भी हैं.
शिवसेना (यूबीटी) में उद्धव ठाकरे के बाद संजय राउत काफी मजबूत हैं, लेकिन वे अभी जमानत पर चल रहे हैं.
चुनाव से पहले मेगिरफ्तारी पर राजनीति, 3 प्वॉइंट्स
1. आम आदमी पार्टी के दिल्ली अध्यक्ष गोपाल राय का कहना है कि बीजेपी चाहती है कि विपक्ष के बड़े नेताओं को चुनाव से पहले जेल में बंद करके चुनाव को जीत लिया जाए. राय का कहना है कि विपक्ष के नेताओं को जेल में बंद करने से भी बीजेपी अपना जमानत नहीं बचा पाएगी.
2. संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दिवंगत जस्टिस कृष्णा अय्यर के एक कोट को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है. इसमें कहा गया है कि पहले जमानत नहीं, जेल कानून होता है, लेकिन अब इस दौर में जमानत नहीं जेल कानून है.
3. विपक्ष के कई नेताओं का कहना है कि चुनाव से पहले इसलिए ईडी गिरफ्तार कर रही है, ताकि चुनाव तक जमानत नहीं मिल पाए. जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि बीजेपी विपक्षी पार्टियों के नेताओं को अगले लोकसभा चुनाव से पहले गिरफ्तार करना चाहती है. भाजपा चुनाव में सबके लिए एकसमान स्थिति नहीं रहने देना चाहती.
ईडी के रडार में कौन-कौन, एक लिस्ट
1. राघव चड्ढा- शराब घोटाले में ईडी ने मई 2023 में एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की थी. इसमें चड्ढा के नाम का भी जिक्र किया गया था. चार्शीट के मुताबिक पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के पीए सी.अरविंद ने अपने बयान में कहा कि डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के आवास पर एक बैठक हुई थी. इसमें राघव चड्ढा, पंजाब के एक्साइज कमिश्नर, आबकारी अधिकारी और विजय नायर मौजूद थे. चार्जशीट में राघव चड्ढा के नाम का जिक्र है, लेकिन आरोपी के तौर पर उनका नाम नहीं है.
चड्ढा ने नाम का जिक्र होने के तुरंत बाद आरोप को गलत बताया था. उन्होंने कहा था कि दुर्भावना से ग्रस्त होकर यह काम किया गया है. उन्होंने मामले को राजनीतिक बताया था. चड्ढा आम आदमी पार्टी के शीर्ष इकाई पीएसी के सदस्य हैं.
2. अभिषेक बनर्जी- तृणमूल के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी भी ईडी के रडार पर हैं. 9 अक्टूबर को ईडी ने अभिषेक को पूछताछ के लिए बुलाया है. अभिषेक की पत्नी रुजिरा को भी ईडी ने 11 अक्टूबर के लिए सम्मन जारी किया है.
दोनों से शिक्षक भर्ती घोटाले केस में पूछताछ होनी है. अभिषेक का कहना है कि सितंबर में इस मामले में पूछताछ हो चुकी है, फिर भी ईडी राजनीतिक मकसद से नोटिस भेज रही है. बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले के एक मामले में तृणमूल के दिग्गज नेता पार्थ चटर्जी अभी तक जेल में बंद हैं.
3. संजय राउत- शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत वर्तमान में जमानत पर चल रहे हैं. राउत को ईडी ने अगस्त 2022 में गिरफ्तार किया था. उन पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है. ईडी का आरोप है कि मुंबई के गोरेगांव उपनगर में एक पुनर्विकास परियोजना पात्रा चॉल घोटाले में राउत भी आरोपी हैं.
हालांकि, विशेष अदालत ने राउत को जमानत देते हुए ईडी पर सख्त टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था कि यह विच एंड हंट का मामला है. ईडी ने गिरफ्तारी की शक्ति का दुरुपयोग किया.
4. हेमंत सोरेन- झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी प्रवर्तन निदेशालय के घेरे में हैं. ईडी सोरेन से पूछताछ के लिए अब तक 5 समन जारी कर चुकी है. समन के खिलाफ सोरेन ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है. सोरेन का कहना है कि पूछताछ के बहाने ईडी उन्हें गिरफ्तार कर सकती है.
ईडी ने हेमंत को समन करने के लिए इसी साल 13 और 26 अप्रैल को छापेमारी के बाद दर्ज एफआईआर को आधार बनाया है. ईडी हेमंत से जालसाजी कर जमीन खरीदी से जुड़े आरोपों पर पूछताछ करना चाहती है.
5. जंयत पाटील- शरद पवार के करीबी और एनसीपी (शरद) के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटील भी ईडी के रडार में हैं. पाटिल परिवार से जुड़े दो मामलों की ईडी जांच कर रही है. पहला मामला सांगली में राजारामबापू सहकारी बैंक लिमिटेड ( RSBL) में 1 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के ट्रांसजेक्शन से जुड़ा है.
दूसरा मामला, इंफ्रास्ट्रक्टर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड (IL&FS) से जुड़े फ्रॉड का है. मई में ईडी ने जयंत पाटील को समन भी भेजा था, जबकि अगस्त में उनके 2 भाइयों से पूछताछ भी हुई थी.
6. तेजस्वी यादव- आरजेडी नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी ईडी के घेरे में हैं. लैंड फॉर जॉब स्कैम मामले में तेजस्वी से अप्रैल 2023 में पूछताछ हो चुकी है. सीबीआई की ओर से दर्ज मामले में हाल ही में लालू परिवार के सदस्यों को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट से जमानत मिली है.
2020 चुनाव में लालू यादव की अनुपस्थिति में तेजस्वी ने ही चुनाव की कमान संभाली थी, जिसमें आरजेडी को सबसे अधिक 75 सीटों पर जीत मिली थी.
ईडी की गिरफ्तारी पर सवाल क्यों?
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी- शराब घोटाले के आोरप में जेल में बंद आप नेता मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भाटी की बेंच ने कहा कि किसी सरकारी गवाह के बयान को सही नहीं माना जा सकता है.
कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई सबूत आपके पास नहीं है, जिसमें मनीष सिसोदिया ने पैसे लिए हो. कोर्ट ने कहा कि अगर आपके पास बयान के अलावा कोई दस्तावेज नहीं होगा, तो कोर्ट में यह केस 2 मिनट में गिर जाएगा. सिसोदिया की जमानत याचिका पर अब 12 अक्टूबर को सुनवाई होगी.
इससे पहले एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ईडी पर सख्त टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था कि गिरफ्तारी के पावर का उपयोग बदले की भावना के लिए न करें. कोर्ट ने कहा था कि ईडी किसी को गिरफ्तार करने से पहले सबूत अच्छे से इकट्ठा कर लें.
विपक्षी नेताओं पर एक्शन- कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का कहना है कि बीजेपी शासित राज्यों में भी कई घोटाले हुए हैं, लेकिन ईडी वहां पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. मध्य प्रदेश की एक रैली में प्रियंका ने कहा- यहां 18 साल में 250 से ज्यादा घोटाले हुए हैं, लेकिन यहां क्यों नहीं पड़ती ईडी की रेड? यहां तो भगवान के साथ भी भ्रष्टाचार हो रहा है.
वहीं सांसद संजय राउत का कहना है कि ईडी को अगर सबूत चाहिए, तो हम वो भी देंगे, लेकिन ईडी बीजेपी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने को तैयार नहीं है. इसी साल अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में 16 पार्टियों के हवाले से एक याचिका दाखिल की थी.
याचिका में कहा गया था कि ईडी और सीबीआई के 95 प्रतिशत केस विपक्षी नेताओं के खिलाफ है. सिंघवी का कहना था कि ईडी पीएएमएलए के तहत लोगों को गिरफ्तार करती है, जिससे आसानी से जमानत न मिल पाए.
पीएमएलए का हथियार- 2002 में मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) को पारित किया गया था. मनी लॉन्ड्रिंग का मतलब है गैर-कानूनी तरीकों से कमाए गए पैसों को लीगल तरीके से कमाए गए धन के रूप में बदलना. 1 जुलाई 2005 में इस अधिनियम को लागू कर दिया गया.
इसके अंतर्गत अपराधों की जांच की जिम्मेदारी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की है. इस एक्ट के तहत ईडी को किसी भी आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का पूरा अधिकार है. जानकारों का कहना है कि ईडी की गिरफ्तारी में आरोपियों को खुद को बेकसूर साबित करने के लिए तथ्य कोर्ट को देने पड़ते हैं, जबकि अन्य एजेंसियां आरोपी के खिलाफ सबूत पेश करती है.
यही वजह है कि ईडी के हत्थे चढ़े आरोपियों को जमानत लेने में काफी वक्त लग जाता है.
ED की कार्रवाई कितनी सियासी?
प्रवर्तन निदेशालय के पूर्व संयुक्त सचिव सत्येंद्र सिंह कहते हैं- इसे 2 सवालों से समझिए. पहला, क्या यह कार्रवाई गलत हो रही है? अगर हां, तो सभी नेताओं के पास कोर्ट जाने का ऑप्शन खुला हुआ है और वहां अपना पक्ष रख सकते हैं.
अगर कोर्ट से राहत नहीं मिलती है, तो प्राथमिक तौर पर जरूर कोई न कोई सबूत जांच एजेंसी के पास होगा?
दूसरा, बात अगर समय को लेकर है, तो चुनाव से पहले ईडी की कार्रवाई कोई नई बात नहीं है. 2014 से पहले भी सेंट्रल एजेंसी विपक्षी नेताओं पर कार्रवाई करती थी. आंकड़े भले उस वक्त का कम हो, लेकिन क्या वो चुनावी था?
हाल ही में आंध्र प्रदेश में प्रदेश की एक एजेंसी ने विपक्ष के सबसे बड़े नेता को गिरफ्तार कर लिया है, क्या उसे भी सियासी कहा जाएगा?
सिंह के मुताबिक कई बार अधिकारियों पर यह आरोप लगता है कि वे पक्षपात होकर कार्रवाई कर रहे हैं. यह आरोप भी नया नहीं है. सुप्रीम कोर्ट 2013 में सीबीआई को पिंजरे का तोता बता चुकी है.
सत्येंद्र सिंह आगे कहते हैं- स्थानीय स्तर पर पुलिस भी सत्ताधारी नेताओं पर जल्दी कार्रवाई नहीं कर पाती है. सेंट्रल एजेंसी पर भी यही आरोप लगता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं होता है कि कोई और गलत है, तो उस पर कार्रवाई न हो. चुनाव के दिन करीब हैं, ऐसे में राजनीति से जुड़े लोगों यानी नेताओं पर केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा कसना और उसका दायरा बढ़ना लाजमी है. और भारत के लिए इसमें कोई नई और अनोखी बात नहीं है, ये परंपरा का ही विस्तार है. फर्क सिर्फ ये है कि इस बार परंपरा को बढ़ाने वाले वो हैं जो कभी इसका खुलकर विरोध करते थे और कहते थे कि उनकी सरकार आएगी तो वो उसे रोकेंगे, लेकिन आंकड़े चुगली कर रहे हैं उस कार्रवाई की संख्या में भरपूर इजाफा हो चुका है और शायद यही भारत की राजनीति का सच भी है और ये सारी सच्चाई जनता के बीच है.
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Rajneesh Singh is a journalist at Asian News, specializing in entertainment, culture, international affairs, and financial technology. With a keen eye for the latest trends and developments, he delivers fresh, insightful perspectives to his audience. Rajneesh’s passion for storytelling and thorough reporting has established him as a trusted voice in the industry.