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delhi high court dismisses petitions of defence ministry over challenging grant of disability pension to armed forces personnel


Delhi High Court to Defence Ministry: दिल्ली हाई कोर्ट ने शनिवार (5 जुलाई, 2025) को रक्षा मंत्रालय की 200 से अधिक उन याचिकाओं को खारिज कर दिया है जिसमें सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें कई रक्षाकर्मियों को उनसे संबंधित दिव्यांगताओं के लिए दिव्यांगता पेंशन का हकदार माना गया था.

हाई कोर्ट ने कहा कि रक्षाकर्मियों को केवल इस आधार पर दिव्यांगता पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता कि दिव्यांगता की शुरुआत तब हुई, जब वे शांतिपूर्ण क्षेत्र में तैनात थे या इसे जीवनशैली संबंधी बीमारी बताना भी कोई आधार नहीं है.

अदालत ने कहा, “सैन्य सेवा कई कारकों के संयोजन के कारण स्वाभाविक रूप से तनावपूर्ण होती है.” न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की पीठ ने कहा कि दिव्यांगता पेंशन देना उदारता का कार्य नहीं है, बल्कि रक्षाकर्मियों की ओर से किए गए त्याग की उचित और न्यायसंगत स्वीकृति है, जो उनकी सैन्य सेवा के दौरान दिव्यांगता/विकार के रूप में प्रकट होती है.

पीठ ने एक जुलाई को पारित अपने 85 पन्नों के साझा फैसले में कहा, ‘‘भारतीय सशस्त्र बलों के कर्मियों को दिव्यांगता पेंशन देने का उद्देश्य उन लोगों को आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान करना है, जो सेवा की शर्तों के कारण अपनी सेवा के दौरान दिव्यांगता या बीमारी का सामना करते हैं.’’ इसमें कहा गया है कि यह एक ऐसा कदम है जो उन सैनिकों के प्रति देश की जिम्मेदारी को कायम रखता है, जिन्होंने साहस और समर्पण के साथ राष्ट्र की सेवा की है.

केंद्र सरकार ने दिया यह तर्क

केंद्र सरकार ने रक्षा मंत्रालय के माध्यम से न्यायाधिकरण के आदेशों को इस आधार पर चुनौती दी कि रिलीज मेडिकल बोर्ड (RMB) ने स्पष्ट रूप से कहा था कि उच्च रक्तचाप और मधुमेह मेलिटस टाइप-दो से पीड़ित रक्षाकर्मियों की चिकित्सा स्थिति न तो सैन्य सेवा के कारण थी और न ही इसके कारण बढ़ी थी. मंत्रालय ने तर्क दिया कि ये कर्मी दिव्यांग पेंशन के हकदार नहीं हैं.

दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले में क्या कहा?

हाई कोर्ट ने कहा कि RMB के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने निष्कर्षों के लिए ठोस और तर्कसंगत औचित्य प्रस्तुत करे कि कर्मियों की और से झेली गई बीमारी या दिव्यांगता को ऐसी सेवा शर्तों के कारण या उनके कारण बढ़ी हुई नहीं कहा जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि रक्षा कर्मियों को दिव्यांगता पेंशन केवल इस आधार पर देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि दिव्यांगता की शुरुआत तब हुई जब वे शांतिपूर्ण क्षेत्र में तैनात थे.

शांतिपूर्ण क्षेत्र में भी सैन्य सेवा होती है तनावपूर्ण- दिल्ली हाई कोर्ट

अदालत ने कहा कि शांतिपूर्ण क्षेत्र में भी सैन्य सेवा स्वाभाविक रूप से तनावपूर्ण होती है, क्योंकि इसमें कठोर अनुशासन, लंबे समय तक काम करने के घंटे, सीमित व्यक्तिगत स्वतंत्रता और तैनाती के लिए लगातार तत्परता जैसे कई कारक शामिल होते हैं.

अदालत ने कहा, ‘‘परिवार से दूर रहने, अलग-थलग या चुनौतीपूर्ण वातावरण में रहने और अचानक तबादलों या ड्यूटी की अनिश्चितता से निपटने का मनोवैज्ञानिक बोझ इस तनाव को और बढ़ा देता है. इसके अलावा, लगातार युद्ध संबंधी प्रशिक्षण की वजह से मानसिक थकान और बढ़ जाती है.’’

RMB को तर्कसंगत निष्कर्षों को पेश करना चाहिए- हाई कोर्ट

अदालत ने कहा कि आरएमबी को अस्पष्ट और रूढ़िवादी दृष्टिकोण का सहारा नहीं लेना चाहिए, बल्कि कर्मियों के सेवा और चिकित्सा रिकॉर्ड का व्यापक, तार्किक और तर्कसंगत विश्लेषण करना चाहिए. अदालत ने कहा कि आरएमबी को उस पर सौंपे गए दायित्व का निर्वहन करते हुए तर्कसंगत निष्कर्षों को पेश करना चाहिए.

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