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Dastan-E-Azadi Independence Day IIT Kharagpur Hijli Prison Freedom Fighter British Rule


Independence Day: करीब 200 सालों तक अंग्रेजों का गुलाम रहने वाले भारत की आजादी की दास्तान काफी संघर्षपूर्ण और साहसिक घटनाओं से परिपूर्ण है. इसकी इबारतें इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं जो कोई भी उन्हें पलटता है उसका रोम-रोम रोमांचित हो जाता है.

सैकड़ों शहादतों के बाद मिली इस आजादी के जश्न में अब हर आम और खास शामिल होता है. आजादी की अनगिनत कहानियों में से एक है पहले इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT)  खड़गपुर की कहानी. आइये जानते हैं आजादी की दास्तान में इसकी क्या भूमिका रही.

हिजली कारावास की कहानी

देश की पहली आईआईटी की स्थापना भारत सरकार ने 1951 में खड़गपुर में की थी. भारतीय छात्रों के स्वर्णिम भविष्य का निर्माण करने वाली इमारत कभी ऐतिहासिक हिजली कारावास शिविर के नाम से जानी जाती थी. यहां आजादी के दीवाने स्वतंत्रता सेनानियों को ब्रिटिश शासन काल में बंदी बनाकर रखा जाता था. इतना ही नहीं यहां पर फांसी भी दी जाती थी. इसी भवन में दूसरे विश्व युद्ध के समय अमेरिका की 20वीं एयर फोर्स का मुख्यालय भी बनाया गया था. हिजली का क्षेत्र बहुत शांत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर था. यह स्थान कोलकाता से करीब 120 किमी. की दूरी पर है.

2100 एकड़ में फैला है IIT खड़गपुर का कैम्पस

अंग्रेजों के लिए यह जगह बंदियों के लिहाज बहुत ही मुफीद थी. इसलिए वह यहां अधिक से अधिक राजनीतिक बंदियों को रखते थे. यह क्षेत्र आम आबादी से भी बिल्कुल अलग था. इसलिए यहां अंग्रेजों की गतिविधियां भी बड़े शांत ढंग से चलती रहती थी. आईआईटी खड़गपुर अपने इल्लुमिनेशन, रंगोली, क्षितिज और स्प्रिंगफेस्ट जैसे आकर्षक अपने वार्षिकोत्सव की वजह से भी विख्यात है. इस आईआईटी का कैम्पस 2100 एकड़ में फैला हुआ है.     

1951 में अस्तित्व में आया IIT

ब्रिटिश हूकूमत की गुलामी से 1947 में आजादी मिलने के बाद भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना की गई. शुरुआत में इसे कोलकाता के पूर्वी एस्प्लेनेड में स्थापित किया गया था. सर्वप्रथम इसे Japanese Increased Technical Institute के नाम से जाना जाता था. जिसकी कोलकाता से दक्षिण में दूरी करीब सवा 100 किमी. थी. 1951 में यहां आईआईटी का पहला अधिकारिक शिक्षा सत्र प्रारंभ हुआ.

पहली बार 224 छात्रों ने प्रवेश लिया था. इस समय यहां कुल 10 विभाग थे और 42 शिक्षक थे. इस इंस्टीट्यूट की सारी क्लास, लैब और ऑफिस ऐतिहासिक हिजली कारावास शिविर की इमारत में थे. वैसे अब यह बिल्डिंग शहीद भवन के नाम से जानी जाती है.

मौलाना अबुल कलाम आजाद ने किया उद्घाटन

इस ऐतिहासिक बिल्डिंग में आईआईटी का ऑफीशियल शुभारंभ 18 अगस्त 1951 में मौलाना अबुल कलाम आजाद ने किया था. तभी से इसका नाम भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान पड़ गया था. बाद में इसके लिए बकायदा 15 सितंबर 1956 में भारतीय संसद में भारतीय प्राद्यौगिकी संस्थान (खड़गपुर) अधिनियम पारित कर दिया गया.

इसके उपरांत इसे “राष्ट्रीय महत्व के संस्थान” का दर्जा हासिल हुआ. भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1956 में पहले दीक्षांत भाषण में बोला था कि “ऐतिहासिक हिजली बंदी ग्रह भारत के शानदार स्मारकों में से एक है. अब वह नवीन भारत के भविष्य के रूप में तब्दील हो रहा है. यह दृश्य हमें भारत में हो रहे परिवर्तनों का आभास कराता है.”

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