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Dastan-E-Azadi Independence Day 15 August Mohammed Ali Jinnah Jawaharlal Nehru


Dastan-E-Azadi Independence Day: भारत की स्वाधीनता की लड़ाई का अंतिम क्षण भी खूनी संघर्ष से भरा रहा. एक ओर जब भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू आजाद भारत में पहले भाषण और तिरंगा फहराने की की तैयारी कर रहे थे. वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के लाहौर से आ रही खबरों से उनका मन और आंखें दोनों भर आईं थीं. उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने उन्हें मन मजबूत करके आजादी का पहला भाषण देने के लिए ढांढस बंधा रहीं थीं. वहीं नेहरू का कहना था इन परिस्थियों में मैं कैसे भाषण दे पाउंगा.

खैर बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को तैयार किया और 15 अगस्त 1947 की रात 11.55 उन्होंने जो भाषण दिया, वह इतिहास के पन्नों में ‘ट्रस्ट विद डेस्टनी’ के नाम से दर्ज हुआ. दूसरी ओर पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तानियों को अपना पहला संबोधन पहले गवर्नर जनरल के रूप में दिया था. दोनों के संबोधन में काफी भिन्नता दिखी. भारत-पाकिस्तान में तमाम लोगों के बंटवारे के खिलाफ होने पर जिन्ना कहा था कि भविष्य में लोग मेरे बंटवारे की बात को समझेंगे.

पूरे देश ने सुना पर गांधी जी ने नहीः पंडित जवाहरलाल नेहरू के इस ऐतिहासिक संबोधन को पूरे देश ने बड़े ध्यान से सुना और सराहा, लेकिन आजादी की लड़ाई में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी ने यह भाषण नहीं सुना. वह उस दिन जल्दी 9 बजे सोने चले गए थे. पंडित नेहरू ने अपना यह यादगार भाषण तत्कालीन वायसराय लॉज में दिया था. इसे अब राष्ट्रपति भवन के रूप में जाना जाता है. कांग्रेस पार्टी ने देश के पहले प्रधानमंत्री का यह भाषण अपने X (पहले ट्वीटर) प्लेटफॉर्म पर शेयर किया है.

भाषण में दिखी थी नए भारत की झलकः पंडित नेहरू ने कहा कि हमने अपने से एक वादा किया था, जो आज पूरा हो रहा है. हमें यह पूरा होने की खुशी है तो यही खुशी अब हमें भविष्य के प्रति और जिम्मेदार बनाएगी. अभी हमारा काम खत्म नहीं हुआ है. हमने अतीत में अपने भाग्य को बदलने की कोशिश की थी. हम उसमें अब सफल होते दिख रहे हैं.

सेवा का संकल्प लियाः उन्होंने कहा कि अब जब सारी दुनिया रात के 12 बजे सो रही है हम आजादी के साथ एक नई शुरुआत करने जा रहे हैं. हमें खुश होकर बैठना नहीं है. हमें और मेहनत करनी है. हम भारत देश और उसके निवासियों के प्रति सेवा का संकल्प ले रहे हैं. अब एक नए युग का आगाज हो रहा है. भारत अब खुद को खोजने को निकला है. हमें निरंतर काम करते रहना है. एक प्राचीन युग का अंत हो चुका है और हम नए इतिहास की ओर अग्रसर हैं. हालांकि इस इतिहास को कोई और लिखेगा.  

किसी की आंख में न रहे आंसूः पंडित नेहरू ने कहा था कि हम जो कह रहे हैं उसे पूरा करना भी हमारा कर्तव्य है. सेवा का मतलब करोड़ों गरीब लोग. जब तक एक भी व्यक्ति की आंख में आंसू हैं हमारी प्रतिज्ञा पूरी नहीं होगी. ये सपने भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के हैं. आज एक नए तारे का जन्म हुआ है. मैं उम्मीद करता हूं यह तारा कभी डूबे नहीं. हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की इच्छा यही है कि जब तक एक भी व्यक्ति दुखी है तब तक हमारा काम खत्म नहीं होगा.

जिन्ना ने कहा था एक भारत की कल्पना सही नहीः मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने जबसे मुसलमानों के लिए अलग मुल्क पाकिस्तान की मांग शुरू की थी. पंडित जवाहरलाल नेहरू उनके खिलाफ हो गए थे. वह जाति के आधार पर मुल्कों का बंटवारा नहीं चाहते थे. उनका मानना था कि हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई एकसाथ रहें, यही भारत है. जिन्ना ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा था कि हम कभी एक नहीं हो सकते. हमारा खानपान, लिबास पहनने का तरीका, रहन-सहन सब भिन्न हैं. जिन्ना 15 अगस्त 1947 को अपने पहले भाषण में स्पष्ट कहा था कि एक भारत नहीं हो सकता. आज लोग जरूर मेरे निर्णय से सहमत नहीं हैं, लेकिन भविष्य में वह मानेंगे कि मैं सही था.

जिन्ना की नजर में बंटवारा गलत नहीः मोहम्मद अली जिन्ना ने अपना पहला संबोधन पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल के रूप में दिया था. उन्होंने सबसे पहले उन लोगों के प्रति एहसान जताया, जिन्होंने पाकिस्तान की आजादी में अपनी कुर्बानी दी. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान देश हमारी बड़ी जिम्मेदारी है. पाकिस्तान ने अपने पहले दो आजादी के जश्न 15 अगस्त को मनाए थे, लेकिन जिन्ना की मौत के बाद यह जश्न 14 अगस्त को मनाया जाने लगा था.

जिन्ना ने कहा था कि भारत के मुस्लिमों ने यह बता दिया कि वह एक देश हैं और उनकी मांग बिल्कुल जायज है. उन्होंने पाकिस्तान की तरफ से अपने पड़ोसी देशों और दुनियाभर को शांति का संदेश दिया. बताया कि पाकिस्तान की कोई आक्रामक महत्वाकांक्षा नहीं है. पाकिस्तान दुनियां में सुकून और खुशहाली के लिए काम करेगा और यह देश संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रति बाध्य है.

देश के अल्पसंख्यकों को दिया संदेशः जिन्ना ने संबोधन के दौरान एक संदेश ये भी दिया कि हमें अपने आचरण और व्यवहार से अल्पसंख्यकों को जता देना चाहिए, जब तक वह देश के प्रति वफादार रहेंगे तब तक उन्हें चिंता की कोई आवश्यकता नहीं. उन्होंने आजादी के साथ रहने वाले कबायलियों को भी संदेश दिया कि उनका मुल्क पाकिस्तान उनकी सुरक्षा करेगा. जिस सम्मान के साथ हम जीना चाहते हैं, उसी तरह हमारी यह इच्छा है कि दूसरे लोग भी उसी तरह जिंदगी बसर करें. उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि कहीं न कहीं कोई अल्पसंख्यक और कोई बहुसंख्यक तो रहेगा ही.

(*15*)ये भी पढ़ेंः Dastan-E-Azadi: क्यों अंग्रेजों से टुकड़ों में आजादी चाहते थे अंबेडकर

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