CJI DY Chandrachud: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (10 जुलाई, 2024) को जेलों में जातिवाद को लेकर दायर जनहित याचिका पर अफसोस जताया और कहा कि ये तो बहुत परेशानी की बात है. याचिका में आरोप लगाया गया कि उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल समेत 13 राज्यों की जेलों के मैनुअल में बैरक से लेकर कामकाज दिए जाने तक जाति के आधार पर प्रावधान हैं. पत्रकार सुकन्या शांता की तरफ से दायर पिटीशन में ये आरोप लगाए गए हैं.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिक्षा की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. बेंच ने याचिका में उठाए गए सवालों में मजबूती पाई. कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से पेश हुए वकील से सीजेआई चंद्रचूड़ ने पूछा कि मेहतर से क्या मतलब है. क्या ये कहना चाहते हैं कि कैदी इसके आदी हो चुके हैं.
तीन तरह से जेलों में हो रहा जातिवाद
याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट एस. मुरलीधरन और एडवोकेट दिशा वाडेकर ने कोर्ट में कहा कि जेलों में तीन तरह से भेदभाव किया जा रहा है. पहला कमाकाज के जरिए, दूसरा जाति के आधार पर बैरकों का बंटवारा और तीसरा जेल के मैनुअल में गैर-अधिसूचित जनजातियों के लिए भेदभावपूर्व प्रावधानों के जरिए. गैर-अधिसूचित जनजातियों के कैदियों को आपराधिक या आदतन अपराधियों के तौर पर संदर्भित किया गया है. वकीलों ने कहा कि उन्होंने कुछ पुराने और वर्तमान के विचाराधीन कैदियों के प्रशंसापत्र भी शामिल किए हैं. कैदियों ने उनके साथ किए गए जातिवाद भेदभाव का विवरण दिया है.
किन-किन राज्यों की जेलों पर जातिवाद का आरोप
याचिकाकर्ता ने कुछ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की जेलों के मैनुअल में जातिवाद आधारित प्रावधानों का दावा किया है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश प्रीजन मैनुअल, 1941 में कैदियों की जाति के आधार पर साफसफाई के काम का नि्धारण किया गया है. याचिकाकर्ता ने कहा कि साल 2022 में इसे लेकर कुछ बदलाव किए गए फिर भी आदतन अपराधियों से अलगाव के प्रावधान को बरकरार रखा गया. याचिका में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, तमिलनाडु, दिल्ली, पंजाब, बिहार और महाराष्ट्र की जेलों के मैनुअल में जातिवाद प्रावधानों का दावा किया गया है. उनकी याचिका पर जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और 13 राज्यों को नोटिस भेजा था.
एडवोकेट मुरलीधर ने कोर्ट को बताया कि केंद्र ने इन प्रावधानों को लेकर राज्य सरकारों को एडवाइजरी जारी की है. उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ राज्यों ने माना कि उनकी जेलों में कैदियों के साथ जाति आधारित रवैया अपनाया गया. हालांकि, उन्होंने इसे सही ठहराने की कोशिश की. केंद्र की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर एश्वर्य भाटी ने कोर्ट में कहा कि जेलों से जुड़े मुद्दे राज्य सरकारों के अधीन हैं, केंद्र सिर्फ राज्यों को एडवाइजरी ही जारी कर सकता है, जब तक कि कोर्ट उसे निगरानी करने का निर्देश न दे तब तक वह इसमें कुछ नहीं कर सकता.
उत्तर प्रदेश सरकार ने जातिवाद के आरोपों पर जवाब में क्या है?
सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश के वकील ने कोर्ट को राज्य सरकार का जवाब दाखिल कर बताया कि वहां पर कोई जातिवाद नहीं किया जा रहा है. इस पर एडवोकेट मुरलीधर ने दलील दी, ‘योर लॉर्डशिप, रूल 289 देखें. यह बहुत परेशान करने वाली बात है कि साधारण कारावास की सजा वाले कैदी को ऐसी ड्यूटी करने के लिए नहीं कहा जाएगा, जो उसको डीग्रेड करे, जब तक कि वह ऐसा काम करने का आदी न हो. यह किस तरह का जवाब है? इसमें नियम 289 का जिक्र तक नहीं है.’
जस्टिस पारदीवाला ने पश्चिम बंगाल के प्रीजन मैनुअल के रूल नंबर 793 पर नाराजगी जाहिर की. उन्होंने बंगाल के वकील से कहा, ‘यह क्या नियम है? जरा पढ़ें. यह बहुत डिस्टर्बिंग है.’ मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दाखिल जवाब पढ़ते हुए कहा कि मेहतर से क्या मतलब है. आप कहना चाहते हैं कि वो इसके आदी हो चुके हैं. सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे कहा, ‘मैं इस हिस्से को नहीं पढूंगा.’ उन्होंने कहा कि हम इस मामले में जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण की भूमिका तय करेंगे और वे लगातार जेलों का दौरा करेंगे.

Rajneesh Singh is a journalist at Asian News, specializing in entertainment, culture, international affairs, and financial technology. With a keen eye for the latest trends and developments, he delivers fresh, insightful perspectives to his audience. Rajneesh’s passion for storytelling and thorough reporting has established him as a trusted voice in the industry.