spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
HomeIndiaAssembly Election 2023 Silver Of Tainted Political Parties ECI Advertising Law Able...

Assembly Election 2023 Silver Of Tainted Political Parties ECI Advertising Law Able To Stop Criminal Leader ABPP


राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा करते हुए चुनाव आयोग ने दागी उम्मीदवारों को लेकर भी राजनीतिक पार्टियों को हिदायत दी. आयोग ने कहा कि दागी उम्मीदवारों को क्यों टिकट दिया, इसे सभी दल को बताना होगा, नहीं बताने पर कानून सम्मत कार्रवाई करने की बात भी आयोग ने कही.

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बताया कि किसी उम्मीदवार का अगर आपराधिक बैकग्राउंड है, तो उसे तीन बार लोगों को बताना होगा. इसके अलावा पार्टी के आधिकारिक वेबसाइट और टीवी मीडिया में भी दागी उम्मीदवारों के बारे में राजनीतिक दलों को जानकारी शेयर करनी पड़ेगी.

राजीव कुमार ने पत्रकारों से कहा कि यह नियम तो पहले से ही है, लेकिन अब हम इसे सख्ती से लागू कराने की कोशिश कर रहे हैं. जिन 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, वहां विधानसभा की करीब 677 सीटें हैं. 

इनमें मध्य प्रदेश की 230 राजस्थान की 200, तेलंगाना की 117, छत्तीसगढ़ की 90 और मिजोरम की 40 सीटें शामिल हैं.

विधानसभा के कुल सीटों का यह करीब 15 प्रतिशत है. देश के विधानसभाओं में अभी करीब 4100 सीटें हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि चुनाव आयोग का यह नियम क्या इस बार दागी नेताओं को माननीय बनने से रोक पाएगा या बस यह नियम भी बस बयान पर रह जाएगा?

दागी उम्मीदवारों पर बहस क्यों?
भारत में 1990 के बाद से ही दागी उम्मीदवारों पर अंतहीन बहस जारी है. समय-समय पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर गाइडलाइन भी बनाए, लेकिन सदन में जाने वाले दागी नेताओं की संख्या पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. 

साल 2000 में दागी नेताओं को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था. एडीआर की याचिका पर हाईकोर्ट ने कहा था कि सभी दलों को अपने प्रत्याशियों के आपराधिक मामलों की जानकारी देना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला बरकरार रखा.

इसके बाद चुनाव आयोग ने नामांकन पत्र में एक अलग से शपथ पत्र का प्रावधान किया. 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने 2 साल से अधिक की सजा पाने वाले माननीय की सदस्यता रद्द करने का फैसला सुनाया. कोर्ट ने साथ ही कहा कि 2 साल या उससे अधिक की सजा पाने वाले नेता 6 साल तक चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे.

2020 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को अब यह बताना होगा कि उसने दागी नेताओं को टिकट क्यों दिया? कोर्ट ने राजनीतिक दलों से कहा कि दागी नेताओं की पूरी जानकारी विज्ञापन के जरिए लोगों को दिया जाना चाहिए.

हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान एमिक्स क्यूरी विजय हांसारिया ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें उन्होंने कहा कि 2 साल से अधिक की सजा पाने वाले नेताओं को चुनाव लड़ने से आजावीन रोक दिया जाए. 

अभी अगर कोई नेता 5 साल की सजा पाते हैं, तो उन्हें 11 सालों तक ही चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है.

चुनाव लड़ने को लेकर अभी नियम क्या है?
सुप्रीम कोर्ट के वकील ध्रुव गुप्ता के मुताबिक किसी भी उम्मीदवार के चुनाव लड़ने को लेकर जनप्रतिनिधित्य अधिनियम 1951 में विस्तार से बताया गया है. वर्तमान में किसी भी अंडरट्रायल आरोपी के चुनाव लड़ने पर रोक नहीं है. 

गुप्ता कहते हैं- सुप्रीम कोर्ट का जो सबसे ताजा आदेश है, उसमें सिर्फ उम्मीदवारों को अपने आपराधिक मामलों की जानकारी देकर चुनाव लड़ने देने की बात कही गई है. यानी कोई भी ऐसा उम्मीदवार जो 2 साल से कम की सजा पाया हो या जिसका मामला अंडरट्रायल हो, वो चुनाव लड़ सकता है.

राजनीतिक दलों को दागी कितना प्यारा?
बात पहले लोकसभा चुनाव की कर लेते हैं. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के मुताबिक 2004 में संसद में दागी सांसद लोकसभा 24% थे, जिसमें से गंभीर अपराध वाले सांसदों की संख्या 12% थी. 

2009 में इस संख्या में थोड़ी बढ़ोतरी हुई. 2009 में 30% सांसद दागी थे, जिसमें से 14% पर गंभीर आरोप था. 2019 में इस आंकड़े में करीब डेढ़ गुनी बढ़ोतरी हुई. 2019 के चुनाव में जीते 43% सांसदों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज है. 

विधानसभा चुनाव में भी दागी नेताओं पर राजनीतिक पार्टियां जमकर प्यार लुटाती है. मध्य प्रदेश में 2013 में 407 उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे, जो 2018 में बढ़कर 759 हो गया. 2013 के मुकाबले यह करीब दो गुना ज्यादा है.

2013 में कांग्रेस के 91, बीजेपी के 61 और बीएसपी के 54 दागी उम्मीदवार मैदान में थे. 2018 में इस संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई. 2018 में कांग्रेस ने 108, बीजेपी ने 65 और बीएसपी ने 37 आपराधिक छवि वाले नेताओं को टिकट दिया.

राजस्थान में भी दागी नेताओं की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई. 2018 में राजस्थान में 320 उम्मीदवार पर आपराधिक मुकदमे कायम थे. 2013 के 224 की संख्या से यह काफी ज्यादा था. राजस्थान में कांग्रेस ने 2018 में 43 दागी उम्मीदवार उतारे थे. कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी ने 33 दागियों को टिकट दिया था. 

राजस्थान में बीएसपी ने 178 उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से पार्टी के 31 प्रत्याशी दागी छवि के थे. 

हाल ही के कर्नाटक और गुजरात चुनाव में भी दागी उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने की खबर खूब सुर्खियों में रही. कर्नाटक के रण में आपराधिक छवि वाले 345 प्रत्याशी मैदान में थे. इनमें कांग्रेस के 123 और बीजेपी के 71 प्रत्याशी शामिल थे. 

गुजरात के चुनावी रण में भी दागी नेताओं का दबदबा रहा. गुजरात के 1621 में से 330 उम्मीदवार आपराधिक छवि के थे. सबसे ज्यादा क्रिमिनल केस वाले 61 नेताओं को आम आदमी पार्टी ने टिकट दिया था. 

2008 से लेकर 2012 तक हुए देशभर के विधानसभा चुनाव में गंभीर आपराधिक छवि वाले 9.3 प्रतिशत उम्मीदवार थे, जो 2018-22 में बढ़कर 14.5 प्रतिशत हो गए.

विधानसभाओं में आधे माननीय दागी
जुलाई 2023 में एफिडेविट के आधार पर एडीएआर और नेशनल इलेक्शन वॉच ने एक रिपोर्ट जारी की. इसके मुताबिक देश के विधानसभाओं में बैठे 44 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. एडीआर के मुताबिक देश के 1177 विधायकों पर गंभीर आपराधिक मुकदमा दर्ज है.

रिपोर्ट के मुताबिक केरल में सबसे ज्यादा 70 प्रतिशत माननीयों पर अपराधिक मुकदमा कायम है. बिहार में 67 प्रतिशत, दिल्ली में 63 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 62 प्रतिशत विधायकों ने अपने खिलाफ अपराधिक केस होने की बात कही. चुनावी राज्यों की बात करें तो तेलंगाना के विधायकों पर सबसे ज्यादा केस दर्ज हैं.

एडीआर के मुताबिक तेलंगाना के 39 प्रतिशत, मध्य प्रदेश के 21 प्रतिशत, राजस्थान के 14 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ के 13 प्रतिशत विधायकों पर क्रिमिनल केस दर्ज हैं. 40 सीटों वाली मिजोरम में सिर्फ 3 प्रतिशत विधायक दागी हैं.

विज्ञापन नियम दागियों को सदन जाने से रोक पाएगा?
चुनाव आयोग की घोषणा के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है क्या ‘विज्ञापन निकलवाकर चुनाव लड़ने’ के नियम से दागी सदन में नहीं जा पाएंगे यानी दागियों को सदन जाने से रोकने को लेकर जो कानून अभी है, क्या वो कारगर है?

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी कहते हैं- 2018 से ही यह कानून लागू है, लेकिन अभी तक तो दागियों की संख्या में कमी नहीं आई है. आगे रुकेगा यह भी कहना मुश्किल है. 

कुरैशी आगे कहते हैं- सवाल यह है कि दागियों को आप (चुनाव आयोग) रोकना चाहते हैं नहीं? अगर रोकना चाहते हैं, तो उसके चुनाव लड़ने पर पूरी तरह से रोक लगाएं, तब ही यह रूक सकता है. 

सजा मिलने से पहले चुनाव लड़ने पर रोक किसी नेता के साथ ज्यादती नहीं होगा? इस पर कुरैशी कहते हैं- देश में 4.3 लाख के आसपास अंडरट्रायल कैदी जेल में बंद हैं. यह उनके कई अधिकारों का उल्लंघन है, जिसमें मौलिक अधिकार भी शामिल हैं. 

उनके मुताबिक जब किसी अंडरट्रायल व्यक्ति को जेल में रखा जा सकता है, तो अंडरट्रायल नेता को चुनाव लड़ने से क्यों नहीं रोका जा सकता है? उन्हें प्रीविलेज क्यों मिले? अगर उन्हें प्रीविलेज दे रहे हैं, तो सभी अंडरट्रायल कैदियों को सजा मिलने तक बाहर रखिए.

ध्रुव गुप्ता के मुताबिक चुनाव लड़ने से रोकने के लिए चुनाव आयोग को नए सिरे से नियम बनाने होंगे. इसके अलावा जनप्रतिनिधित्व कानून में बदलाव का भी एक विकल्प है. यह संसद के जरिए ही होगा. 

चुनाव आयोग ने की थी 3 सिफारिश
दागी नेताओं को सदन जाने से रोकने के लिए चुनाव आयोग ने सालों पहले राजनीतिक दलों को 3 प्रस्ताव दिया था. हालांकि, राजनीतिक पार्टियां इसे मानने के लिए बाध्य नहीं थी. 

1. अगर किसी नेता पर एक साल से ज्यादा वक्त से मुकदमा दर्ज हो, तो उन्हें टिकट नहीं दिया जाए.

2. जिन नेताओं पर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हो, उन्हें टिकट देने से परहेज करें. 

3. जिन नेताओं की चार्जशीट निचली अदालत में पेश कर दी गई हो और कोर्ट ने उसे स्वीकार कर लिया है, उन्हें टिकट न दिया जाए. 

मामला नैतिकता से ज्यादा चुनावी परफॉर्मेंस का
जानकारों का कहना है कि दागियों को रोकने के लिए चुनाव आयोग के पास जो नियम अभी हैं, वो सिर्फ राजनीतिक दलों के नैतिकता से जुड़ा है यानी दागी के टिकट देने पर सिर्फ पार्टियों को उसका कारण बताना है, वो भी अखबार में.

वर्तमान में नैतिकता से ज्यादा चुनाव जीतना राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण है. दागी उम्मीदवारों के चुनाव जीतने के प्रतिशत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे में दागी उम्मीदवारों को राजनीतिक दल भी हाथों-हाथ लेती है.

दागियों की एंट्री की सबसे बड़ी वजह पैसा और नेटवर्किंग है. चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों और पार्टियों को जितने पैसे की जरूरत होती है, जो साधारण लोगों के बस में नहीं है.

चुनाव आयोग के नियम के मुताबिक एक विधानसभा के एक उम्मीदवार 70-90 लाख रुपए तक खर्च कर सकते हैं. आम तौर पर सामान्य उम्मीदवारों के लिए यह पैसा जुटाना काफी मुश्किल भरा काम होता है.

साथ ही इलाके में अपराध की वजह से अपराधियों की नेटवर्किंग काफी मजबूत रहती है. इसलिए भी राजनीतिक दल सामान्य उम्मीदवार की जगह पर दागी को ज्यादा तरजीह देते हैं.

RELATED ARTICLES

Most Popular