<p model="text-align: justify;">लालकिले से अपना लगातार दसवां भाषण देते हुए प्रधानमंत्री मोदी का अंदाज बदला हुआ सा था. वह लंबा बोले, अपने काम के बारे में बोले, मणिपुर के बारे में बोले और देशवासियों को परिवारजन भी बोले. उन्होंने दस साल के अपने काम गिनवाए और अगली बार फिर खुद के होने के लिए परोक्ष तौर पर आशीर्वाद भी मांगा. हालांकि, आलोचक कह रहे हैं कि इस बार वह थके हुए लग रहे थे, कुछ शब्दों के बोलने में भी लड़खड़ाए और वह जो जोश दिखता था, वह गायब था. फिलहाल, भाषण पर चर्चा तो होगी, लेकिन इतना तय है कि उनके भाषण पर विवाद नहीं हुआ है. </p>
<p model="text-align: justify;"><sturdy>बदले हुए थे पीएम के अंदाज</sturdy></p>
<p model="text-align: justify;">प्रधानमंत्री का भाषण काफी बदला था. वह थोड़ा और छोटा करते तो लोगों को अधिक सुविधा होती. उन्होंने बहुत कुछ बताया है अपने 10 साल लगभग के कार्यकाल के बारे में. आगे का रोडमैप भी बताया कि उनकी क्या योजना है, किस तरह वह देश को आगे ले जाना चाहते हैं? यह भाषण बहुत व्यापक था और प्रधानमंत्री जब इतना लंबा भाषण देते हैं, तो उस भाषण के फोकस को समझना और केंद्रीय बात निकालना थोड़ी मेहनत का काम होता है, थोड़ा समय लगता है. यह अच्छी बात है कि वह एक नयी दिशा की ओर बढ़ रहे हैं, वह नयी खोज कर रहे हैं. उस दिशा में प्रधानमंत्री ने कहा कि वह नयी दिशा भ्रष्टाचार से मुक्त होगी, शांति की होगी, तो यह स्वागत योग्य बयान लगता है.</p>
<p><iframe class="audio" model="border: 0px;" src="https://api.abplive.com/index.php/playaudionew/wordpress/1148388bfbe9d9953fea775ecb3414c4/e4bb8c8e71139e0bd4911c0942b15236/2475020?channelId=3" width="100%" peak="200" scrolling="auto"></iframe></p>
<p model="text-align: justify;">लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री अगर अपोजीशन की छीछालेदर नहीं करते तो भी अच्छा था, आखिर वह भी हमारे देश के ही लोग हैं. अगर उन्होंने विपक्ष पर कर ही दिया तो इसको मुद्दा नहीं बनाना चाहिए. परिवारवाद की जहां तक बात है, तो वह कोई आज से ही नहीं हो रही है. वह बहुत पुराना फेनोमेना है. वी एन गाडगिल साब कहते थे कि कोई भी देश लीजिए, तो वे राजनीतिक परिवार होते ही हैं. उनके बिना राजनीति भी नहीं चलती है, न ही उनको राजनीति के बिना चैन नहीं मिलता है. जनता अगर किसी को स्वीकार लेती है, तो फिर बात वहीं खत्म हो जाती है. भ्रष्टाचार की अलग-अलग वजहें हैं. </p>
<p><iframe title="YouTube video participant" src="https://www.youtube.com/embed/XS4Ptdu3obo?si=AXznH_eIPIiILgTX" width="560" peak="315" frameborder="0" allowfullscreen="allowfullscreen"></iframe></p>
<p model="text-align: justify;"><sturdy>भ्रष्टाचार का कारण केवल परिवारवाद नहीं</sturdy></p>
<p model="text-align: justify;">आजादी के बाद शुरुआती 40 साल देख लें तो जो भ्रष्टाचार रहा, जो बड़े स्केल के स्कैम हैं, वो बेहद ही कम है. एक मूंदड़ा स्कैम को छोड़ दीजिए तो वैसा कोई बड़ा घोटाला नहीं है. इनकी शुरुआत 1990 के उदारीकरण से होती है. सरकार चाहे जिसकी रही हो, भूल जाइए. हम देखते हैं कि 1990 से 1998 तक बड़े-बड़े स्कैम होते हैं. इनमें एलआईसी, यूटीआई और बड़े-बड़े बैंक भी संलिप्त थे. इतने घोटाले हुए कि सेबी को दखल देनी पड़ी. माना जाता है कि उस दौरान कम से कम 10 से 15 लाख करोड़ का घोटाला हुआ. उनमें परिवार की जिम्मेदारी नहीं है. घोटाला हुआ है, बड़ा घोटाला है, लेकिन उसमें परिवारों से कोई आदमी तो नहीं था, उनका नाम तो नहीं आया है. वह पूरा सिस्टम से जुड़ रहा है.</p>
<p model="text-align: justify;">इसमें पब्लिक सेक्टर के भी संगठन हैं, बैंक हैं और प्राइवेट सेक्टर भी रहे हैं. जेपीसी की रिपोर्ट्स में ये सारी चीजें हमें दिखती हैं. तो, किसी एक को कहना तो दिक्कत है. हो सकता है, प्रधानमंत्री के पास वाजिब वजह हो, लेकिन मुझे तो यही लगता है कि देश का जो सिस्टम है, वही इसका जिम्मेदार है. उस पूरे सिस्टम को ओवरहॉल करने की जरूरत है. प्रक्रिया अभी पूरी तरह रुकी नहीं है. </p>
<p model="text-align: justify;"><sturdy>पीएम करते हैं देशवासियों से बेहतर कनेक्ट </sturdy></p>
<p model="text-align: justify;">पीएम ने देश के लोगों को परिवारजन बुलाकर कहा, ये उनके अच्छे कम्युनिकेटर होने का सबूत है. एशियन व्यवस्था में व्यक्ति नहीं, परिवार ही महत्वपूर्ण है. चाहे वो इराक में हों, पाकिस्तान में हों या अपने यहां हों. कुछ फैसले जो होते हैं, वो पूरे परिवार का होता है. मोदी ने परिवार को मानकर उसी नस पर हाथ रखा है. लोगों को परिवारजन कहने से वो देशवासियों के साथ कनेक्ट स्थापित कर रहे हैं. परिवार में वोटिंग भी अमूमन एक साथ ही की जाती है. यह बुनियादी ताकत है, शक्ति है. परिवार का मतलब यह हुआ कि जो भी डेमोक्रेसी की बात करता है, वह विपक्षियों के साथ भी बात करता है. 2024 में वापस आने की जो बात उन्होंने कही है, वह तो राजनीति में होना ही है. उनको अपने पार्टी के लोगों का, कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाना है.</p>
<p model="text-align: justify;">ऐसी बातें उनको करनी ही होंगी. लोगों में जोश और जुझारूपन आए, इसके लिए नेता ऐसी बातें करते ही हैं. निश्चित रूप से वह यह समझते हैं कि जनता का ट्र्स्ट जो उनको लेना है, उसके लिए उन्हें प्रयास करने होंगे. यह उनका पॉलिटिकल डिसिजन नहीं हैं, इतना तो मानना चाहिए. उनके साथ कौन से लोग काम कर रहे हैं, किस पर क्या असर पड़ेगा, इसको वह समझते हैं. इसलिए, वह अपने कमांडर्स को, अपने योद्धाओं को, अपने कार्यकर्ताओं को उत्साह दिला रहे हैं, भरोसा दिला रहे हैं. कुल मिलाकर मोदी का भाषण वैसा ही था, जैसा लालकिले से कोई प्रधानमंत्री देते हैं. वह कुछ एक्स्ट्रा-ऑर्डिनरी नहीं था, वह ऑर्डिनरी भी नहीं था. वह एक संतुलित भाषण था, जिसमें विपक्ष पर लगातार प्रहार भी शामिल था. </p>
<p model="text-align: justify;"><sturdy>[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.] </sturdy></p>
Rajneesh Singh is a journalist at Asian News, specializing in entertainment, culture, international affairs, and financial technology. With a keen eye for the latest trends and developments, he delivers fresh, insightful perspectives to his audience. Rajneesh’s passion for storytelling and thorough reporting has established him as a trusted voice in the industry.