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<div id=":19z" class="Am Al editable LW-avf tS-tW tS-tY" tabindex="1" position="textbox" spellcheck="false" aria-label="Message Physique" aria-multiline="true" aria-owns=":1cg" aria-controls=":1cg" aria-expanded="false">
<p model="text-align: justify;">उत्तर-पूर्व के मिजोरम ने बड़ी पार्टियों की सियासी बेचैनी बढ़ा दी है. खासकर बीजेपी और कांग्रेस की. चुनावी शोरगुल में राष्ट्रीय चैनल के सिनेरियो से गायब मिजोरम में विधानसभा की 40 सीटें हैं, जहां मुख्य मुकाबला मिजो नेशनल फ्रंट और कांग्रेस गठबंधन के बीच है.</p>
<p model="text-align: justify;">मिजोरम की सत्ता में अभी तक बीजेपी भी साझेदार थी, लेकिन चुनाव से पहले सहयोगी मिजो नेशनल फ्रंट ने उससे दूरी बना ली. राज्य के मुख्यमंत्री जोरमथंगा ने प्रधानमंत्री <a title="नरेंद्र मोदी" href="https://www.abplive.com/matter/narendra-modi" data-type="interlinkingkeywords">नरेंद्र मोदी</a> के साथ मंच शेयर करने से भी इनकार कर दिया है.</p>
<p model="text-align: justify;">मुश्किलें कांग्रेस की भी कम नहीं है. पार्टी के सामने 10-10 साल की सत्ता का रिवाज बदलने की चुनौती है. 1986 से ही मिजोरम की जनता राजनीतिक दलों को लगातार 2 बार सत्ता में आने का मौका देती रही है. कांग्रेस को भी इस परंपरा का फायदा मिल चुका है. </p>
<p model="text-align: justify;">मिजोरम के चुनाव में मुख्य मुद्दा रोजगार और शांति है. 7 नवंबर को होने वाले इस चुनाव में कुल 174 उम्मीदवार मैदान में हैं. </p>
<p model="text-align: justify;"><robust>मिजोरम और उसकी राजनीति को समझिए…</robust><br />1972 तक असम का हिस्सा रहे मिजोरम अभी त्रिपुरा, असम और मणिपुर के बॉर्डर से घिरा हुआ नॉर्थ-ईस्ट का एक राज्य है. मिजोरम की 50 प्रतिशत से ज्यादा सीमाएं पड़ोसी देश म्यांमार से लगी है. </p>
<p model="text-align: justify;">राजीव गांधी सरकार के वक्त मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था. हालांकि, इसके पीछे लंबा खूनी संघर्ष था, जिसमें स्वायत्त राज्य की मांग को लेकर हजारों लोगों की मौत हुई थी.</p>
<p model="text-align: justify;">मिजोरम एक ईसाई बहुल राज्य है और 2011 जनगणना के मुताबिक राज्य में ईसाइयों की आबादी 87 प्रतिशत है. ईसाई के बाद मुसलमानों का दबदबा है. ईसाई और मुसलमान के अलावा यहां ब्रू जनजाति भी राजनीतिक रूप से काफी मुखर हैं.</p>
<p model="text-align: justify;">1986 के बाद से यहां कांग्रेस और मिजो फ्रंट की ही सरकार रही है. 2018 में मिजो नेशनल फ्रंट सबसे बड़ी पार्टी बनी और उसे 26 सीटों पर जीत मिली. बीजेपी को 1 और कांग्रेस को 5 सीटों पर जीत मिली थी. नवगठित जोरम पीपुल्स मूवमेंट के खाते में 8 सीटें गई थी. </p>
<p model="text-align: justify;">मिजोरम में लोकसभा और राज्यसभा की 1-1 सीटें हैं. दोनों सीटों पर अभी मिजो नेशनल फ्रंट का ही कब्जा है. </p>
<p model="text-align: justify;">चुनाव आयोग के मुताबिक मिजोरम में कुल 8.52 लाख मतदाता हैं, जिसमें 4.13 लाख मतदाता पुरुष और 4.39 लाख महिलाएं हैं. यानी पुरुषों के मुकाबले यहां महिला वोटरों का अधिक दबदबा है.</p>
<p model="text-align: justify;">आयोग के मुताबिक 2023 के चुनाव में पहली बार 50,611 वोटर्स मतदान करेंगे.</p>
<p model="text-align: justify;"><robust>3 पार्टियों ने 40-40 सीटों पर उम्मीदवार उतारे</robust><br />कांग्रेस, मिजो नेशनल फ्रंट और जोरम पीपुल्स मूवमेंट ने सभी 40-40 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. एमएनएफ के सिंबल पर मुख्यमंत्री जोरमथंगा आइजॉल ईस्ट-1 से चुनाव मैदान में उतरे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री ललथनहवला इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.</p>
<p model="text-align: justify;">ललथनहवला के पारंपरिक सेरछिप सीट से जेपीएम के मुख्यमंत्री उम्मीदवार लालदूहोमा मैदान में हैं. आइजॉल वेस्ट-3 से कांग्रेस के टिकट पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लालसावता मैदान में हैं. मिजो नेशनल फ्रंट ने अपने सभी विधायकों को फिर से टिकट दिया है.</p>
<p model="text-align: justify;">बीजेपी ने इस बार चुनाव में सिर्फ 23 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बैकडोर से पार्टी ने जेपीएम से सांठगांठ कर लिया है और उन सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारा है, जहां जेपीएम काफी मजबूत स्थिति में है.</p>
<p model="text-align: justify;">मिजोरम के चुनावी समर में आम आदमी पार्टी भी कूदी है. पार्टी ने यहां 4 उम्मीदवार उतारे हैं.</p>
<p model="text-align: justify;"><robust>मिजोरम का चुनाव क्यों फंसा है?</robust></p>
<p model="text-align: justify;"><robust>1. 4 दलों के बीच मुकाबला-</robust> पिछली बार की तरह ही इस बार भी 20 से ज्यादा सीटों पर चार दलों के बीच मुकाबला है. 2018 में मिजोरम के हर सीट पर औसतन 15 हजार वोट पड़े. कुछ सीटों को छोड़ दिया जाए, तो जीत का मार्जिन औसतन 200-400 वोटों का ही था. </p>
<p model="text-align: justify;">उदाहरण के लिए हेच्छक सीट पर कांग्रेस के सिंबल से लालरिंदिका राट्ले 6202 वोट लाकर चुनाव जीत गए, लेकिन यहां एमएनएफ प्रत्याशी को 5836, बीजेपी प्रत्याशी को 4399 और जेपीएम समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी को 1373 वोट मिले थे. </p>
<p model="text-align: justify;">इसी तरह आइजॉल साउथ-2 सीट पर निर्दलीय लालचुंथांगा 7294 वोट लाकर जीत गए. यहां एमएनएफ कैंडिडेट को 7115 वोट और कांग्रेस कैंडिडेट को 4836 वोट मिले थे. जानकारों का मानना है कि 2023 के चुनाव में भी मिजोरम में जीत-हार इसी तरह तय होगा. </p>
<p model="text-align: justify;"><robust>2. नोटा का भी अहम रोल-</robust> मिजोरम के चुनाव में नोटा की भूमिका भी महत्वपूर्ण रहती है. पिछली बार 7 सीटों पर नोटा को 100 से ज्यादा वोट मिले थे. 3 सीटों पर 200 से ज्यादा वोट लोगों ने नोटा को दिया था. </p>
<p model="text-align: justify;">नोटा की वजह से कांग्रेस तो तुइवॉल सीट पर हार मिली थी. यहां एमएनएफ उम्मीदवार को 5207 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार 5204 वोट लाने में कामयाब रहे थे. नोटा के पक्ष में यहां पर 52 वोट पड़ा था. </p>
<p model="text-align: justify;">कांटे की टक्कर वाली सीटों पर नोटा भी इस पर अहम रोल अदा करेगा. 2013 में पहली बार भारत के किसी भी चुनाव में नोटा का प्रयोग किया था. </p>
<p model="text-align: justify;"><robust>3. कांग्रेस के पास चेहरा नहीं-</robust> पिछले 40 साल से कांग्रेस ललथनहवला के चेहरे पर चुनाव लड़ती रही है. पार्टी 4 बार उनके चेहरे पर चुनाव जीत भी चुकी है, लेकिन इस बार ललनथहवला चेहरा नहीं है. उम्र ज्यादा होने की वजह से सक्रिय भी नहीं हैं. हालांकि, पार्टी के पक्ष में कैंपेन जरूर कर रहे हैं.</p>
<p model="text-align: justify;">कांग्रेस ने मिजोरम में गारंटी कार्ड खेला है. पार्टी ने 1 लाख लोगों को रोजगार देने की गारंटी दी है. पार्टी ने हरेक नागरिकों को 15 लाख की स्वास्थ्य बीमा और 750 रुपए में गैस सिलेंडर देने का वादा किया है. </p>
<p model="text-align: justify;">कांग्रेस की ओर से मिजोरम की कमान खुद राहुल गांधी ने संभाल रखी है. हाल ही में सोनिया गांधी ने भी मिजोरम की जनता से कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने की अपील की है. कांग्रेस 5 नवंबर तक ताबड़तोड़ रैली करने की रणनीति पर भी काम कर रही है. </p>
<p model="text-align: justify;">पार्टी पिछले चुनाव में 20 से ज्यादा सीटों पर तीसरे नंबर पर थी. इस बार इन सीटों पर सीधे मुकाबले में रहना पार्टी के लिए चुनौती भरा है.</p>
<p model="text-align: justify;"><robust>4. मणिपुर हिंसा बनी बीजेपी की फांस-</robust> भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वोत्तर के मिजोरम में फिर से सत्ता में काबिज होने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. पार्टी के बड़े नेता लगातार कैंपेन कर रहे हैं. केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू को पार्टी ने चुनाव की कमान सौंपी हैं.</p>
<p model="text-align: justify;">हालांकि, एमएनएफ के झटके ने बीजेपी के उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. मणिपुर की हिंसा बीजेपी के लिए यहां फांस बन गई है. मिजोरम मणिपुर का पड़ोसी राज्य है और हाल ही में जातीय हिंसा का यहां भी असर हुआ है.</p>
<p model="text-align: justify;">स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मणिपुर के 12 हजार कुकी परिवारों ने हिंसा के दौरान मिजोरम में शरण लिया था. वहीं हिंसा के बाद मैतई यहां से पलायन कर गए. कांग्रेस मणिपुर की हिंसा को बड़ा मुद्दा बना रही है और बीजेपी के खिलाफ लगातार कैंपेन चला रही है. </p>
<p model="text-align: justify;"><robust>5. बीजेपी और एंटी इनकंबेंसी ने एमएनएफ की टेंशन बढ़ाई-</robust> सत्तारूढ़ मिजोरम नेशनल फ्रंट की राह इस बार आसान नहीं है. सत्ता विरोधी लहर और बीजेपी का साथ ने पार्टी की टेंशन बढ़ा रखी है. स्थानीय अखबार मिजोरम पोस्ट के मुताबिक खुद मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने खुद एंटी इनकंबेंसी की बात स्वीकार की है.</p>
<p model="text-align: justify;">हालांकि, उन्होंने यह दावा जरूर किया कि उनकी सरकार फिर से आएगी.</p>
<p model="text-align: justify;">जेपीएम लगातार सरकार के भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठा रही है. मुख्यमंत्री के भाई पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं. इसके अलावा पार्टी बीजेपी से गठबंधन करने को भी मुद्दा बना रही है.</p>
<p model="text-align: justify;">गुरुवार को एक अखबार से बात करते हुए जेपीएम के सीएम फेस लालदूहोमा ने कहा कि बीजेपी के साथ गठबंधन कर एमएनएफ ने मिजोरम के हितों को अनदेखा किया.</p>
<p model="text-align: justify;">कांग्रेस भी एमएनएफ और बीजेपी गठबंधन को लेकर लगातार हमलावर है. पार्टी का कहना है कि बीजेपी के फेर में एमएनएफ ने मिजोरम के लोगों के साथ धोखा किया.</p>
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Rajneesh Singh is a journalist at Asian News, specializing in entertainment, culture, international affairs, and financial technology. With a keen eye for the latest trends and developments, he delivers fresh, insightful perspectives to his audience. Rajneesh’s passion for storytelling and thorough reporting has established him as a trusted voice in the industry.