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दिल्ली दंगों की साजिश के आरोपी उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में टली सुनवाई



<p>सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (12 सितबर) को जवाहरल लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद की उस याचिका पर सुनवाई चार हफ्ते के लिए स्थगित कर दी, जिसमें खालिद ने फरवरी 2020 में उत्तर पूर्व दिल्ली में हुए दंगा मामले में आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत दर्ज मामले में जमानत का अनुरोध किया था. जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है.</p>
<p>पीठ ने खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा, ‘इस मामले में हमें एक-एक दस्तावेज देखना होगा. आप आरोपों के संबंध में उपलब्ध सबूतों से जुड़ी सामग्री दाखिल करें.’ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने खालिद की याचिका पर सुनवाई से खुद को 9 अगस्त को अलग कर लिया था. खालिद की याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट के 18 अक्टूबर, 2022 के आदेश को चुनौती दी गई है, जिसने मामले में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी और याचिका सुनवाई के लिए जस्टिस ए. एस. बोपन्ना एवं जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ के समक्ष आई थी.</p>
<p><sturdy>पहले दिल्ली HC ने खारिज की थी याचिका</sturdy><br />हाई कोर्ट ने खालिद की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि वह अन्य सह-अभियुक्तों के साथ लगातार संपर्क में थे और उनके खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही थे. हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि आरोपियों की हरकतें गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत आतंकवादी कृत्य के तहत आती हैं. खालिद, शरजील इमाम और कई अन्य पर फरवरी 2020 के दंगों के मुख्य षडयंत्रकारी होने के आरोप में आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के कई प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है. इस दंगे में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे. संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान यह हिंसा भड़की थी.</p>
<p><sturdy>सितंबर, 2020 में हुई थी गिरफ्तारी</sturdy><br />सितंबर 2020 में दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए खालिद ने इस आधार पर जमानत का अनुरोध किया था कि हिंसा में उनकी न तो कोई आपराधिक भूमिका थी और न ही मामले में किसी अन्य आरोपी के साथ उनका कोई षड्यंत्रकारी संबंध था. दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट में खालिद की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि उनका भाषण बेहद सुनियोजित था और उसने बाबरी मस्जिद, तीन तलाक, कश्मीर, मुसलमानों के कथित दमन, सीएए और एनआरसी जैसे विवादास्पद मुद्दों को उठाया था.</p>
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