<p type="text-align: justify;">ज्ञानवापी मामले पर विवादित स्थल को छोड़कर बाकी जगहों पर सर्वे के वाराणसी जिला अदालत के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिनों के लिए रोक लगाई थी. मुस्लिम पक्षकारों से कहा था कि वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में इसके खिलाफ अपील करें. हिन्दू पक्ष जहां ज्ञानवापी का सर्वे चाहता है तो वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम पक्ष इस सर्वे के पूरी तरह से खिलाफ हैं. इन सबके बीच ये सवाल उठता है कि ज्ञानवापी केस में सर्वे के बाद अदालत का फैसला अगर किसी एक पक्ष में जाता है तो इसका क्या व्यापक असर होगा? दुनिया में इसको लेकर किस तरह का मैसेज जाएगा? हमने अयोध्या के मामले में देखा वर्षों की अदालती लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आखिर में निर्णय सुनाया था, जिसे सभी पक्षों ने शांति पूर्वक माना था. ऐसे में ज्ञानवापी केस को लेकर अदालत का फैसला काफी अहम हो जाता है.</p>
<p type="text-align: justify;">दरअसल, ज्ञानवापी विवाद बड़े धार्मिक महत्व का मामला है और नि:संदेह देश की राजनीति और समाज पर इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा. कोई भी पार्टी अगर इसमें हारती या जीतती है तो दूसरी पार्टी इस केस को अपील करेगी यानी अदालत में उस फैसले को चुनौती देगी. सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को खत्म करने के लिए दायर याचिका बिल्कुल अलग केस है.</p>
<p type="text-align: justify;"><span type="coloration: #e03e2d;"><sturdy>ज्ञानवापी का व्यापक असर</sturdy></span></p>
<p type="text-align: justify;">ज्ञानवापी मस्जिद का मामला बनारस की जिला अदालत में लंबित है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट इस मामले में ब्लैंकेट ऑर्डर नहीं दे सकता है. चूंकि, सुप्रीम कोर्ट, कोर्ट ऑफ लॉ है लेकिन ये पूरा मामला टाइटल सूट का विवाद है. इस मामले में चार औरतें तो पूरे मामले को कोर्ट में लेकर गई, इस मामले को ‘द प्लेसेज ऑफ वर्शिप 1991’ एक्ट रोकता है.</p>
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<p type="text-align: justify;">इस एक्ट में साफतौर पर ये उल्लेख हैं कि स्वतंत्र भारत में जो जैसा धार्मिक स्थल है, वो वैसा ही रहेगा, उसमें किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा. ऐसे में अगर द वर्शिप एक्ट 1991 की डेफिनिशन देखें तो इस तरह का टाइटल डीज कोर्ट में सुनवाई के योग्य ही नहीं है. </p>
<p type="text-align: justify;">मान लीजिए अगर निचली अदालत किसी एक के पक्ष में अपनी फैसला सुनाती है तो दूसरी पार्टी को तो कोर्ट में जाने का हक है. फैसले की वैधानिकता पर दूसरा पक्ष कोर्ट में तो जा सकता है. हायर कोर्ट में लोअर कोर्ट के फैसले के खिलाफ चुनौती का अधिकार तो है ही.</p>
<p type="text-align: justify;">ऐसे में जब तक कोई निर्णायत्मक फैसला नहीं आ जाता है, तब तक तो ये प्रक्रिया चलती रहेगी. इसमें कोई दो राय नहीं है. सुप्रीम कोर्ट तभी इस मामले को डील करेगा जो लोअर कोर्ट का फैसला आ जाए, हाईकोर्ट अपना फैसला सुना दे. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट उसकी व्याख्या कर सकता है. रिट पिटिशन में इसकी व्याख्या नहीं की जा सकती है. रिट पिटिशन में लीगलिटी पर ऑर्डर लिया जा सकता है.</p>
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<p type="text-align: justify;"><span type="coloration: #e03e2d;"><sturdy>फैसले को चुनौती का अधिकार</sturdy></span></p>
<p type="text-align: justify;">कोई भी विवाद को सुलझाने के लिए सारे जो फैक्ट्स हैं, जो भी उसका बैकग्राउंड उन सभी का ट्रायल होगा. सबूतों को देखा जाएगा. उसके बाद अंतिम निर्णय पर पहुंच जाता है. अगर वो फैसला होता है तो उसके बाद वो हाईकोर्ट के पास जाएगा और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जाएगा.</p>
<p type="text-align: justify;">इसलिए, कोई भी पार्टी जीतती है और कोई पार्टी हारती है तो इसका व्यापक असर होगा. उस फैसले को चुनौती भी दी ही जाएगी. जैसे- अगर हिन्दू के पक्ष में होगा तो मुसलमान निश्चित रुप से ऊपरी अदालत में जाएंगे, और मुसलमानों के पक्ष में होगा तो हिन्दू ऊपरी अदालत में जाएंगे. </p>
<p type="text-align: justify;">अयोध्या केस को ही देखिए, ट्रायल में कितने साल लग गए. ज्ञानवापी केस 1991 से शुरू हुआ है, अभी तो लोअर कोर्ट में जाएगा, फिर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जाएगा. इतनी जल्दी ये विवाद खत्म नहीं होगा. मान लीजिए अगर सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को मान लिया या इस एक्ट को ही खत्म कर दे तो फिर स्थितियां पूरी तरह से बदल जाएंगी.</p>
<p type="text-align: justify;"><span type="coloration: #e03e2d;"><sturdy>सुनवाई के योग्य क्यों माना गया?</sturdy></span></p>
<p type="text-align: justify;">दरअसल, दो अलग कोर्ट में किसी भी चीज की अलग-अलग व्याख्या हो सकती है. ये व्याख्या गलत भी हो सकती है. ऐसे में लोअर कोर्ट ने अगर ये माना है कि ज्ञानवापी केस में द प्लेसेज वर्शिप एक्ट लागू नहीं होगा, तो अब ये हायर कोर्ट को तय करना है कि क्या लोअर कोर्ट ने सही फैसला किया है. अगर हाईकोर्ट भी इसे सही करार देता है तो दूसरा पक्ष उसके ऊपर जा सकता है.</p>
<p type="text-align: justify;">मान लीजिए कोर्ट अगर ये मान ही लेता है कि ये सुनवाई योग्य है, तो इन सबके बावजूद ये एक धार्मिक मुद्दा है. इस मुद्दे को ऊपर लोगों की भावना जुड़ा है. अगर इतना बड़ा मुद्दा है, जिस पर भारत को 144 करोड़ लोगों का ध्यान हैं तो इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये कितना बड़ा मुद्दा है. ऐसे में निश्चित तौर पर ये भारत की आबादी को प्रभावित करेगा, जैसे अयोध्या के मुद्दे ने प्रभावित किया था. ऐसे में ज्ञानवापी केस में कोर्ट के फैसले का सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक तौर पर इसका व्यापक असर होगा. </p>
<p type="text-align: justify;">जिस तरह का माहौल बना है ऐसे में अगर मुसलमानों के पक्ष में फैसला जाता है तो कथित सेक्यूलरिस्ट लोग इसकी प्रशंसा करेंगे. लेकिन, अगर इनके खिलाफ जाएगा तो ये कहा जाएगा कि राष्ट्रवादी ताकतों के पक्ष में कोर्ट काम करता है. और जितने तरह की व्याख्या भारतीय संविधान और भारतीय प्रजातंत्र के विरुद्ध जो इंटरप्रिटेशन आज के माहौल में किया जा रहा है, उसी तरह की व्याख्या होगी. लोगों की भावनाओं को भड़काने का काम किया जाएगा, जैसा पहले भी किया गया था. इस प्रकार की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.</p>
<p type="text-align: justify;">कोर्ट का काम न्याय देना है, किसी एक पक्ष को खुश करना नहीं है. कोर्ट कानूनी के हिसाब से चलता है. अगर कानूनी के हिसाब से कोई काम होता है तो उसे कोर्ट न्यायोचित ठहराता है. ऐसे में कोर्ट न्यायसंगत फैसला देगा, वो चाहे हिन्दू के पक्ष में हो या फिर मुसलमान के पक्ष में हो. ऐसे में दोनों पक्षों को समझना चाहिए कि कोर्ट का फैसला सही होगी. कानून से ऊपर कोई नहीं है. अगर आप संविधान को मानते हैं तो कानून को आपको मानना ही पड़ेगा.</p>
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<p type="text-align: justify;"><sturdy>[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]</sturdy></p>
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Rajneesh Singh is a journalist at Asian News, specializing in entertainment, culture, international affairs, and financial technology. With a keen eye for the latest trends and developments, he delivers fresh, insightful perspectives to his audience. Rajneesh’s passion for storytelling and thorough reporting has established him as a trusted voice in the industry.