<p model="text-align: justify;">राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत 5 राज्यों के मतदान में अब 30 दिन से भी कम वक्त बचा है, लेकिन इस बार महंगाई मुद्दा बनता नहीं दिख रहा है. प्याज की बढ़ती कीमत को लेकर कांग्रेस जरूर सक्रिय हुई है, लेकिन उसके बड़े नेता अभी भी टिकट बंटवारे में ही उलझे हैं. </p>
<p model="text-align: justify;">जिन राज्यों में बीजेपी विपक्ष में है, वहां पार्टी के बड़े नेता भी महंगाई पर बोलने से कतरा रहे हैं. वजह केंद्र में उन्हीं की पार्टी का सरकार का होना है. आमतौर पर महंगाई के लिए केंद्र सरकार को ही जिम्मेदार माना जाता रहा है.</p>
<p model="text-align: justify;">जानकारों का कहना है कि 1990 के बाद से ही महंगाई चुनाव में बड़ा मुद्दा रहा है. महंगाई ने 2004 में अटल बिहारी वाजपेई और 2014 में मनमोहन सिंह की सरकार गिराने में बड़ी भूमिका निभाई. कई राज्यों की सरकार भी महंगाई की वजह से अपदस्थ हो गई. </p>
<p model="text-align: justify;">ऐसे में चुनावी मौसम में भी महंगाई का मुद्दा न बनना राजनीतिक दलों की रणनीति पर सवाल खड़ा कर रही है.</p>
<p model="text-align: justify;"><robust>डाटा से समझिए, कैसे कमर तोड़ रही है महंगाई</robust><br />भारत सरकार के खाद्य मंत्रालय के मुताबिक देश में खाने-पीने के सामान की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. मंत्रालय की मानें तो पिछले एक साल में अरहर दाल की कीमत में 37 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. चावल के दाम भी 13 फीसदी तक बढ़ा है, जबकि आटा और चीनी की कीमतों में 5-5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.</p>
<p model="text-align: justify;">खाद्य मंत्रालय के मुताबिक 29 अक्टूबर 2022 को चने दाल की कीमत प्रति किलो 73.34 रुपए था, जो कि 29 अक्टूबर 2023 को बढ़कर प्रति किलो 82.12 रुपए हो गया. एक साल में चने दाल की कीमत में करीब 12 रुपए की बढ़ोतरी हुई है. </p>
<p model="text-align: justify;">29 सितंबर को चने दाल की कीमत 81.52 रुपए प्रति किलो था. यानी पिछले एक महीने में ही चने दाल की कीमत में प्रति किलो 74 पैसे की बढ़ोतरी हुई है.</p>
<p model="text-align: justify;">दाल कैटेगरी में पिछले एक साल में अरहर दाल के दामों में सबसे ज्यादा उछाल आया है. 29 अक्टूबर 2022 को अरहर दाल की कीमत प्रति किलो 112.2 रुपए था, जो 29 अक्टूबर 2023 को बढ़कर 154.83 रुपए प्रति किलो हो गया है.</p>
<p model="text-align: justify;">पिछले महीने अरहर दाल की कीमत 148.5 रुपए प्रति किलो था. पिछले एक साल में सभी दालों की औसत कीमत में 10-15 रुपए प्रति किलो की बढ़ोतरी हुई है. </p>
<p model="text-align: justify;">चावल की कीमत भी लगातार आसमान छू रही है. खाद्य मंत्रालय के मुताबिक भारत में 29 अक्टूबर 2022 को चावल की औसत कीमत 38.14 रुपए प्रति किलो था, जो अब बढ़कर 43.09 रुपए प्रति किलो हो गया है. पिछले एक महीने में चावल की कीमत में एक रुपए प्रति किलो की बढ़ोतरी हुई है. </p>
<p model="text-align: justify;">इसी तरह आटा का भाव भी लगातार बढ़ता जा रहा है. 29 अक्टूबर 2022 को आटा का दाम प्रति किलो 28.96 रुपए था, जो इस साल 35.95 रुपए प्रति किलो हो गया है. पिछले एक साल में चीनी के दामों में भी बढ़ोतरी हुई है. </p>
<p model="text-align: justify;">29 अक्टूबर 2022 को चीनी प्रति किलो 42.45 रुपए बिक रहा था, जो अब 43.86 रुपए प्रति किलो बिक रहा है. सभी आंकड़े खुदरा बाजार के हैं.</p>
<p model="text-align: justify;"><robust>महंगाई चुनाव में कितना बड़ा मुद्दा, समझिए…</robust></p>
<p model="text-align: justify;"><robust>1. मध्य प्रदेश:</robust> सीएसडीएस ने मध्य प्रदेश में 2018 चुनाव के बाद पोस्ट पोल सर्वे किया था. इस सर्वे में 16 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि महंगाई को मुद्दा मानकर उन्होंने चुनाव में वोट किया है. हालांकि, इस बार महंगाई की गूंज चुनाव में नहीं सुनाई दे रही है. </p>
<p model="text-align: justify;">कांग्रेस इस बार भी विपक्ष में है, लेकिन पार्टी इस बार इसे बड़ा मुद्दा बनाने में नाकाम रही है. प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के सोशल मीडिया के एक्स हैंडल से पिछले 3 दिन में 20 से ज्यादा पोस्ट किए गए हैं, लेकिन महंगाई का जिक्र एक भी पोस्ट में नहीं है. </p>
<p model="text-align: justify;">कमलनाथ के ज्यादार पोस्ट में कांग्रेस के वचन (गारंटी) और शिवराज के भ्रष्टाचार का जिक्र है. हालांकि, मध्य प्रदेश कांग्रेस के आधिकारिक एक्स अकाउंट से बढ़ती प्याज की कीमत को लेकर जरूर पोस्ट किया गया है.</p>
<p model="text-align: justify;">महंगाई इस बार चुनाव में कितना बड़ा मुद्दा है? इस सवाल के जवाब में किसान नेता और सामाजिक कार्यकर्ता परमजीत सिंह कहते हैं- मध्य प्रदेश चुनाव में स्थानीय स्तर पर महंगाई तो मुद्दा दिख ही रहा है. </p>
<p model="text-align: justify;">सिंह के मुताबिक बड़े स्तर पर महंगाई कितना बड़ा मुद्दा है यह विपक्ष के स्टैंड और मीडिया में चली खबरों से तय होता है. वे कहते हैं- विपक्ष के नेता न तो इसको लेकर संघर्ष कर रहे हैं और न महंगाई में मीडिया में जगह पा रही है, इसलिए बाहर से यह नहीं दिख रहा है.</p>
<p model="text-align: justify;"><robust>2. राजस्थान:</robust> चुनाव की घोषणा से पहले राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार ने महंगाई को बड़ा मुद्दा बनाया था. गहलोत सरकार इसके काउंटर के लिए महंगाई राहत कैंप भी चलाया था. राजस्थान महंगाई दर अन्य चुनावी राज्यों की तुलना में काफी ज्यादा है.</p>
<p model="text-align: justify;">केंद्र सरकार के मुताबिक राजस्थान में महंगाई दर अगस्त में 8.60 फीसदी पर रही. राजस्थान के बाद तेलंगाना का स्थान था. यहां अगस्त में महंगाई दर 8.27 फीसदी पर रही.</p>
<p model="text-align: justify;">सीएसडीएस के मुताबिक 2018 के चुनाव में राजस्थान के 15.2 प्रतिशत लोगों ने महंगाई को बड़ा मुद्दा मानकर वोट किया था. उस वक्त राज्य में वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी, जिसे चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. </p>
<p model="text-align: justify;">राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस अभी तक टिकट वितरण में ही उलझी हुई है. दोनों पार्टियों ने 30 प्रतिशत से ज्यादा सीटों पर अभी तक उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नहीं किया है. </p>
<p model="text-align: justify;"><robust>3. छत्तीसगढ़-</robust> आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में अब से 5 दिन बाद पहला चरण का चुनाव प्रचार खत्म हो जाएगा, लेकिन अब तक यहां महंगाई की गूंज नहीं सुनाई दी है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सत्ता है और यहां बीजेपी विपक्ष में है.</p>
<p model="text-align: justify;">कांग्रेस यहां भूपेश बघेल के काम और गारंटी को लेकर आगे बढ़ रही है. बीजेपी महंगाई से ज्यादा भूपेश के भ्रष्टाचार को मुद्दा बना रही है.</p>
<p model="text-align: justify;">सीएसडीएस के मुताबिक 2018 में छत्तीसगढ़ के 17.4 प्रतिशत लोगों ने महंगाई को बड़ा मुद्दा मानकर वोट किया था. यह मुद्दा 15 साल से सत्तासीन बीजेपी को हटाने में बड़ी भूमिका निभाई थी. कांग्रेस 2003 के बाद पहली बार 68 सीट जीतकर सत्ता में आई थी. </p>
<p model="text-align: justify;">अगस्त में एबीपी-सी वोटर के सर्वे में 26% लोगों ने महंगाई को अहम मुद्दा बताया था, लेकिन चुनाव के करीब आने तक यह मुद्दा लगभग गौण हो गया है. </p>
<p model="text-align: justify;"><robust>4. तेलंगाना-</robust> महंगाई दर के मामले में तेलंगाना दूसरे नंबर पर है. यहां का महंगाई दर करीब 8.3 फीसदी है. तेलंगाना में क्षेत्रीय पार्टी बीआरएस, कांग्रेस और बीजेपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है. </p>
<p model="text-align: justify;">तेलंगाना में पिछली बार की तरह इस बार भी महंगाई का मुद्दा गौण है. राज्य में पिछले चुनाव में 0.4 प्रतिशत लोगों ने महंगाई को बड़ा मुद्दा बताया था. </p>
<p model="text-align: justify;">कांग्रेस यहां इस बार मुख्य लड़ाई में है. पार्टी कर्नाटक मॉडल के सहारे चुनाव जितना चाहती है. कांग्रेस ने ‘सोनिया की 6 गारंटी’ और ‘केसीआर के भ्रष्टाचार’ को बड़ा मुद्दा बनाया है. </p>
<p model="text-align: justify;">बीआरएस तीसरी बार केसीआर के चेहरे पर चुनाव लड़ने उतरी है. </p>
<p model="text-align: justify;"><robust>5. मिजोरम-</robust> नॉर्थ ईस्ट के मिजोरम में भी 7 दिन बाद मतदान है, लेकिन यहां महंगाई से ज्यादा बड़ा मुद्दा म्यांमार बॉर्डर और मणिपुर की अशांति है. मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार है. </p>
<p model="text-align: justify;">कांग्रेस यहां दूसरे नंबर पर है. हालांकि, पार्टी यहां महंगाई से ज्यादा राष्ट्रीय सुरक्षा को मुद्दा बना रही है. </p>
<p model="text-align: justify;">हाल ही में राहुल गांधी ने मिजोरम की यात्रा की थी, जहां उन्होंने पारदर्शी सरकार देने का वादा किया था. राहुल ने कहा था कि मिजोरम के लोगों को सुरक्षित रखना कांग्रेस की पहली जिम्मेदारी है. </p>
<p model="text-align: justify;"><robust>ये बड़े नेता परिवार और रिश्तेदार को टिकट दिलाने में व्यस्त</robust><br /><robust>1. दिग्विजय सिंह-</robust> मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस के बड़े चेहरे हैं. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के चुनाव की कमान भी कमलनाथ और दिग्विजय के पास है, लेकिन दिग्विजय अपने परिवार को टिकट दिलाने में ज्यादा व्यस्त हैं.</p>
<p model="text-align: justify;">दिग्विजय परिवार के 3 लोगों को कांग्रेस ने इस चुनाव में टिकट दिए हैं. राघौगढ़ सीट से दिग्विजय के बेटे जयवर्धन, चाचौड़ा से उनके भाई लक्ष्मण सिंह और खिचलीपुर से उनके भतीजे प्रियव्रत सिंह को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है.</p>
<p model="text-align: justify;">दिग्विजय परिवार के 3 लोगों को टिकट मिलने पर कांग्रेस के भीतर ही बवाल शुरू हो गया है. पूर्व सांसद प्रेमचंद्र गुड्डू ने ही कांग्रेस की रीति नीति पर सवाल उठाया है. दरअसल, उदयपुर डिक्लेरेशन के मुताबिक कांग्रेस में एक परिवार से सिर्फ एक व्यक्ति को टिकट देने का नियम है.</p>
<p model="text-align: justify;"><robust>2. रमन सिंह -</robust> छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमन सिंह छत्तीसगढ़ में बीजेपी के बड़े नेता हैं. सिंह पर बीजेपी को सत्ता में लाने की दारोमदार भी है. हालांकि, सिंह इस चुनाव में अपने परिवार के लोगों को टिकट दिलाने की वजह से चर्चा में ज्यादा हैं.</p>
<p model="text-align: justify;">रमन सिंह चुनाव में खुद राजनंदगांव से मैदान में हैं. उनके भांजे विक्रांत सिंह को खैरागढ़ से बीजेपी ने टिकट दिया है. वहीं कांग्रेस का कहना है कि पांडरिया से बीजेपी उम्मीदवार भावना बोहरा भी रमन सिंह का भांजी हैं.</p>
<p model="text-align: justify;">सिंह छत्तीसगढ़ में 2003 से 2018 तक मुख्यमंत्री रहे हैं और वर्तमान में बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं.</p>
<p model="text-align: justify;"><robust>3. वसुंधरा राजे-</robust> सियासत के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहीं वसुंधरा राजे सिंधिया अभी अपने करीबियों को टिकट दिलाने की जुगत में लगी हैं. राजस्थान बीजेपी ने अभी 76 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है. </p>
<p model="text-align: justify;">वसुंधरा की कोशिश ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपने करीबियों को टिकट दिलाने की है. इसकी बड़ी वजह राजस्थान का रिवाज और बीजेपी का सीएम फेस घोषित नहीं करना है. </p>
<p model="text-align: justify;">दरअसल, हर 5 साल पर राजस्थान में सरकार बदल जाती है. वर्तमान में कांग्रेस की सरकार सत्तासीन है और यहां इस बार बीजेपी के आने की संभावना ज्यादा है. </p>
<p model="text-align: justify;">राजस्थान में बीजेपी ने इस बार सीएम फेस घोषित नहीं करने का फैसला किया है. ऐसे में सभी बड़े नेताओं की कोशिश अपने लोगों को टिकट दिलाकर सदन में लाने की है, जिससे उनकी सीएम पद की दावेदारी बढ़ जाए.</p>
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